जन्मभूमि से लेकर कर्मभूमि तक की जनता में अपनो के कारण फीकी रही हीरा की चमक 
पुष्पराजगढ़ में हार के बाद भी जीता हुआ प्रत्याषी माना जा रहा हीरा
इन्ट्रो-खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी इस समय उक्त पंक्तियां पुष्पराजगढ़ विधानसभा से पराजित भाजपा प्रत्याशी हीरा सिंह श्याम पर सटीक बैठ रही है। जिस तरह से हीरा सिंह श्याम ने विधानसभा का पहला चुनाव होने के बावजूद कांग्रेस प्रत्याशी फुदेलाल सिंह मार्को को चुनावी मैदान में नाको चना चबाने को मजबूर कर दिया उसको देख कर तो परिणाम के बाद हार जाने पर भी हीरा सिंह श्याम को जीता हुआ प्रत्याशी माना जा रहा है तो गलत नहीं है।

 


अनूपपुर। पुष्पराजगढ़ विधानसभा जिसे कांग्रेस का गढ़ कहा जाता था और यहां से लगातार दो भाग कांग्रेस अपने जीत का परचम लहराती चली आ रही थी और कांग्रेस की जीत को रोकने के लिए भाजपा ने यहां से हीरा सिंह श्याम को अपना प्रत्याशी नामांकन के लगभग दो माह पहले ही घोषित कर दिया था। हीरा सिंह श्याम के प्रत्याशी की घोषणा के बाद आम जनता तो दूर भाजपा के बड़े नेताओं ने भी गंभीरता से नहीं लिया युवा भाजपा नेता हीरा सिंह श्याम ने जिस तरह से कड़ी मेहनत करके चुनावी मैदान में अकेले संघर्ष करते हुए अभिमन्यु की तरह अंतिम द्वारका ना तोड़ पाने के कारण हार गए वह अब अनूपपुर से लेकर भोपाल तक में चर्चा का विषय बना हुआ है। वैसे देखा जाए तो हीरा के हार के कई कारण है लेकिन प्रमुख रूप से हीरा के हार के बारे में अगर एक लाइन में लिखा या कहा जाए तो बस यही कहा जा सकता है की जन्मभूमि से लेकर कर्मभूमि तक की जनता ने हीार का उस तरह से साथ नहीं दिया जिसकी आशा थी और यही हार का मुख्य कारण बना।
सांसद ने नहीं किया खुलकर समर्थन
पुष्पराजगढ़ विधानसभा को भाजपा के शहडोल की संसद हिमाद्री सिंह का गृह क्षेत्र या ग्राम भी कहा जा सकता है। इसके बावजूद चुनाव प्रचार के दौरान यह देखा गया कि भाजपा संसद ने औपचारिकता निभाते हुए बड़े नेताओं के आगमन पर रैली सभा और बैठक में भले ही भाग लिया लेकिन आम जनता के बीच में जाकर भाजपा के पक्ष में या यह भी कहा जाए कि हीरा के साथ कदम से कदम मिलाकर प्रचार प्रसार में भाग न लेना हीरा के लिए भारी पड़ा तो गलत नहीं है। बात सांसद की हो तो इस बात का भी उल्लेख होना लाजमी है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में पुष्पराजगढ़ विधानसभा से संसद के पति नरेंद्र मरावी प्रत्याशी थे और इस बार उनको भाजपा ने टिकट नहीं दिया था और इसकी कसक नरेंद्र मरावी के साथ-साथ भाजपा सांसद के चेहरे पर साफ झलक रही थी। यही नहीं अब तो पुष्पराजगढ़ क्षेत्र की जनता के साथ-साथ भाजपा नेता भी यही बात को स्वीकार कर रहे हैं कि अगर हीरा के साथ सांसद हिमाद्री सिंह और भाजपा के पूर्व विधायक सुदामा थोड़ी सी मेहनत कर देते तो पुष्पराजगढ़ में भी कमल खिल जाता।
जन्मभूमि से कर्मभूमि तक का सफर पड़ा भारी
भाजपा प्रत्याशी हीरा सिंह के जन्म भूमि अमगंवा के आसपास के क्षेत्र में वह चाहे बसही हो या धोबे हो अचलपुर यही नहीं लपटी बटकी, दोनिया, ताली के साथ-साथ भाजपा प्रत्याशी की कर्मभूमि रहा लालपुर क्षेत्र से भी जनता ने उसे तरह से समर्थन नहीं दिया जिस तरह की आशा लगाई जा रही थी इन क्षेत्रों में भाजपा प्रत्याशी को जनता ने क्यों नहीं स्वीकार किया इसके कई कारण है लेकिन मुख्य रूप से जो कारण जनता के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है वह यही है कि यहां पर लोग भाजपा प्रत्याशी से नहीं भाजपा प्रत्याशी के साथ रहने वाले कुछ ऐसे चेहरे को पसंद नहीं करते थे जिनकी क्षेत्र में असामाजिक गतिविधियों में नाम आता रहता था। फिलहाल साफ शब्दों में कहा जाए तो इस क्षेत्र में ना तो बीजेपी हारी न तो हीरा यहां पर हार हुई हीरा के साथ रहने वाले उन चेहरों की जो हीरा के नाम का दुरुपयोग करके अपनी दुकान चला रहे थे। यहां पर यह भी बता दिया जाए कि यह वही क्षेत्र है जहां से एक बार हीरा और एक बार उनकी मम्मी जिला पंचायत सदस्य रही है यही नहीं हीरा जब पुष्पराजगढ़ क्षेत्र का जनपद अध्यक्ष बना तो वह लालपुर क्षेत्र से ही जनपद पंचायत का सदस्य बना था। बीते पंचायत चुनाव में जब हीरा के गृह क्षेत्र से जनपद पंचायत का चुनाव कांग्रेस के प्रत्याशी रहे अशोक पांडे जीत गए थे तो इस समय इस बात का स्पष्ट संकेत हो गया था कि इस क्षेत्र की जनता अब हीरा को पसंद नहीं करती और अब विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद इस क्षेत्र की जनता ने इस बात पर अपना ठप्पा लगा दिया। 
धार्मिक नगरी अमरकंटक में भी नहीं मिला समर्थन
पुष्पराजगढ़ विधानसभा में स्थित धार्मिक नगरी मां नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक में भी भाजपा प्रत्याशी हीरा सिंह को उतना समर्थन नहीं मिला जितना यहां पर भाजपा के लोकसभा या विधानसभा प्रत्याशियों को मिलता चला आ रहा था। इसके पीछे भी कई कारण बताए जा रहे हैं लेकिन जो मुख्य रूप से जनता के बीच में चर्चा का विषय बना हुआ है वह यही है मतदान के एक दिन पहले एनजीटी का आदेश और मौली सरकार का अंधभक्त होकर हीरा को समर्थन करना और उनके लिए खुद पार्टी बनकर अमरकंटक में हल्ला बोलना भारी पड़ा है। यही नही अमरकंटक के एनजीटी को लेकर जो हंगामा है उसके मुख्य कर्ताधरता का हीरा के साथ चुनाव में मौजूद रहना महंगा साबित हुआ। फिलहाल जब हार होती है तो छोटे-छोटे कारण भी नासूर बनकर टीस दर्द देते रहते हैं और इनसे सबक लेकर जो आगे बढ़ चला है बाद में वही सिकंदर कहलाता है।