फसल अवशेष न जलाएं, भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ाएं व पर्यावरण बचाएं
उप संचालक कृषि ने की ग्रीष्मकालीन फसलों के अवशेषों को न जलाने की अपील
 
अनूपपुर। उप संचालक कृषि ने ग्रीष्मकालीन फसलों के अवशेषों को न जलाने की अपील की है। उन्होंने बताया है कि इस तरह से भूमि की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने फसल अवशेष जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में भी अवगत कराया है। उन्होंने बताया है कि फसल अवशेष जलाने से हानिकारक गैस निकलती है, जो कि मनुष्यों व पशुओं के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है। अवशेष जलाने से उठने वाले धुएं से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, मीथेन, नाईट्रीक आक्साईड, आदि हानिकारक गैस उत्पन्न होती हैं, जो वातावरण को प्रदूषित करती है। फसलों के अवशेष में आग लगाने से भूमि की ऊपरी परत पूरी तरह जलकर कठोर हो जाती है। जिससे भूमि में वायु व जल का संचार घट जाता है। साथ ही भूमि में रहने वाले लाभदायक जीवों व अदृश्य सूक्ष्म जीवो की संख्या कम हो जाती है। मित्र जीवाणुओं की संख्या कम होने पर जमीन की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है। इसके साथ ही पशुओं के लिये चारे की उपलब्धता कम हो जाती है। धुंए की वजह से आंखों में जलन व धुंधलापन व सांस रोगियों को सांस लेने में दिक्कत का भी सामना करना पड़ता है। फसल अवशेष जलाने से हानिकारक गैसों का उत्सर्जन होता है, जिससे वायुमंडल का तापमान बढ़ता है और फसलों की उत्पा दकता पर प्रतिकूल असर पड़ता है।  
फसल अवशेष को जमीन में मिलाने से है फायदे
उप संचालक कृषि ने फसल अवशेष को जमीन में मिलाने से होने वाले फायदे के बारे में भी बताया है। उन्होंने बताया है कि फसल अवशेषों को लगातार 3-4 वर्ष खेतों में मिलाने से पोषक तत्वों की वृद्धि होती है एवं सिंचाई की बचत होती है। मृदा का पीएच मान ठीक रहता है एवं उर्वरकों की उपलब्धता व स्थिरीकरण अधिक समय तक रहता है। भूमि एवं वातावरण में प्रदूषण नहीं फैलता है। फसल अवशेषों को जमीन में मिलाने पर उत्पादकता स्तर में वृद्धि होती है।