धूल, धुंआ और डस्ट से फैल रही बीमारियां, प्रदूषण विभाग बना शो-पीस नियम कानून का नही खदानों में पालन ग्रामीण और शहरी क्षेत्र हो रहे प्रभावित

धूल, धुंआ और डस्ट से फैल रही बीमारियां, प्रदूषण विभाग बना शो-पीस नियम कानून का नही खदानों में पालन
ग्रामीण और शहरी क्षेत्र हो रहे प्रभावित
(विजय उरमलिया)
अनूपपुर। जिले की पहचान खनन से होती है और यहां पर पत्थर, कोयला, रेत, मुरूम, बाक्साइड की खदानें मौजूद है। इस क्षेत्र में 70 परसेंट लोगों का रोजगार लगभग दो लाख बाहरी लोगों की रोजी-रोटी खनन कार्य में लगे होने के कारण ही है पर यही अब इस क्षेत्र की जनता के लिए वरदान की जगह अभिशाप बनता जा रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ शहरी क्षेत्रो में भी आंखों की दमा और सिलीकस जैसी बीमारियां फैल रही है वही ग्रामीण क्षेत्रों में भी जहरीली डस्ट और धूल को लेकर आम ग्रामीण जनता में कई तरह की बीमारियों का संकेत मिलना शुरू हो गया है। जिसकी तरफ सरकार और इन क्षेत्रों के सरकार के प्रतिनिधि सांसद विधायक अंजान बने हुए हैं जो चिंता का कारण है अनूपपुर जिले में एसईसीएल कॉलरी की 12 खदानें हैं जिसमें पर अपरोक्ष रूप से लगभग 5 लाख लोगों की रोजी-रोटी जुड़ी है लगभग एक लाख परिवार इस कॉलोनी क्षेत्र में कालरी क्षेत्र की कॉलोनी या खाली जगह पर बने मकानों में निवास करते हैं जो खाना बनाने के लिए मुफ्त में उपलब्ध कोयले का उपयोग करते हैं यही नहीं इन क्षेत्रों में चाय नाश्ते की दुकानों में बाजारों में भी भट्ठियों में कोयले का उपयोग देखा जा सकता है इनको जलने से जो जहरीली घुंुआ निकलती है वह अब खतरनाक होती जा रही है। शहर की प्रमुख सड़कों पर धूल के गुब्बार उठना आम बात है, नगरी क्षेत्र एवं गांव की गलियों में धूल के गुबार उठते हुए देखे जाना विशेष चिंता की बात है। इन क्षेत्रों में राहगीरों का आना जाना मुश्किल हो गया है, तो वहीं सड़क किनारे सब्जी, फल, दुकान लगाने वाले दुकानदार भी उड़ती धूल से खासे परेशान है।
डस्ट से भरता हैं दम
टनूपपुर जिले के कोने-कोने में चाहे वह शहरी इलाका हो या ग्रामीण सभी जगह 24 घंटे डस्ट आसमान की ओर उठती हुई देखी जा सकती हैं, जिससे यहां की दुकान, मकान सहित हर चीज में डस्ट की कहर देखी जा सकती है। इसके अलावा यह डस्ट हवा में घुसकर शहर और ग्रामीण क्षेत्रो की जनता के स्वास्थ्य बिगाडने का भी काम कर रही है। जैसे अनूपपुर से कोतमा, राजनगर, बिजुरी, राजेंद्रग्राम, इंदिरा गांधी जनजाति विश्वविद्यालय, लालपुर, दोनिया, ताली, बटकी, देवरा, अमलाई, धनपुरी, शहरी क्षेत्र में स्टोन क्रेशर, फ्लाई एस ब्रिक्स, कालरी खदान अन्य फैक्ट्रियां भी संचालित हैं, जिससे भी शहर की आवोहवा खराब हो रही है। यह लोगों के स्वास्थ्य पर सीधा असर कर रही है। फिलहाल चाहे कालरी क्षेत्र हो या फिर पत्थर की खदानो के इलाके या फिर सडक के किनारे धूल उडाते क्रेषर प्लांट जहां के लिये सरकार के पर्यावरण विभाग से कई तरह के नियम कानून बनाये गये है। लेकिन कही पर भी प्रदूषण नियंत्रण के लिये किसी भी प्रकार के नियम कानून का पालन नही देखा जा रहा है। यही नही कालरी क्षेत्र के सोषल बेल्फेयर फंड द्वारा भी ग्रामीण क्षेत्र की जनता का भी स्वास्थ परीक्षण कराये जाने का भी प्रावधान है, लेकिन कालरी क्षेत्र का सोषल वेलफेयर फंड कहां खर्च हो जाता है इसका किसी को कोई जानकारी नही है।