नर्मदा की धार्मिक आस्था एवं परम्परा महिमा को रेखांकित कर उनकी महत्ता पर प्रकाश लोक संस्कृति, लोकगीत उसके संवाहक बनकर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गाये जाते

नर्मदा की धार्मिक आस्था एवं परम्परा महिमा को रेखांकित कर उनकी महत्ता पर प्रकाश
लोक संस्कृति, लोकगीत उसके संवाहक बनकर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गाये जाते
अमरकंटक। नर्मदा के सर्व धर्म समभाव को भी इस पुस्तक में रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। नर्मदा के तटीय स्थलों में हिन्दू सम्प्रदाय, जैन सम्प्रदाय, कबीर पंथ, बौद्ध सम्प्रदाय, सिक्ख सम्प्रदाय, मुस्लिम सम्प्रदाय व अन्य पंथों के समाधि एवं स्मारक व दरगाह की उपस्थित है। सभी धर्मों के आध्यत्मिक साधक नर्मदा तट पर आये और उन्होंने यहाँ पर आध्यात्मिक सफलता प्राप्त की। नर्मदा का लोकजीवन में महत्व को रेखांकित करते हुए लोक संस्कृति में लोकगीतों के माध्यम से नर्मदा की महिमा एवं उसकी प्रशस्ति का वर्णन इस कृति की विशेषता है। नर्मदा तटीय स्थलों में प्रचलित मालवी संस्कृति, निमाडी संस्कृति के लोकगीतों में नर्मदा के महत्व का विश्लेषण इस कृति में किया गया है। इससे प्रमाणित होता है कि नर्मदा के प्रति लोगों में गहरी आस्था है और लोक संस्कृति, लोकगीत उसके संवाहक बनकर आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में गाये जाते हैं। अंत में नर्मदा घाटी के बदलते स्वरूप के कारण सांस्कृतिक प्रभाव में होने वाले बदलाव का अध्ययन किया गया है। जिसमें नर्मदा में बने बांधों से सांस्कृतिक स्थलों पर पड़ने वाले प्रभाव, बांध के निर्माण में विस्थापित की गई संस्कृतियों का प्रभाव, धरोहर आदि डूब में आने से धार्मिक एवं सांस्कृतिक बदलाव आदि तथ्यों का उल्लेख इस कृति में किया गया है। परिशिष्ट के अंतर्गत सन्दर्भ ग्रन्थ सूची, मानचित्र एवं छायाचित्र आवश्यकतानुसार लगाये गये हैं। यह कृति लेखक का प्रथम विनम्र प्रयास है, जो माँ नर्मदा के आशीर्वाद से ही संभव हो पाया है। आशा करता हूँ कि यह कृति अध्येताओं, विद्वानों एवं जनसामान्य तथा नर्मदा के प्रति गहरी आस्था रखने वाले श्रद्धालुओं के लिए बहु उपयोगी होगी। प्राचीनता को रेखांकित करते हुए उनकी क्षेत्र की पर्वत श्रेणियाँ एवं विस्तार पर शोधपरक अध्ययन किया गया है तथा ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को अभिलेखीय और साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर विवेचन कर उसके सांस्कृतिक महत्व को प्रतिपादित किया गया है। इस कृति के अंतर्गत नर्मदा के उद्गम क्षेत्र अमरकण्टक से जबलपुर तक के प्रमुख तटवर्ती स्थलों का सांस्कृतिक अध्ययन किया गया है। जिसमें नर्मदा के तटवर्ती जिला अनुपपुर का अमरकण्टक क्षेत्र, डिण्डोरी जिला एवं मण्डला जिले का समावेश कर उनके नर्मदा तटीय सांस्कृतिक स्थलों का सर्वेक्षण कर उनकी ऐतिहासिकता, धार्मिकता एवं पुरातात्विक अध्ययन कर आलेख तैयार किया गया है। इस कृति में नर्मदा क्षेत्र की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि अभिलेखीय एवं साहित्यिक साक्ष्यों के आधार पर तैयार की गई हैं। जिसमें पौराणिक इतिहास से लेकर आधुनिक इतिहास य स्वतंत्रता आंदोलन तक विवरण क्रमानुसार लेखबद्ध किया गया है, जिससे इस क्षेत्र की ऐतिहासिकता अभिज्ञात हो सके। इस कृति के अंतर्गत जबलपुर से होशंगाबाद तक के प्रमुख तटवर्ती स्थलों का विश्लेषण किया गया है। जिसके अंतर्गत जबलपुर, नरसिंहपुर एवं होशंगाबाद जिले हैं। इन जिलों के नर्मदा तटीय प्रमुख स्थलों का सांस्कृतिक अनुशीलन करने हेतु सर्वे की जाकर इनकी प्राचीनता, ऐतिहासिकता के साथ घाट, मंदिर, संगम स्थल एवं अन्य स्मारकों का वर्णन किया गया है। नर्मदा तटीय मध्यप्रदेश में सीमान्त क्षेत्र होशंगाबाद से बड़वानी के प्रमुख सांस्कृतिक स्थलों का विश्लेषण किया गया है। जिसमें इन जिलों में नर्मदा तटीय घाट, मंदिर एवं संगम स्थल तथा अन्य महत्वपूर्ण धार्मिक स्थलों को रेखांकित करते हुए इन पर आलेख तैयार किया गया हैं। नर्मदा तटीय इस क्षेत्र में ओंकारेश्वर एवं महेश्वर जैसे प्रमुख ऐतिहासिक मंदिरों का वर्णन है। इसके पश्चात् बड़वानी से भरूच (रवासागर संगम) तक प्रमुख तटवर्ती स्थलों का वर्णन इस कृति की उपादेयता है। नर्मदा एक नदी ही नहीं अपितु एक देवी माँ के रूप में प्रतिस्थापित हैं। नर्मदा को सिद्ध क्षेत्र कहा जाता है। यहाँ सदियों से ऋषि-मुनियों, तपस्वियों की तपोस्थली रही हैं तथा आज भी अनेक सिद्धपुरुष, तपस्वी, महात्मा इसी क्षेत्र से हैं। नर्मदा के प्रति गहरी धार्मिक आस्था होने के कारण यह उपासना, पूजा-अर्चना, स्नान, तीर्थ, स्नान-दान, दीपदान, पर्व एवं मेले आदि का धार्मिक महत्व एवं जीवकोपार्जन में नर्मदा के योगदान को दर्शाया गया है। वहीं नर्मदा प्रतिमाओं का विश्लेषण कर नर्मदा भारत की पवित्र नदियों में से एक है। इस नदी के संबंध में पौराणिक मान्यता है कि इसमें कहीं भी और कभी भी स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त किया जा सकता है। इस नदी को सरस्वती और गंगा के समान स्नान-दान की मान्यता मिली है। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि गंगा में स्नान करने से पाप से मुक्ति मिलती है, गंगोत्री में स्नान से मोक्ष की प्राप्ति होती हैं, किन्तु नर्मदा के दर्शन मात्र से मनुष्य को मुक्ति मिल जाती हैं।