परशुराम जयंती पर राम जानकी मंदिर में भक्ति की गंगा, लवलीन महाराज ने दादा परशुराम के  जीवन के आदर्शों पर प्रकाश डाला। 

अनूपपुर ।
धार कुंडी आश्रम की पावन छाया में बसे राम जानकी मंदिर में परशुराम जयंती इस वर्ष एक अनुपम आध्यात्मिक अनुभव बन गई। मंदिर परिसर में सुबह से ही श्रद्धालुओं का आगमन शुरू हो गया था। गूंजते भजन, दीपों की ज्योति, और आरती की सघन गूंज ने वातावरण को दिव्यता से भर दिया।

पूजा-अर्चना के उपरांत भंडारे का आयोजन हुआ, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। इस पुण्य अवसर पर स्वामी लवलीन महाराज (धार कुंडी आश्रम) की उपस्थिति विशेष रूप से उल्लेखनीय रही।

स्वामी जी ने अपने ओजस्वी प्रवचन में भगवान परशुराम के जीवन की गाथा को सरल और गहन भाषा में प्रस्तुत करते हुए कहा,
"भगवान परशुराम केवल परशुधारी योद्धा ही नहीं, बल्कि धर्म, संयम और न्याय के प्रतीक हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि जब अधर्म सिर उठाए, तो सज्जनों को भी वीर बनना पड़ता है।"

कार्यक्रम में शांत समाज के सचिव श्री दांडी महाराज (हनुमत आश्रम, खामिडोल) एवं राजेश जी महाराज (अमरकंटक) की गरिमामयी उपस्थिति ने आयोजन को और भी पावन बना दिया।

यह आयोजन  राम नारायण द्विवेदी संयोजक विप्र समाज के आमंत्रण पर हुआ उन्होंने कहा यह मात्र एक धार्मिक परंपरा नहीं था, बल्कि यह पीढ़ियों को यह सिखाने का माध्यम था कि ऋषियों का जीवन आज भी प्रासंगिक है।

शब्दों के माध्यम से जब लवलीन महाराज परशुरामजी के चरित्र को उकेर रहे थे, तब हर श्रोता भाव-विभोर था — मानो किसी ने उनके हृदय में धर्म का दीपक प्रज्वलित कर दिया हो।