पुण्य और पुरुषार्थ में केवल समय का अंतर - मुनि श्री सौम्य सागर 
मुंगावली। पुण्य और पुरुषार्थ में केवल समय का अंतर होता है क्योंकि जिसको आप पुण्य बोल रहे हो वह आपके पूर्व जन्म का पुरुषार्थ है और जिसको आप पुरुषार्थ बोल रहे है वह भविष्य का पुण्य और आज का पुरुषार्थ है,जैसे है वर्तमान के पुरुषार्थ को सब कुछ कहते है तो हम पूर्व जन्म के पुण्य को क्यों गौण कर रहे है,आप सबके पूर्व पुण्य का उदय था जो आज वर्तमान में आपका पुरुषार्थ सफलता के रूप में सामने आ गया, अपने पुण्य का सही उपयोग करना कुछ ही लो जानते है उत्साह हो जाना महत्वपूर्ण है मगर उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है उत्साह को बनाए रखना कर्म आपको कभी भी उस नही छेड़ता जब आप अपनी पूरी कमाई को मकान और बड़े व्यापार में लगाते हो उस समय वो आपसे नही बोलेगा क्योंकि वह इंतजार कर रहा होता है आप लोग जब प्रोपटी खरीदते है तब कैसे इसकी रकम जमा की जाएगी यह नही सोचते और सोचते है सब जमा हो जाएगा और आपके दिमाग में प्रोपटी रहती है की यदि नही हो पाया तो इसको बेच दुगा और पैसा बापिस आ जाएगा और जो आपकी कमाई है उसकी रिक्स ले लेते हो क्योंकि वह आपकी स्वयं की होती है और आज पब्लिक प्रोपटी जो की आचार्य विद्यासागर जी महाराज की है उसमे आप सोचते है जबकि यह सोचना चाहिए की हमे कई भवो का काम करना है और स्वयं नही सार्वजनिक पर ध्यान देना चाहिए उक्त उदगार नगर में विराजमान संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनि श्री सौम्य सागर जी महराज ने पुराना बाजार स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में एक धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहे आगे कहा की साधु आपकी स्वयं की संपत्ति है या पब्लिक की तो उन्होंने कहा की साधु हमेशा आम सभी भक्तों के होते हैं  और जिन्हे साधु पर पूरा विश्वास करके अपने आत्म विश्वास  को जगाया है साधु उनकी स्वयं के हो जाया करता है अपने किये कर्म हमेशा न्याय करता है यह बात हमेशा ध्यान रखना पूर्व जन्म में किए गए पुण्य है जो आपको आज सब अच्छा मिल रहा है इसलिए इस जन्म में कुछ अच्छा कर लो जिससे आने वाले भवो में भी अच्छा मिले इसलिए स्वयं नही सार्वजनिक संपत्ति के पीछे भागो जो साधु की होती है।