यही रात अंतिम यही रात भारी, बस एक रात की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी 
यही रात अंतिम यही रात भारी, बस एक रात की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी
अनूपपुर - मतदान के पहले की रात जहां नेता अपने लिए कत्ल की रात मानते है तो वहीं मतगणना के पहले की रात मानो यही रात अंतिम यही रात भारी, बस रात भर की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी दर असल विधानसभा चुनाव के शंखनाद से लेकर अब तक आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा और कई नेता तो असंवेदनहीनता की सारी हदें लांघते रहे, चाहे वो ठीकरा ई वी
एम को लेकर हो या मीडिया को लेकर या एग्जिटपोल को लेकर या व्यक्तिगत जीवन को ले अनर्गल बयान बाजी खैर
नेताओं का तो आलम ही कुछ यूं ही रहता है,

पूरे चुनाव में सबसे दुखद पहलू ये रहा कि यही नेता जो चुनाव को लोकतंत्र के महापर्व  का पहाड़ पढ़ाते है इसी लोकतंत्र के महापर्व को प्रदेश के कई हिस्सों में बदजुबानी में बदल दिया चुनावी बदजुबानी राजनैतिक पार्टियों के लिए हथकंडा हो सकता है पर दुर्भाग्यपूर्ण और शर्मनाक है दूसरों को लोकतंत्र के महापर्व का ज्ञान देने वाले चुनावों में बदजुबानी फैलाते रहे और कुर्सी की इस रेस में कइयों के निजी जीवन मे आरोप प्रत्यारोप का दौर चलता रहा हालांकि राजनीति में निजी जीवन जैसी कोई जिंदगी होती नही देखना यह है कल किसके सर ताज होता है और किसके हिस्से में आरोप मढ़ने का जिम्मा आता है,चंद घन्टे बचे है किस्मत का दरवाजा बुलंद होने के लिए अब चंद ही घण्टों में जनादेश आयेगा शोर शराबा सुनाई देगा और कुछ ही घण्टो में शोर शराबा थमेगा तो प्रदेश एक नई सरकार के जिम्मे होगा और उम्मीद है प्रदेश को आने वाली सरकार प्रदेश को राजनीति से ऊपर रखते हुए प्रदेश के बारे में सोचेगी, वैसे चुनाव के पहले तक मतदाता भगवान, चुनाव आयोग माई बाप जीत गये तो सब ठीक नही तो कई तरह की कमियां और इसी दौर में आती है वो कत्ल की रात जब भगवान रूपी मतदाता को ये नेता आर्थिक, मानसिक, मद, से शराबोर कर मतदाता की पीठ में पैर रख कुर्सी तक पहुंचने के लिए हर जोर आजमाइस करते है, कुर्सी मिल गई तो भगवान रूपी मतदाता को ठेंगा दिखा अपने स्वार्थ साधने में मशगूल हो जाते है तो हार के बाद कई बहाने है evm से लेकर मीडिया तक,अब नेता जी की वो रात आती है जब उनके कुर्सी की दौड़ में ये रात आखरी होती है और हर नेता की आंखों से नींद उस तरह गायब होती है जैसे जितने के बाद ये नेता महाशय गायब होते है, और मतगणना से पूर्व की रात नेता जी बस कुछ यूं ही मन में सोचते है यही रात अंतिम यही रात भारी, बस रात भर की कहानी है सारी, यही रात अंतिम यही रात भारी 
नेताओं के लिए निश्चित तौर पर ये चुनाव सबक बनता हुआ दिखाई दे रहा है जो भगवान रूपी मतदाता को बेवकूफ बनाते है उसे जनता समय आने पर सबक सिखाने से नही चूकती, पिछले तीन महीने से चुनाव चुनाव चलता रहा और आखिर कार वक्त आ गया फैसले का कल फैसला आ जायेगा और  विधानसभा का मतदाता फैसले को सर आंखों लेते हुए अपने दिनचर्या में लौट जायेगा पर परिणामो के पहले से ले कर परिणामो के बाद तक आरोप प्रत्यारोप का दौर नेताओं का चलेगा और जनता फिर बेबस ठगा सा महसूस करेंगी क्यों कि आज के समय मे अगर प्रदेश के कई हिस्सों में पानी मयस्सर न होता हो, बिजली न मिलती हो, रोजगार न मिलता हो तो इन सरकारों का होना न होना कोई मायने नही रखता और नेताओं के वादों के पिटारे का इंतजार भी कभी खत्म न होने वाला मरहम है जो चुनाव के वक्त तो मतदाताओं के घाव में लगाने के लिए नेता जी निकालते है और मतदाता के सर पे पैर रख तिलस्मी खजाने की कुर्सी तो हासिल कर लेते है पर उस कंधे को भूल जाते है जिसके वजह से कुर्सी मिलती है और नेता तो भगवान रूपी नेता इसलिए कहलाता है कि पहले तो मतदाता कें कंधो में चढ़ कुर्सी तक पहुंचता है फिर बैठ जाता है और फिर पसर जाता और पसरने के बाद तो आप को पता ही है क्या होता है तो अगले चुनाव तक वादों के पिटारे का इंतजार करते हुए कल चुनावी परिणाम में नजर गड़ाये बैठा है मतदाता