सुप्रीम कोर्ट के नियम का खुला उल्लंघन, तो....वेस्ट बंगाल की हल्ला बोल टीम भी हो गई फेल
अब वन विभाग के देख रेख में हो रहा है खुलेआम कानून का उल्लंघन

अनूपपुर।
जिले के जैतहरी तहसील मे के ग्राम कई पंचायतो के जंगल मे तकरीबन 18 दिनों से दो नर हाथियो ने अपना डेरा जमाये हुए है, भोजन की तलाश मे कई कच्चे घरों  को निशाना बनाया है, वन विभाग की टीम लगातार नजर रखी हुई है हाथी को भगाने मे अनेको तरह का प्रयास किया जा रहा. हाथी विशेषज्ञ की भी मदद ली गईं लेकिन वह भी विफल हो गया, अब वेस्ट बंगाल से हुल्ला बोल की टीम विगत 3 दिनों से डेरा जमाये हुए है. पर हाथियो को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है..
क्या है हुल्ला बोल टीम

 


जंगली हाथियो को मिर्च से बनाई गईं मशाल, बम्ब पठाके एवं शोर गुल कर हाथियो को खदेड़ा जाता है.. ऐसे मे रिस्क बहुत होता है कभी कभी हाथी बेकाबू हो जाते है और पलट कर हमला कर देते है। विगत तीन दिनों से हुल्ला बोल टीम हाथी के पीछे लगी हुई है कही मिर्च वाली मशाल तो कही हाथी के ऊपर पटाखे फेके जा रहे है, वर्तमान मे यह दोनों हाथी ठेंगरहा एवं बाका के जंगल के आसपास छिपे हुए है।
सुप्रीम कोर्ट के नियम का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट के गाइडलाइन अनुसार हाथियो पर किसी भी प्रकार का ज्वलंत पदार्थ का उपयोग करना नियम विरुद्ध है ऐसा करने पर सजा का प्रावधान है ऐसे मे हाथी भगाने आये विशेषज्ञ आग, पटाखे जैसे सामग्री का उपयोग कर  सुप्रीम कोर्ट के नियम का खुला उल्लंघन कर रही है... नितिन सिंघवी वन्य जीव प्रेमी रायपुर का कहना है कि किसी भी शेड्यूल एक के वन्य प्राणी को हाँका लगाकर जैसे हल्ला बोल कर भगाना उसके विचरण में बाधा डालना, वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम के तहत अपराध है जिसके तहत 3 साल तक से 7 साल की सजा या 25000 जुर्माना हो सकता है दोबारा करने पर कम से कम 3 साल और अधिकतम 7 साल सजा और एक लाख का जुर्माना हो सकता है। हाथियों को भगाने के लिए मिर्ची के उपयोग जैसे मिर्ची पाउडर, मिर्ची के पटाखे जिसमें मिर्ची मशाल जलाना भी शामिल है इस पर उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 2022 से प्रतिबंध लगा रखा है यह भी अपराध है।
क्यों बोल रही है डीएफओ झुठ

 


कलकत्ता के सामाजिक संस्था चलाने वाले और हाथियों बीच काम करने वाले सगनिक सेनगुप्ता कि माने तो अनूपपुर में जो टीम काम कर रही है वह कलाई कुंडा रेंज शंकर मनी गांव से आए हैं और इस हुल्ला टीम का काम हाथियों को एक स्थान से दूसरे स्थान ड्राइव(भगाना) करना है। और यह हुल्ला मतलब एक मसाल बनाकर उसमें खड़ी और पिसि लाल मिर्च डालकर जले हुए मोबीआयल में डुबाकर उसे जलाते है और इस हुल्ला के जलने से जो बदबू और आवाज पैदा होती है उससे हाथी को बहुत तकलीफ होती है और वह अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र भाग जाता है। अगर सगनिक सेनगुप्ता की बात सही है तो अनूपपुर की प्रभारी वनमण्डला श्रद्धा पेन्द्रे ने हमसे इस बात का इनकार क्यो किया की यह दल हाथियों को भगाने नही बल्कि प्रषिक्षण देने आया है यह सवाल उठता है कि डीएफओ अनूपपुर को झूठ क्यो बोलना पड़ रहा है और वह क्या छुपा रही है।
इनका कहना है
इस प्रकार के प्रयोग कर मध्य प्रदेश वन विभाग के अधिकारी मानव हाथी द्वंद्व को बढ़ावा दे रहे है इसकी शिकायत मैंने सचिव पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन भारत सरकार से की है। छत्तीसगढ़ में जब हाथी आए थे तब इस प्रकार का प्रयोग किया जाता था पर अब छत्तीसगढ़ वन विभाग हाथी मित्र दल की सहायता लेकर मानव हाथी द्वंद नियंत्रित करता है छत्तीसगढ़ के एक्सपर्ट और वन विभाग इस प्रकार का प्रयोग नहीं करते मध्य प्रदेश के अधिकारियों को छत्तीसगढ़ से सीखना चाहिए। हाथियों को परेशान करने से हाथी उग्र होते हैं और उसके पश्चात मानव सामने आने पर जनहानि होती है।
नितिन सिंघवी वन्य जीव प्रेमी रायपुर
केवल हुल्ला टीम प्राप्त करना पर्याप्त नहीं होगा, टीम की निगरानी और मार्गदर्शन की आवश्यकता है, दक्षिण बंगाल और अन्नुपुर के परिदृश्य में बहुत अंतर है, यहां हाथियों को चलाना मुश्किल है, वह भी 2 टस्कर, निरंतर जंगल के कारण मुश्किल है और इन लड़कों का उपयोग किया जाता है खुले क्षेत्र में गाड़ी चलाना। हमारे पास महाराष्ट्र में काम करने वाली टीमें हैं, लेकिन ड्रोन की मदद से हाथियों का मार्गदर्शन करते हैं और उस क्षेत्र को समझते हैं जहां उन्हें धकेलना है। झुंड को धकेलना आसान है लेकिन टस्कर्स को धकेलना मुश्किल है। साथ ही, मप्र वन विभाग को पता होना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट की रिट याचिका क्रमांक- 489/2018 के अनुसार, आग के गोले का उपयोग करना और उन्हें फेंकना गैरकानूनी है, इसलिए टीम का उपयोग करते समय अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, क्योंकि उनमें आग के गोले फेंकने की प्रवृत्ति होती है।
सगनिक सेनगुप्ता एनजीओ कलकत्ता
कोलकाता बंगाल से जो खुला टीम आई है वह हाथियों को भागने नहीं आई है लोगों को ट्रेनिंग देने आई है हमारे वन विभाग के कर्मचारी और ग्रामीण हाथियों के प्रति ट्रेन नहीं है इसलिए इन्हें प्रशिक्षण देने के लिए बुलाया गया है कि जब हाथी गांव में आए तो किस तरह का व्यवहार करना चाहिए क्योंकि जंगल से जंगली जानवरों को नहीं भगाया जा सकता।
श्रद्धा पेन्द्रे प्रभारी  वन मंडल अधिकारी अनूपपुर