शहडोल में घुटना टेक पत्रकारिता,पत्रकारों को प्रशासनिक खबरों पर लगा देनी चाहिए रोक,हठधर्मिता पे उतारू प्रशासन - विजय उरमलिया की कलम से

शहडोल में घुटना टेक पत्रकारिता,पत्रकारों को प्रशासनिक खबरों पर लगा देनी चाहिए रोक,हठधर्मिता पे उतारू प्रशासन
शहडोल - शहडोल में पत्रकारों की हालत इन दिनों कठपुतली सी हो गई है हो सकता है बुरा लगे आज कल के कुछ मठाधीश या कॉरपोरेट पत्रकारों को पर जो हुआ विगत दिनों यही बताता है कि शहडोल की पत्रकारिता घुटनो के बल आ गई है चूंकि न तो स्थानीय पुलिस और प्रशासन अपनी गलती का ठीकरा पत्रकारों पर जम के फोड़ा और ऐसा फोड़ा की कइयों का जिला बदर तक हो गया और ये कोई अचानक नही हुआ सब सोची समझी रणनीति के तहत प्रशासन ने किया पूरी कहानी क्या है हम बता रहे है पर प्रशासन ने जो अपना रंग दिखाना था दिखाया लेकिन शहडोल की पत्रकारिता इसके बाद घुटनो के बल आ गई ऐसा कहना कतई गलत नही होगा चूंकि गलत को गलत कहने की हिम्मत किसी ने जुटाने का प्रयास नही किया और एक एक कार जिला बदर किये जा रहे है,
दरसल विगत दिनों स्वास्थ्य विभाग के एक जिम्मेदार अधिकारी ने कार्यालय में बोर्ड लगवा दिया पत्रकारों का आना मना है साहब आप के रोकने से हम रुकने वाले पत्रकार तो है नही खबर होगी तो हम तो आप की मांद में घुस जायेंगे पर शहडोल के पत्रकारों ने गंभीरता दिखाते हुए पूरे मामले को प्रशासन के संज्ञान में लाया पर दुर्भाग्यजनक यह है कि प्रशासन ने कोई उचित कदम उठाना मुनासिब नही समझा ये शहडोल के पत्रकारों के पेट पर पहला लात प्रशासन का पड़ा था पर तब दौर गुजरता रहा और इत्तेफाक से 15 नवंबर को को बिरसमुंडा की जयंती पर शहडोल के बाणगंगा मैदान पर मुख्यमंत्री एवं राज्यपाल आगमन होना सुनिश्चित हुआ और यही से प्रशासन की लापरवाही चूक जो आप मान लीजिये या फिर ये कह लीजिए कि पत्रकारों पर अत्याचार की इबारत यहीं से लिखनी थी, एक तरफ बिरसमुंडा जयंती मनाई जा रही थी तो दूसरी तरफ पत्रकारों को घुटनों के बल लाने की जद्दोजहद में जुटा हुआ था प्रशासन, चूंकि प्रशासन ने जो मामला कायम किया और जिला बदर की कार्यवाही शुरू की उसमे साफ लिखा कि मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के दौरान मीडिया गैलरी में मौजूद तथाकथित पत्रकार ने पम्पलेट निकाल कर विरोध शुरू कर दिया अरे साहब ये तथाकथित कैसे हो गये जरा आप हमें भी समझा दें चूंकि जब सबके बैठने की जगह निर्धारित है और मीडिया गैलरी में अगर आपको लगता है कि ये तथाकथित पत्रकार है तो आपने जाने कैसे दिया और पम्पलेट कैसे अंदर पहुंचे ये जिला प्रशासन एवं पुलिस का फेलियर था और अपनी अकर्मण्यता छुपाने आज पत्रकारों पर जिला बदर की कार्यवाही करने पे आप आमादा हो गये,जिन पत्रकारों पर जिला बदर की कार्यवाही की जा रही है वो 2009 से 2024 तक पत्रकारिता करते रहे और न पुलिस और न कलेक्टर को इनके अपराध दिखे और जब अपने मौलिक