इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के अर्थशास्त्र विभाग के तत्वावधान में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के अर्थशास्त्र विभाग के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा मध्य प्रदेश आर्थिक परिषद के 34 वें सम्मेलन के समारोप में कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए विश्वविद्यालय के प्र.कुलपति प्रोo व्योमकेश त्रिपाठी ने कहा की यह राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मेलन निश्चित रूप से अपने अभीष्ट को प्राप्त की है, इस संगोष्ठी में शोध पत्रों का वाचन विद्यार्थियों और भारतीय समाज के लिए मार्गदर्शन का काम करेगी । जनजातीय अध्ययन में अनुसंधान का उद्देश्य उनके पारंपरिक ज्ञान, भाषाओं, संस्कृति और कला रूपों को संकलित करना और संरक्षित करना है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनका सांस्कृतिक धरोहर आधुनिकता के प्रभाव से नष्ट न हो। इस प्रकार का अनुसंधान न केवल उनके परंपराओं को जीवित रखता है, बल्कि यह समाज में उनकी पहचान को भी मजबूती से बनाए रखने में सहायक होता है। जनजातीय समुदायों के पास अपार सांस्कृतिक धरोहर और पारंपरिक ज्ञान है, जिन्हें हम आधुनिक विकास के साथ जोड़कर सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों का समाधान कर सकते हैं। उनके अनूठे दृष्टिकोण और जीवनशैली को ध्यान में रखते हुए, यह अनुसंधान उन समुदायों के लिए अधिक समावेशी और स्थायी समाधान विकसित करने में मदद कर सकता है। जनजातीय विकास के संदर्भ में अनुसंधान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह जनजातीय समुदायों की विशेष ज़रूरतों को समझने और उनका समाधान करने के लिए नीतियां और कार्यक्रम तैयार करने में सहायक होता है। उपयुक्त अनुसंधान से प्राप्त जानकारी के आधार पर, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और स्थायी आजीविका कार्यक्रम बेहतर तरीके से तैयार किए जा सकते हैं, जो जनजातीय समाज के समग्र विकास के लिए जरूरी हैं ।
बतौर मुख्य अतिथि रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के अर्थशास्त्र के अध्यक्ष, *प्रोo एनo जीo पेंडसे* ने यह कहा की हम सभी यूरोप या अमेरिका के अर्थशास्त्र को विषय के रूप मे पढ़कर भारत की अर्थ व्यवस्था को समझने का प्रयास करते हैं, वस्तुतः पाश्चात्य सोंच में अर्थव्यवस्था या तो सरकार चलाती या बाजार चलाती है, जबकि भारतीय विचार में अर्थव्यवस्था परिवार चलाती है | इसलिए अध्ययनों में सामग्रियों तथा उपकरणों का अंधानुकरण न करके सतर्कता की आवश्यकता है, यूरोपीय अर्थव्यवस्था यांत्रिक जबकि भारतीय अर्थ व्यवस्था यांत्रिक नहीं है । यही वजह है की कुम्भ में 66 करोड़ लोग स्नान करने आते है, यह के लोगों को व्यवसाय इत्यादि से आर्थिक समृद्धि भी आती है, और इस आयोजन में कोई नुकसान भी नहीं पहुचा । अतः हमारा उद्देश्य संस्कृति का निर्माण करना होना चाहिए और विकृति को कम करना होना चाहिए । भारतीय अर्थ व्यवस्था के शक्ति के कई स्रोत है जैसे शून्य शक्ति विद्यमान है, संसाधनों का प्रबंधन होना चाहिए, उत्पादकता की वृद्धि होनी चाहिए, मेंटल सेट में परिवर्तन होना चाहिए। आगे उन्होंने यह भी कहा की अर्थव्यवस्था में "लीकेज" की समस्या बंद होनी चाहिए, भारत को ऐसा बनाना है जो समग्र में विश्व को मार्ग दिखाने में समर्थ हो, वैश्विक आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके । भारतीय युवाओं की सक्षमता सामर्थ्य और स्वाभिमान निश्चित ही आगे का उत्कृष्ट नया अध्याय लिखेगा ।
समाज विज्ञान संकाय की अधिष्ठाता प्रोo नीति जैन ने राष्ट्रीय संगोष्ठी एवं सम्मेलन में देश भर के शोधार्थी द्वारा वाचन किए गए शोध पत्रों तथा सम्पूर्ण कार्यक्रम के परिणाम का विस्तार से उल्लेख किया।विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की अध्यक्ष प्रोo प्रोo रक्षा सिंह ने स्वागत उदबोधन दिया । उद्बोधन के क्रम में मध्य प्रदेश आर्थिक परिषद के अध्यक्ष प्रोo केशव टेकाम ने अपने उद्बोधन में शोधरथियों द्वारा वाचन किए गए शोधपत्रों की सराहना की । कार्यक्रम की अगली कड़ी में राजाराम कटारा ने जनजातीय समुदाय पर हो रहे अध्ययनों की वर्तमान स्थिति का उल्लेख करते कहा की लोगों को जनजातीय समुदाय को समझने की जरूरत है । जनजातीय समुदाय में संलग्न हो कर उनके संवर्धन की बात करें । इस परिस्थिति को उन्होंने अपने एक केस स्टडी के माध्यम से किया ।
कार्यक्रम का सफल संचालन अर्थशास्त्र विभाग के सहायक आचार्य डॉo आनंद सुगंधे ने किया तथा आभार ज्ञापन सहायक आचार्य डॉ बिमलेश सिंह ने किया l
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्य प्रोo आलोक श्रोत्रिय, प्रोo तरुण ठाकुर, प्रोo शिवकान्त त्रिपाठी, डॉo कृष्ण मुरारी सिंह इत्यादि शिक्षक और विद्यार्थी सहित अन्य विश्वविद्यालय के आचार्य प्रोo केवल जैन, प्रोo शरद तिवारी, डॉo नीता तपन, डॉo अरुणा कुशमकर सहित अन्य शिक्षक, विद्यार्थी तथा शोधार्थी उपस्थित रहे l