अमरकंटक विकास का मास्टर प्लान न होने से सरकारी योजनाओं में लूट के मास्टरमाइंडों की चांदी कई करोड़ सरकारी धन बर्बाद करने के बाद भी नहीं ले रहे सबक

अमरकंटक विकास का मास्टर प्लान न होने से सरकारी योजनाओं में लूट के मास्टरमाइंडों की चांदी
कई करोड़ सरकारी धन बर्बाद करने के बाद भी नहीं ले रहे सबक
मां नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से निकलने वाली मां नर्मदा का कल कल प्रवाहित होता जल भले ही मध्य प्रदेश के लिए जीवन रेखा मानी जाती हो और अमरकंटक आकर पीएम से लेकर सीएम तक अमरकंटक के विकास का ठिठोरा पीटते देखे गए लेकिन वास्तविकता यही है कि यहां पर केवल सरकारी योजनाओं में लूट की दुकान चलती रही जिसके पीछे का मुख्य कारण यही है कि अमरकंटक के विकास को लेकर शासन प्रशासन और यहां के जनप्रतिनिधियों के पास अमरकंटक की धार्मिक प्राकृतिक और पौराणिक मान्यता को साकार करने वाला कोई सकारात्मक मास्टर प्लान नहीं था।
अनूपपुर। अमरकंटक में कहने को तो विकास की योजनाओं की लंबी कतार है लेकिन उन योजनाओं की वास्तविक जमीनी पड़ताल की जाए तो बस यही कहा जा सकता है कि यहां के विकास के लिए बनाई गई हर योजना केवल यहां के मास्टरमाइंडों के लिए लूट की दुकान ही साबित हुई है। कहा जाता है कि किसी योजना के फेल होने के बाद सरकार में बैठे लोग उसकी समीक्षा करके फिर दोबारा वैसी योजना नहीं लागू करते लेकिन अमरकंटक इस बात का अपवाद है और यहां एक नहीं दो योजनाओं के फेल हो जाने के बावजूद तीसरी योजना भी इस धरे पर लागू कर दी जाती है और वह भी फेल होने के कगार पर खड़ी है अब यहां पर सवाल यह खड़ा होता है कि उक्त फेल होने वाली योजनाओं में जो करोड़ों रुपए की सरकारी राशि बर्बाद हो गई उसके लिए जिम्मेदार कौन है। फिलहाल इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए अमरकंटक में फेल होने वाली योजनाओं और उनको लागू करने वालों पर नजर दौडानी पड़ेगी। और इस पर नजर डाली जाए तो यह कहा जा सकता है कि भाजपा सरकार में अमरकंटक के विकास के लिए पैसा तो बहुत आया लेकिन इससे किसका विकास हुआ यह जांच का विषय है।
मकान भी बना लिए लेकिन नहीं छोड़े अतिक्रमण वाली जगह
यहां पर अमरकंटक की सबसे पहले बनाई गई जमुना दादर की इस योजना का उल्लेख करते हैं जहां पर सरकार की करोड़ों राशि की बर्बाद करके अतिक्रमण करने वालों के प्लाट आवंटित किया गया था यहां पर कुछ लोगों ने प्लाट भी लिया और मकान भी बना लिए लेकिन उन्होंने अतिक्रमण करने वाली जगह को नहीं छोड़ा और धीरे-धीरे यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई और अब तो बताया जाता है कि इस जगह पर भी अतिक्रमणकारियों के लिए पनाह गाह बन गया है। फिलहाल यहां पर आवंटित प्लांट मालिकों का सत्यापन कराया जाए तो इस बात का खुलासा हो सकता है लेकिन यहां वही बात है की जांच कराये कौन क्योंकि यहां की लूट में तो सभी हिस्सेदार हैं।
