शासन प्रशासन की तुगल की नीति के कारण विकास की जगह बर्बाद होता रहा अमरकंटक
जिसको भी मिला मौका वही लगाया लूट का चैका

इन्ट्रो-मां नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक के बारे में कहा जाता है कि यहां का हर कंकर शिव शंकर होता है वही अमरकंटक के विकास को लेकर शासन प्रशासन के जिम्मेदारों ने समय-समय पर अपनी तुगलक की नीतियों के कारण इस क्षेत्र के विकास की जगह इसको बर्बाद करने में कोई और कसर नहीं छोड़ी है। अगर यह कहा जाए की यहां पर जो भी आया वह अपनी मनमानी करते हुए ऐसे ऐसे फैसले लिए की उन फैसलों के कारण अमरकंटक की जनता आज भी प्रभावित हो रही है।
अनूपपुर। मां नर्मदा का उद्गम स्थल अमरकंटक जहां से कल कल प्रभावित हो रही मां नर्मदा का निर्मल जल जिसके दर्शन और स्नान करके अमरकंटक से भरूच तक करोड़ों जनता पुण्य लाभ अर्जित करती है और यही नहीं मां नर्मदा को मध्य प्रदेश की जीवन रेखा भी माना जाता हैस मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर भारत सरकार के प्रधानमंत्री तक ने लंबी लंबी घोषणाएं  करके कई योजनाएं शुरू की कुछ तो शुरू होने के पहले ही दम तोड़ दी तो कुछ शुरू भी नहीं हो पाई लेकिन यहां पर यह कहा जा सकता है कि अमरकंटक को लेकर शासन प्रशासन की तुगलकी नीति के कारण अमरकंटक क्षेत्र का विकास हमेशा से बाधित रहा अगर यहां पर यह कहा जाए कि यह क्षेत्र केवल यहां के प्रशासनिक और शासन के और अदूरदर्शी नीतियों के कारण ही बर्बादी के कगार पर खड़ा है तो गलत नहीं है। अमरकंटक तीर्थ क्षेत्र के विकास के लिए गठित विशेष बोर्ड साडा ने अमरकंटक के विकास के लिए मूलभूत आवश्यकता  जुटाने के साथ-साथ यहां की बसावट को व्यवस्थित करने के लिए 1970 के पहले एक मास्टर प्लान बनाया था और सूत्रों की जानकारी के अनुसार यह मास्टर प्लान उसे समय के मुख्य सचिव आचार्य के नेतृत्व में तैयार किया गया था इसी मास्टर प्लान के तहत अमरकंटक नगर को सुवस्थित रखने के उद्देश्य से साधु संत महात्माओं के साथ-साथ अमरकंटक के नागरिकों को प्लाट आवंटित किए गए थे लेकिन 1995 में यहां से साडा को खत्म करके नगर परिषद बना दिया गया और साडा द्वारा तैयार किए गए मास्टर प्लान को फाइलों में कैद करके यहां पर नियुक्त होने वाले अधिकारी और जनप्रतिनिधियों ने अपनी मनमानी करते हुए अमरकंटक की बसावट के साथ ऐसा खिलवाड़ किया कि यहां की जनता आज भी उसे त्रासदी को झेल रही है।
हुड़को की फेल योजना से नहीं लिया गया सबक


विशेष प्राधिकरण बोर्ड ने अमरकंटक की नर्मदा कुंड के आसपास या यह कहा जाए कि सरकारी जमीन पर अवैध अतिक्रमण करके बनाए गए मकान के बदले यहां की जनता को कई बार दूर दराज स्थित क्षेत्र में बसने की कोशिश की लेकिन उसे सफलता आज तक नहीं मिली। बताया जाता है कि इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर बाराती के वार्ड नंबर 2 में खसरा नंबर 181/1 5 हेक्टेयर क्षेत्र में खुद को कॉलोनी बसाई जाने के लिए 196 मकान बनाए जाने का फैसला किया गया था जिसमें से हुडको द्वारा 36.80 लाख और बैंक से 42.59 लाख बैंक से कर्ज लिया गया था। लेकिन बाद में साडा के जाने के बाद नगर परिषद बनने पर इस योजना पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और यह योजना फेल हो गई वैसे इसके पीछे भी कई कारण बताए जाते हैं जिसमे सबसे मुख्य कारण जिस क्षेत्र में कॉलोनी की सजावट की जा रही थी उसमें वन विभाग की जमीन का होना। इस योजना के फेल होने के बाद नगर परिषद अमरकंटक किसी तरह से बैंक को उसे कर्ज को चुका रही है और जनता के खून पसीने की कमाई टैक्स रूप में जो नगर परिषद वसूलते हैं उसे ब्याज के रूप में बैंक को दे देती है। अगर उस समय के अधिकारियों ने तुगलकी नीति को दरकिनार करके अमरकंटक के विकास सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए इस कॉलोनी को कहीं आसपास व्यवस्थित ढंग से बनवाने में सफल हो जाते तो अमरकंटक की एक बहुत बड़ी समस्या समाप्त हो जाती।
108 दुकानों के नुकसान की भरपाई कौन भरेगा


कभी ग्रीन नर्मदा कभी क्लीन नर्मदा कभी सैटेलाइट सिटी कभी स्मार्ट सिटी के सियासी नारे और घोषणाओं के साथ अमरकंटक की पल-पल बदलती तस्वीर और यहां के अधिकारियों की मनमानी इस बात का गवाह है कि यहां पर जो भी शासन प्रशासन की योजनाएं शुरू की गई उस पर विशेष विचार विमर्श ना करके आनन फानन में ऐसे कदम उठाए गए की उसमें जनता के पैसे को बर्बादी के सिवा कुछ और नहीं मिला। उदाहरण के तौर पर रामघाट के सामने मिनी स्मार्ट सिटी योजना के तहत लगभग एक करोड रुपए की लागत से बनाई गई 102 दुकानों को देखा जा सकता हैस यहां पर यह बता दिया जाए कि रामघाट में दुकानों का निर्माण उसे समय किया गया जब यहां का मामला एनजीटी में चल रहा था और नर्मदा के दोनों तत्वों पर 300 मीटर के अंदर के निर्माण कार्यों पर रोक लग चुकी थी ऐसे में लगभग एक करोड रुपए की लागत से बनी 102 दुकानों के योजना जनता के पैसे की बर्बादी के सिवा और कुछ नहीं कहा जा सकता और अब जब एनजीटी के सर्वे के निर्देशानुसार उक्त दुकानों को हटाए जाना तय माना जा रहा है तो यहां पर यह सवाल भी खड़ा होता है कि जनता के पैसे की बर्बादी का खुला खेल खेलने वाले अधिकारियों या जनप्रतिनिधियों को भी इसका जिम्मेदार माना जा सकता है।