वाशिंगटन ।  साल 2030 तक नासा ने चंद्रमा पर एक न्यूक्लियर रिएक्टर स्थापित करेगी। यह घोषणा नासा ने की है ताकि चंद्रमा को एक ऑर्बिटिंग पावर स्टेशन में बदला जा सके। नासा ने पावर सिस्टम के लिए तीन डिजाइन कॉन्सेप्ट प्रपोजल्स को चुना है जिसे इस दशक के अंत तक लॉन्च किया जा सकेगा।  इसके बाद अंतरिक्ष यात्री इसकी जांच करेंगे जो स्पेस एजेंसी के अरटेमीस प्रोग्राम के तहत चंद्रमा पर भेजा जाएगा। इस कार्यक्रम के तहत 2025 तक न सिर्फ इंसान 50 से अधिक साल बाद चंद्रमा पर वापसी कर रहा है बल्कि पहली महिला भी चांद पर कदम रखेगी। नासा की योजना 40 किलोवाट के न्यूक्लियर पावर स्टेशन लगाने की है जो चंद्रमा के वातावरण में कम से कम 10 साल तक टिक पाए। इसे इस उम्मीद के साथ स्थापित किया जाएगा कि एक दिन यह चंद्रमा पर मानव की स्थायी उपस्थिति में सहयोग कर सके, साथ मंगल और उसके आगे के मानव मिशनों में भी अपना समर्थन दे सके।
अगर नासा को चंद्रमा की सतह पर एक बेस स्थापित करना है तो सबसे बड़ी समस्या यह होगी कि इस तरह की लैब को ऊर्जा कहां से मिलेगी। रिसर्च के लिए भेजे जाने वाले रोवर्स को ऊर्जा देने के लिए सोलर पैनल पर्याप्त होते हैं लेकिन ह्यूमन बेस को ऊर्जा के निरंतर और विश्वसनीय स्रोत की आवश्यकता होगी। नासा के विशेषज्ञ न्यूक्लियर फ्यूजन को इसके जवाब के रूप में देख रहे हैं क्योंकि इस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल पृथ्वी पर बड़े पैमाने पर किया गया है। दूसरे पावर सिस्टम की तुलना में फ्यूजन सिस्टम छोटा और हल्का होता है। स्पेस एजेंसी के मुताबिक फ्यूजन सिस्टम विश्वसनीय होते हैं ।