मनुष्यों और हाथियों के बीच संघर्ष मुख्य रूप से विभाग-दर-विभाग का मुद्दा है। @अजीत मिश्रा

मनुष्यों और हाथियों के बीच संघर्ष मुख्य रूप से विभाग-दर-विभाग का मुद्दा है।@अजीत मिश्रा की रिपोर्ट
पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्रधान मुख्य वन संरक्षक को दिए निर्देश@अजीत मिश्रा की रिपोर्ट
इन्ट्रो- छत्तीसगढ़ राज्य से विगत 28 दिन पूर्व आए दो प्रवासी नर हाथी वापस जाने को तैयार नहीं हो रहे हैं इसी बीच रायपुर वन्य प्राणी नितिन सिंघवी के आठ जुलाई को लिखे एक पत्र के जबाव में पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार के डॉ. राजेंद्र कुमार वैज्ञानिक सी प्रोजेक्ट एलीफेंट ने मध्यप्रदेष के प्रधान मुख्य वन संरक्षक को को पत्र लिख पूरें मामले में उच्च स्तरीय जांच के निर्देष दिए है। जिसमें डाक्टर राजेन्द्र कुमार ने लिखा की अनूपपुर जिले में हाथी के रेस्क्यू के मामले में वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और प्रासंगिक कानून/नियमों के तहत उच्च स्तरीय जांच कर जल्द से जल्द उचित कार्यवाही करें और इस मामले में इस मंत्रालय को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
अनूपपुर। विगत 28 दिनो से अनूपपुर जिले के अनूपपुर और जैतहरी रेंज में एक दर्जन से अधिक गांव में हाथी का तांड़व बदस्तूर जारी है। इससे निपटने के लिए एक तरफ जिला प्रषासन वन विभाग पर हाथी का रेस्क्यू कर उसे अन्यत्र भेजने के लिए दबाव डाल रही है तो दूसरी तरफ आम जनता भी जिला कलेक्टर को ज्ञापन देकर जन आंदोलन की तरफ रूख करने का स्पष्ट संकेत दे चुकी है तो दूसरी तरफ अनूपपुर जिला का वन अमला तरह-तरह का प्रयोग कर हाथी को अपने सीमा से बाहर खदेड़ने का असफल प्रयास करते दिख रही है। इस पूरे प्रयास में वन अमला द्वारा कर्नाटक से आए हाथी विषेषज्ञ डाक्टर रूद्र आदित्य को बुलाकर पहले एक हफ्ते तक वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 और प्रासंगिक कानून/नियमों के विरूद्ध अनरगल माध्यमो से सेड्यूल वन श्रंेणी में शामिल वन्य जीव हाथी को सीमा से बाहर खदेड़ने का असफल प्रयास किया। उसके बाद बंगाल से 14 सदस्यी हुल्ला पार्टी को बुलाकर हाथी के समक्ष मिर्ची बम, मसाल और तेज ध्वनी वाले विस्फोटको का प्रयोग कर हाथी को सीमा से बाहर खदेड़ने का असफल प्रयास लगातार जारी है। तो वही इस मामले में हमारे द्वारा 4 जुलाई 2024 को हमने एक समाचार सुप्रीम कोर्ट के नियम का खुला उल्लंघन, तो....वेस्ट बंगाल की हल्ला बोल टीम भी हो गई फेल, अब वन विभाग के देख रेख में हो रहा है खुलेआम कानून का उल्लंघन हेडलाइन से प्रकाषित की थी जिसको संज्ञान में लेते हुए रायपुर के एक वन्य प्राणी और एक्टिविस्ट नितिन सिंघवी ने आठ जुलाई को भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को एक पत्र लिखकर पूरे मामले में हस्ताक्षेप करने की मांग की थी।
नितिन सिंघवी ने यह लिखा पत्र में (फोटो क्रमांक 04, 05)
