गणवेश में एक और नया कारनामा वेंडरों ने छोटा कपड़ा दिया, बच्चों के फट रहे यूनिफार्म समन्वयक मनीष ने कहा बच्चों को क्यों बांट दिये ड्रेस

उमरिया।  जिले में लगातार गणवेश को लेकर सवाल उठ रहे हैं, पहले क्वालिटी और सिलाई पर सवाल थे तो अब ड्रेस की नाप को लेकर सवाल खड़े हो गये हैं, वेंडरों ने छोटे कपड़े समूह को सिलाई करने दे दिया और वह सिलकर स्कूलों में पहुंच गए लेकिन वह ड्रेस बच्चों को नहीं आ रहे हैं, इस बात की जानकारी जब ब्लाक करकेली के समन्वयक मनीष श्रीवास्तव से ली गई तो उन्होंने कहा कि शिक्षकों ने बच्चों को छोटे कपड़े दिये ही क्यों हैं, वहीं यह भी बात सामने आ रही है कि शिक्षा विभाग ने बच्चों को वितरित होने वाली ड्रेस को बांटने पर रोक लगा दी है। 

 

कौन बचा रहा वेंडरों को

जिले में छोटे बच्चों और बेटियों के गणवेश में हो रहे भ्रष्टाचार को लेकर मीडिया ने जमकर जिला प्रशासन पर हमला बोला है, लेकिन किसी भी अधिकारी ने जांच की जहमत नहीं उठाई और अब गणवेश छोटे बड़े होकर फट रहे हैं। एक ओर बच्चों के गणवेश छोटे हो रहे हैं तो दूसरी ओर शिक्षा विभाग ने बच्चों की संख्या बढ़ाने शिक्षकों को टारगेट दे दिया है। बच्चों को पालकों का कहना है कि जब तक किताब और ड्रेस नहीं मिल जाते तब तक स्कूल नहीं जाना है, ऐसे में न तो शिक्षा विभाग का काम पूरा हो रहा है और न ही बच्चों को ड्रेस मिल पा रही है। इन सब मामलों को लेकर वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में यह बात भी लाई गई लेकिन बहती गंगा में सभी हाथ धोने जैसी कहावत को चरितार्थ करने में लगे हुए हैं। 

क्वालिटी पर सवाल

वेंडरों द्वारा सप्लाई किया गया कपड़ा बेहद ही खराब है, जिसको लेकर समूह ने नाराजगी जताई है वहीं जिन स्कूलों में गणवेश वितरण किया जा चुका है, उनके कपड़े देखो मानों ऐसा लग रहा है कि कई सालों से बच्चों को ड्रेस नहीं मिली है। कपड़ों की क्वालिटी आंखों से देखी जा सकती है, लेकिन सभी जिम्मेदार अधिकारी लैब का रोना रो रहें हैं। बताया जा रहा है कि झांसी और ग्वालियर सहित उमरिया के वेंडरों ने जो कपड़ा सप्लाई किया है वह कैसा है और मासूम बच्चों को दिया जाने वाला कपड़ा कैसा है‌, इस बात से बेखबर जिला प्रशासन अलग ही राग अलाप रहा है। आजीविका मिशन के तहत करकेली ब्लाक के तहत तमाम समूहों का काम देख रहे मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि कपड़े की क्वालिटी कोई नहीं बता सकता लैब से टैस्टिंग के बाद ही कपड़ा सप्लाई किया गया है, जबकि आम तौर पर लोग कपड़ा लेते हैं तो न तो उसे लैब की जरूरत पड़ती है और क्वालिटी की हर कोई अपने बच्चों को अच्छे क्वालिटी का कपड़ा पहनाना चाहता है, लेकिन जब बात सरकारी और गरीब बच्चों की आती है तो अधिकारी क्वालिटी की बात पर अड़े रहते हैं।