वही यहां के निवासियों का कहना है कि यहां पर अतिक्रमण कार्यों को बसाने के लिए जिस तरह से विकास का ढिंढोरा पीटा गया उसकी सच्चाई बस यही है कि यहां के जनप्रतिनिधियों को अपनी लूट की दुकान चलाने के लिए कोई न कोई मुद्दा चाहिए और हर दो-तीन साल में वह एक नया मुद्दा उछालकर अपनी राजनीति की दुकान चलाते रहते हैं।
जब मिट्टी बेचनी होती है तो शुरू हो जाता है गहरी करण का खेल
अमरकंटक में सरकारी योजनाओं के साथ-साथ यहां के जनप्रतिनिधियों और यहां के नगरी प्रशासन का ऐसा गठजोड़ है कि आम जनता के समझ में भी नहीं आता और यह करोड़ का वादा नारा करने में सफल हो जाते हैं। उदाहरण के तौर पर यहां की आम जनता कहती है कि जब भी किसी बड़े आश्रम या किसी बड़ी योजना के लिए मिट्टी की जरूरत पड़ती है तो यहां के जनप्रतिनिधि नगरी प्रशासन से मिलकर नर्मदा के गहरीकरण का खेल शुरू कर देते हैं। अभी विगत में पुष्कर डैम के गहरीकरण का मिट्टी एक बड़े आश्रम को खुलेआम बेच दी गई और उसका हिसाब किताब को लेकर भी यहां के जनप्रतिनिधियों में विवाद कई महीनो तक जनता में चर्चा का विषय बना रहा। फिलहाल तो अमरकंटक में मिट्टी भी सोने के भाव बिकती है और इस मिट्टी के खेल में कई ठेकेदार देखते-देखते आज करोड़पति बने बैठे हैं। अमरकंटक की जनता का कहना है कि अमरकंटक में ऐसा कौन सा जादू की छड़ी छड़ी है कि यहां पर जो भी राजस्व विभाग से लेकर नगरी प्रशासन में अधिकारी या कर्मचारी आता है वह कुछ ही सालों में इस कदर से मालामाल हो जाता है कि वह अमरकंटक से बाहर जाने के नाम पर नौकरी छोड़ देने तक के लिए भी तैयार हो जाता है लेकिन यहां से बाहर नहीं जाना चाहता।
यहां पर लागू योजनाओं की हो सीबीआई जांच
अमरकंटक में तीर्थ क्षेत्र के विकास के नाम पर भारत सरकार से लेकर मध्य प्रदेश सरकार तक ने प्राथमिकता के आधार पर विकास के नाम पर अरबो रुपए खर्च किए लेकिन जिन योजनाओं के नाम पर यहां पर पैसा आया उन योजनाओं की वास्तविकता क्या है इसका पता किसी निष्पक्ष और बड़ी एजेंसी की जांच में ही पता चल सकता है। यही कारण है कि यहां के आम नागरिकों का कहना है कि 1970 के बाद अमरकंटक में जितनी भी योजनाएं बनी और उन पर जिस तरह से सरकार सरकार का करोड़ों रुपए पानी की तरह बहाया गया उसकी अब निष्पक्षता के साथ सीबीआई की जांच होनी चाहिए तभी दूध का दूध और पानी का पानी हो पाएगा। वही अमरकंटक क्षेत्र में पीएम और सीएम ने भी कई लंबी लंबी घोषणाएं की कभी क्लीन सिटी तो कभी ग्रीन सिटी और इसके लिए पैसा भी दिल खोल कर दिया कभी हरित क्रांति के नाम पर कभी औषधि यह खेती के नाम पर कभी नर्मदा के सौंदर्य करण के नाम पर तो कभी नर्मदा के किनारे परिक्रमा वासियों के लिए बनाई गई व्यवस्था के नाम पर लेकिन यह योजनाएं घोषणाओं के साथ-साथ ही भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ती गई और आज इन योजनाओं की वास्तविकता देखी जाए तो इन योजनाओं का कहीं नामो निशान नहीं मिलेगा।