रानी अवंती बाई लोधी स्वाभिमान की प्रतीक थीं, प्रहलाद पटेल ने कुछ गलत नहीं कहा ,याचक बनने से लाख गुना अच्छा है स्वाभिमानी बनना 

भारत मे राजनेताओं और अधिकारियों के किसी कार्यक्रम में या उनके आगमन पर यह परिदृश्य बिल्कुल आम है कि बहुतायत में लोग उन्हे अपना मांगपत्र, शिकायत पत्र सौंपकर सहयोग या कार्यवाही की अपेक्षा करते हैं। स्थानीय प्रशासन, स्थानीय जनप्रतिनिधियों और स्थानीय सिस्टम पर से भरोसा उठ जाने पर ऐसा होता हो ,यह जरुरी नहीं है। जरुरतमंद, असहाय, गरीब ,कमजोर या परेशानियों से घिरा व्यक्ति अपनी सहूलियत के अनुरुप , सहायता की आस में कहीं भी,किसी से भी अपनी पीड़ा कह कर मदद की गोहार लगाता है। आज़ादी के सात दशक बाद भी यदि लोगों को जन प्रतिनिधियों ,नेताओं, अधिकारियों के आगे हाथ फैलाना पड़ रहा हो तो स्थिति बहुत अच्छी नहीं कही जा सकती। मध्यप्रदेश की राजनीति के कद्दावर नेता , पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं वर्तमान में मध्यप्रदेश सरकार के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री प्रहलाद पटेल के एक बयान के बाद विपक्ष हमलावर है और अपने तरीके से इसे परिभाषित कर प्रहलाद पटेल की निंदा करते हुए प्रदेश भर में पुतला दहन कर माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है। जबकि पटेल जिस सामाजिक  कार्यक्रम के अतिथि थे ,उसका मूलमंत्र ही स्वाभिमान है। उन्होंने वहाँ कुछ भी गलत नहीं कहा। उन्होंने वही कहा जो किसी सच्चे नेता को कहना चाहिए ।
श्री पटेल ने पिछले शनिवार गुना के सुठालिया में वीरांगना रानी अवंती बाई लोधी की प्रतिमा अनावरण के अवसर पर लोधी समाज को संबोधित करते हुए कहा था कि लोगों की यह आदत सी बन गयी है कि जैसे ही कोई नेता मंच पर आता है तो पहले स्वागत् माला पहनाते हैं और फिर उन्हे कोई ना कोई मांग पत्र पकड़ा देते हैं। यह आदत अच्छी नहीं है।
जैसे ही पटेल का यह बयान वायरल हुआ विपक्षी कांग्रेस को राजनीति करने का अवसर मिल गया । कांग्रेस ने आरोप लगाया कि प्रहलाद पटेल प्रदेश की जनता को भिखारी कह रहे हैं।
दर असल लोधी समाज के कार्यक्रम में प्रहलाद पटेल ने ऐसा कुछ भी नहीं कहा कि जो आपत्तिजनक हो। उनकी बात एकदम सीधी , सपाट और एकदम सरल थी ,जिसका दूसरा अर्थ कदापि निकाला नहीं जाना चाहिये। 
उन्होने लोगों से स्वाभिमानी, कर्मठ, मेहनती,व्यावहारिक होने की अपील की है। ध्यान रहे कि  किसी कार्यक्रम में आपके आमंत्रण पर पहुंचा मंचासीन व्यक्ति कार्यक्रम का अतिथि होता है। आयोजक उसका स्वागत् , सम्मान, अभिनन्दन करते हैं। ऐसे किसी अवसर पर उनसे अपनी मांग रखना या मांगपत्रों का पुलिंदा पकड़ा देना ना केवल अतिथि देवो भव की भावना का उपहास बनाता है अपितु स्वार्थपरता को उजागर करता है। 
  वीरांगना  रानी अवंती बाई लोधी
साहस ,शौर्य और स्वाभिमान की प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं। उन्होंने अपने स्वाभिमान और राज्य की रक्षा के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में मातृभूमि की रक्षा के लिये उन्होंने अपना सर्वोच्च बलिदान देते हुए प्राणों की आहुति दे दी। ऐसी स्वाभिमानी वीरांगना की प्रतिमा अनावरण अवसर पर उन्हे सच्ची  भावांजलि - श्रद्धांजलि देने की जगह जब लोग हाथ फैलाकर मांग पत्र देने लगें तो किसी भी जागरूक, स्वाभिमानी व्यक्ति का दुखी होना स्वाभाविक है। लोधी समाज बहुत ही मजबूत, कर्मठ और स्वाभिमानी माना जाता है। लोधी समाज के कार्यक्रम में मंत्री प्रहलाद पटेल ने देश और समाज के हित की बात की है। उन्होंने कुछ भी गलत नहीं कहा। उनकी बातों का निहितार्थ यही है कि अवसर और समय - असमय देखा जाना चाहिए । किसी को मांग पत्र ही सौंपना है तो उसके लिये भी तरीका है ,केवल अपनी सहूलियत के लिये आयोजन, आयोजकों की मंशा और  अतिथि के आगमन के उद्देश्यों पर पानी नहीं फेर देना चाहिए।
प्रहलाद पटेल को जो लोग नजदीक से जानते हैं, उनकी जीवन शैली , उनकी कार्य पद्धति को समझते हैं ,  वो भलीभाँति जानते हैं कि पटेल सच्चे नर्मदा पुत्र , बेलाग , सरल- सहज और बेहिचक अपने विचारों की प्रस्तुति के लिये जाने जाते हैं। वे कठोर साधक,बेहतरीन योजनाकार, अच्छे प्रशासक , संगठक हैं । उनमें सार्वजनिक रुप से गलत को गलत कहने का साहस है। लंबे समय तक उन्होने स्वयंसेवक के रुप में भारतीय जनता पार्टी की जमीनी राजनीति की है। केन्द्र और प्रदेश सरकार में कार्य करने का लंबा अनुभव है। नर्मदा स्वच्छता ,संरक्षण के लिये वे सतत सक्रिय रहे हैं। लोधी समाज को संबोधित करते हुए उन्होंने जो कुछ भी कहा वह देश के सभी लोगों के लिये एक अपील सी है कि कब तक लोगों के सामने हाथ फैलाते रहोगे। शिक्षित, समर्थ, जागरुक बन कर आत्मनिर्भर और स्वाभिमानी बनो। स्वाभिमानी बनने की अपील हाथ फैलाने की नीति से कहीं अधिक अच्छी है।
देश और समाज हित के लिये सही को सही और गलत को गलत कहने लिये साहस की जरुरत है। जिसका बहुधा आभाव भारतीय राजनेताओं में देखा जाता है। खरा - खरा और सौ टका ठोस करने - कहने का साहस लौहपुरुष ही कर सकते हैं । फिर वो चाहे सरदार वल्लभ भाई पटेल हों या मध्यप्रदेश के भाई प्रहलाद पटेल‌ । याचक बनने से लाख गुना अच्छा है स्वाभिमानी बनना। इसे मतदाता, प्रत्याशी, चुनाव ,वोट ,हार - जीत से परे देखना और समझना होगा।