भारत सरकार के पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को अपने पत्र में गम्भीर चिंता व्यक्त करते हुए अनूपपुर जिला कलेक्टर और वन अमले पर कई सवाल खड़ें किए। उन्होने लिखा कि आपके ध्यान में लाया गया कि मिर्च फ्लेम्बियस के उपयोग के असफल परीक्षण के बाद, जंगल में घूम रहे दो बैल हाथियों को भगाने के लिए वन विभाग द्वारा अनूपपुर जिले में हुल्ला बोले (हल्ला बोल) पार्टियों को तैनात किया गया है। हाथी स्वतंत्र रूप से घूमने वाले जानवर हैं जो बड़े भूदृश्यों में घूमते हैं। ये नर हाथी अब इंसानों के जाल में फंस गए हैं। अब वे जहां भी जाते हैं, ऐसी प्रथाएं उन्हें उस क्षेत्र से बाहर भी नहीं निकलने देतीं, जहां इंसान उन्हें नहीं चाहते। नर हाथी अब निराश, चिड़चिड़े और क्रोधित हो गए है। वे किसी दुर्घटना या हताहत का कारण बन सकते हैं। उन्हें शांतिपूर्वक आगे बढ़ने की अनुमति देना महत्वपूर्ण है।
कलेक्टर के पत्र को बनाया आधार
नितिन सिंघवी ने अपने पत्र में अनूपपुर कलेक्टर आषीष वषिष्ट के एक पत्र जो उन्होने वन मण्डलाधिकारी अनूपपुर 17 जून 2024 को अपने पत्र क्रमांक 2585 कलेक्टर/आर.डी.एम/हाथी/2024 के माध्यम से जंगली हाथियों को इस क्षेत्र से भगाने का कार्य करने का कार्य करने के लिए लिखा था जिसको आधार बनाते हुए नितिन सिंघवी ने लिखा कि विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि कलेक्टर, एसपी और एसडीएम सहित जिले के प्रशासनिक अधिकारी वन अधिकारियों को हाथियों को हटाने के लिए मजबूर कर रहे हैं। लिखित आदेश के माध्यम से. अधोहस्ताक्षरी ने कलेक्टर के एक पत्र की एक प्रति संलग्न की है जो उसे विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त हुई थी।
वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 का हो रहा उल्लंघन
नितिन सिंघवी ने अपने पत्र के माध्यम से भारत सरकार को बताया कि हाथी अनुसूची 1 के तहत कानूनी रूप से संरक्षित जानवर हैं वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972। किसी को यह नहीं भूलना चाहिए उपर्युक्त अधिनियम की किसी भी अनुसूची द्वारा मनुष्य संरक्षित नहीं हैं। किसी भी वन्य जीव को हटाना उसे भगाने जैसा है, जो एक अपराध है उपरोक्त अधिनियम की धारा 51 के साथ पठित यूध्एस 2(16)(बी) के तहत। इस प्रकार, वन विभाग कानूनी रूप से इसकी रक्षा करने के लिए बाध्य है। हाथी पहले, किसी के दबाव से परे, और नहीं होना चाहिए। हाथियों को भगाने के लिए किसी भी तरह के गैरकानूनी तरीकों को अपनाएं दबाव। मौजूदा स्थिति इसका उदाहरण है. उपरोक्त व्याख्या इसे विभाग-विभाग संघर्ष कहने के लिए पर्याप्त है, जो मानव-हाथी संघर्ष को बढ़ा रहा है। अतः अनुरोध है कि म.प्र. के मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक को तत्काल निर्देशित करें। इस मामले को शासन के उच्चतम स्तर पर उठाने और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक एम.पी. हाथियों के हित में उचित कार्यवाही करने हेतु निर्देशित किया जाए। मुख्य वन्यजीव वार्डन को भी निर्देश दिया जाना चाहिए कि वे उन्हें पकड़कर कैद में न रखें, जैसा कि उन्होंने पहले भी कई बार गैरकानूनी तरीके से किया है।