यही रात अंतिम यही रात भारी, बस एक रात की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी - विजय उरमलिया की कलम से

अनूपपुर - मतदान के पहले की रात जहां नेता अपने लिए कत्ल की रात मानते है तो वहीं मतगणना के पहले की रात मानो यही रात अंतिम यही रात भारी बस रात भर की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी दर असल नगरीय निकाय चुनाव के शंखनाद से लेकर अब तक आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और कई नेता तो असंवेदनहीनता की सारी हदें लांघते रहे चाहे वो ठीकरा वोटरों को बिकने को लेकर हो या मीडिया को लेकर या एग्जिटपोल को लेकर अनर्गल बयान बाजी खैर नेताओं का तो आलम ही कुछ यूं ही रहता है,

पूरे चुनाव में सबसे दुखद पहलू ये रहा कि यही नेता जो चुनाव को राष्ट्र पर्व का पहाड़ पढ़ाते है इसी राष्ट्रपर्व को जिले के कई हिस्सों में आपसी मनमुटाव में बदल दिया चुनावी हिंसा राजनैतिक पार्टियों के लिए हथकंडा हो सकता है पर दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है दूसरों को राष्ट्रपर्व का ज्ञान देने वाले चुनावों में विसंगतियां फैलाते रहे और कुर्सी की इस रेस में अपनो को अपनो से दूर करते भी नजर आये

देखना यह है कल किसके किसके पक्ष में मतदान  होता है और किसके हिस्से में आरोप मढ़ने का जिम्मा आता है, चंद घन्टे बचे है किस्मत का दरवाजा बुलंद होने के लिए अब चंद ही घण्टों में जनादेश का ठप्पा लगेगा, शोर शराबा सुनाई देगा और कुछ ही घण्टो में शोर शराबा थमेगा तो जिले भर में नगरीय निकाय कुछ एक के जिम्मे होगा और कुछ अगली पारी का इंतजार और उम्मीदों का पिटारा लिए घरों पर सिमट जाएंगे,और उम्मीद है नगरीय निकायों में आने वाले भगवान रूपी नेता राजनीति से ऊपर उठते हुए जिले के बारे में सोचेंगे,

वैसे चुनाव के पहले तक मतदाता भगवान, चुनाव आयोग माई बाप जीत गये तो सब ठीक नही तो कई तरह की कमियां और इसी दौर में आती है वो कत्ल की रात जब भगवान रूपी मतदाता को ये नेता आर्थिक, मानसिक, मद, से शराबोर कर मतदाता की पीठ में पैर रख कुर्सी तक पहुंचने के लिए हर जोर आजमाइस करते है, कुर्सी मिल गईं तो भगवान रूपी मतदाता को ठेंगा दिखा अपने स्वार्थ साधने में मशगूल हो जाते है तो हार के बाद कई बहाने है आरोप प्रत्यारोप का दौर अगले पांच सालों तक चलता रहेगा

अब नेता जी की वो रात आती है जब उनके कुर्सी की दौड़ में ये रात आखरी होती है और हर नेता की आंखों से नींद उस तरह गायब होती है जैसे जितने के बाद ये नेता महाशय गायब होते है, और मतगणना से पूर्व की रात नेता जी बस कुछ यूं ही मन में सोचते है यही रात अंतिम यही रात भारी, बस रात भर की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी

नेताओं के लिए निश्चित तौर पर ये चुनाव सबक बनता हुआ दिखाई दे रहा है जो भगवान रूपी मतदाता को बेवकूफ बनाते है उसे जनता समय आने पर सबक सिखाने से नही चूकती, पिछले तीन महीने से चुनाव चुनाव चलता रहा और आखिर कर वक्त आ गया फैसले का कल फैसला मतदाता के हांथो में होगा और नगरीय निकाय का मतदाता अपने फैसले मत पेटियों में कैद कर अपने दिनचर्या में लौट जायेगा पर परिणामो के पहले से ले कर परिणामो के बाद तक आरोप प्रत्यारोप का दौर नेताओं का चलेगा और जनता फिर बेबस ठगा सा महसूस करेंगी क्यों कि आज के समय में अगर कई नगरीय निकाय के वार्डों में के पीने का पानी मयस्सर न होता हो, बिजली न मिलती हो, रोजगार न मिलता हो तो इन निकायों का होना न होना कोई मायने नहीं रखता और नेताओं के वादों के पिटारे का इंतजार भी कभी खत्म न होने वाला मलहम है जो चुनाव के वक्त तो मतदाताओं के घाव में लगाने के लिए नेता जी निकालते है और मतदाता के सर पे पैर रख तिलस्मी खजाने की कुर्सी तो हासिल कर लेते है पर उस कंधे को भूल जाते है जिसके वजह से कुर्सी मिलती है

बहरहाल जो भी हो आप मतदान करने जरूर जाइयेगा यही बस तो एक आप का अपना पक्का वाला अधिकार है जिसे न कोई छीन सकता है और न झपट सकता है