बदले चेहरे नहीं बदली कोतमा विधानसभा क्षेत्र की तस्वीर, अब भी लगा है समस्याओं का अंबार
चुनाव में करते है वादे जीतते ही बदल जाते है इरादे
बिजुरी। अब भारतीय लोकतंत्र में राजनीति की परिभाषा बदल सी गई है। मतदाताओं द्वारा चुनाव में जीत कर उनके क्षेत्र के विकास का वादा करने वाले राजनेता अपने वादों से ही मुकर रहे हैं। कई दशकों से देश की राजनीतिक गलियारे में चहलकदमी कर रही कांग्रेस के साथ हाल के वर्षो में मतदाताओं में नई आशा की किरण बनकर आई भाजपा की स्थिति भी इसके इतर वहीं बन गई है। लोकलुभावने सपने में हकीकत की जमीन खींची हुई है। हालांकि मतदाताओं के पास राजनीति में नई चुनौतियों के साथ विकास के मुद्दों पर सेवा करने वाले राजनीतिकों की कमी और धन-बल व बाहुबली राजनीतिक हावीपन से मतदाताओं के लिए पुराने चेहरे ही हार-जीत के शेष विकल्प हैं। जिसके कारण क्षेत्र में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक व्यवस्थाओं के साथ लोगों की मूल अव्यवस्थाओं में कोई बदलाव नहीं हुआ है। अनूपपुर जिले की कोतमा विधानसभा क्षेत्र भी इस रोग से ग्रसित है। औद्योगिक इकाई के रुप में कोयला खदानों और रोजगार की असीम संभावनाओं के बावजूद जहां दशको से क्षेत्र के विकास का दिवा स्वप्र दिखाकर जीते राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के चेहरे कई बार भले ही बदलों हो, लेकिन कोतमा विधानसभा क्षेत्र का विकास और सामाजिक परिदृश्य में कोई बदलाव नहीं आया है। राजनेता मतदाताओं के विश्वास पर खरे नहीं उतर सके हैं। कोतमा मुख्य नगरीय क्षेत्र के साथ बिजुर, रामनगर उपनगरीय क्षेत्र की आदिवासी जनता आज भी समूचित शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, उच्च तकनीकि शिक्षा, सडक, बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रही है। वर्ष 2003 में अनूपपुर जिले के गठन के उपरांत कोतमा विधानसभा क्षेत्र से 2008 से 2013 तक भाजपा से विधायक रहे दिलीप जायसवाल पर कोतमा नगरवासियों ने पहली बार विकास की संभावनाओं पर जीत दिलाई थी, क्षेत्रवासियों को यकीन था कि स्थानीय स्तर के जमीनी नेता होने से उनके क्षेत्र का विकास होगा। इनमें खासकर दिलीप जायसवाल के गृहनगर बिजुरी के मतदाताओं में ज्यादा आशाए थी, यहां आज भी जंगल, कॉलरी और नगरीय क्षेत्र की सीमाओं में नगर का सम्पूर्ण विकास नहीं हो सका था, नगरी क्षेत्र के बावजूद अधिकांश वार्ड ग्रामीण अंचलों जैसे दिख रहे थे, यहां न तो सडक की सुविधा थी और ना ही पीने के पानी की समुचित व्यवस्था। करोड़ों की मासिक राजस्व देेने वाली कोयला खदानों के जिम्मेदार भी नगरवासियों को भगवान भरोसे छोड़ रखा था। लेकिन वहीं ढाक के तीन पात वाली कहावत पर उतरते हुए दिलीप जायसवाल ने चुनावी जीत के बाद कोतमा क्या अपने गृह नगर बिजुरी क्षेत्र का  भी विकास नहीं कर सके। देखते ही देखते पांच साल गुजर गए, इसके बाद 2013 से 2018 तक कांग्रेस से मनोज अग्रवाल और वर्ष 2018 से 2023 तक सुनील सराफ के हाथों विधायक की बागडोर थी हालांकि मनोज अग्रवाल पूरे पांच वर्ष तक विपक्ष के विधायक थे जबकि सुनील सराफ मात्र 15 महीने ही सत्ता दल के विधायक थे जबकि दिलीप जायसवाल पूरे पांच वर्ष तक सत्ता दल के विधायक थे यहां आज भी पानी, बिजली, सडक शिक्षा सहित अन्य मूलभूत सुविधाओं का अभाव बना हुआ है। कोतमा सामान्य सीट होने के कारण यहां अंदरुनी नेताओं के साथ बाहरी और पार्टी के टॉप लीडरों के लिए भी दिलचस्प भरा क्षेत्र रहा है, यहां विधायक बनने दर्जनों की तादाद में प्रत्याशियों की आपाधापी रहती है। लेकिन मतदाताओं के माथे पर यह लकीर अवश्य खींच गई है कि विधायक किसी भी पार्टी से क्यों न बने उनकी आम जरूरतों को उन्हें स्वयं ही पूरा करना होगा यानी खुद ही कुआ खोदो और पानी पीओ।