अधिकारों के हनन के खिलाफ आवाज उठाई तो आपकी आंखें 2009 से लेकर अब तक किसके कौन से मुकदमे कायम है दिखाई देने लगे हमे उसमे भी आपत्ति नही आपको लगता है कि ये अपराधी थे तो आप इतने अकर्मण्य है कि 2009 से लेकर 2024 तक के मुकदमे देखने और समझने में आपको पन्द्रह वर्ष लग गये पर दुर्भाग्यजनक तो ये भी है की कई ऐसे पत्रकारों को आपने इस मामले में फंसा दिया जिन पर न तो मुकदमे है और न ही वो इस आंदोलन के हिस्से रहे आप यहां भी जल्दबाजी में नजर इसलिए आये की कार्यक्रम मुख्यमंत्री का था कहीं गाज आप पर न गिरे तो सीधे पत्रकारों को बलि का बकरा बना दो अरे साहब ये सब कुछ आपकी लापरवाही का परिणाम है स्वास्थ्य विभाग में लगे पोस्टर पर कार्यवाही की होती तो शायद ये न होता बहरहाल कहाँ लिखा है कानून की किस किताब में लिखा है कि विरोध करना सिर्फ और सिर्फ राजनैतिक पार्टियों का मौलिक अधिकार है,समय समय पर देखा गया है कि लोग अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाने के लिए ऐसी जगहों का चुनाव करते आये है तो क्या सभी का जिला बदर हुआ नही न तो पत्रकारों को अपनी जागीर समझने वाले प्रशासन ने यहां कैसे अपने हिसाब से कार्यवाही को अंजाम दिया अब भी सवाल बना हुआ है ,समय समय पर प्रशासन के लोग भी सरकार से अपनी मांगों को लेकर विरोध जताते है और जब शहडोल के पत्रकारों ने अपने हक के लिए विरोध जताया तो आपको कर्तव्यबोध हो गया ऐसा नही है आप अपनी निष्क्रियता छुपाने के लिए कार्यवाही कर अपनी पीठ थपथपा रहे है अगर ये सभी अपराधी थे तो आप को आखिर इनके अपराध पहले कैसे नही दिखे दुर्भाग्यपूर्ण तस्वीर यह है कि कुछ ऐसे लोग भी है जो समाजकी गुनाह के मामले में 50 रुपये के जुर्माने पर छोड़े गए वो जिला बदर जैसे गुनाह से नवाजे गये खैर ये आपकी जीत नही शहडोल के पत्रकारों के घुटनों के बल आने की कहानी बयां करती है,बहरहाल अगर शहडोल जिले में पत्रकारिता की दो लाइन भी बची हो तो इस लापरवाह सिस्टम के सामने आखरी कील की तरह सच लिख के ठोंक देना अन्यथा एक एक कर सब जिला बदर अपराधी बना दिये जाओगे प्रशासन ने कुछ देखना मुनासिब नही समझा,पर साहब ये कलम को आप जिला बदर नही ताउम्र के लिए सजाये ऐलान कर दो रुकेगी नही पर दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि शहडोल में पत्रकार भी सच और झूँठ को सिर्फ इसलिए नही समझना चाहते चूंकि कुछ को कल से इन्ही अधिकरियों के कार्यालय में इंट्री बंद हो जायेगी अरे बंद हो जाने दीजिए न अगर आज आपने जाना बंद नही किया तो पूरा का पूरा सिस्टम कल आपको ऐसा बंद करेगा जैसा कि इस पूरे मामले में किया जा रहा है आज कुछ हुए कल आपकी बारी,
बहरहाल स्थानीय प्रशासन तय कर ले कि आज दिनांक से जनसम्पर्क से एक भी खबरें पत्रकारों के कार्यालय तक नही पहुंचनी चाहिए जब सब अपराधी ही है तो अपनी वाहवाही लूटने के लिए इन्ही पत्रकारों से ये उम्मीद करना तो बेमानी है न