अकेले संघर्ष करते रहे भाजपा प्रत्याषी दिखा संगठनात्मक कमजोरी अब सत्ता भी दूर की कौड़ी
(राजनैतिक संवाददाता)
अनूपपुर। 2003 में दिग्विजय सिंह विरोधी लहर मे सवार उमा भारती के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के लगभग 20 साल बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में पहली बार कार्यकर्ताओं और मतदाताओं में अजीब सा परिवर्तन देखने को मिला। सत्तारूढ़ दल भारतीय जनता पार्टी के लिये यह गहन चिंतन और चिंता का विषय हो सकता है कि पदाधिकारियों को छोड़ कर वर्षों-वर्ष पुराने तमाम कार्यकर्ताओं और पूर्व पदाधिकारियों की सक्रियता या तो शून्य थी या नाराजगी से भरी हुई थी। प्रत्याशियों और संगठन के शीर्ष नेतृत्व ने भी ऐसे लोगों की पूछ परख नहीं की। पूरे विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों को अकेले संघर्ष करते देखना इस कैडर बेस पार्टी के लिये चिंता का विषय हो सकता है। इस चुनाव में जिस तरीके से मध्यप्रदेश में मोदी की गारंटी दी गयी, मोदी के मन में बसे एमपी-एमपी के मन में बसे मोदी का थीम सांग चलाया गया, उससे जनता में शिवराज सरकार के प्रति अविश्वास और नाराजगी और भी बढ गयी। यह सीधा संदेश जनता में देखा गया कि शिवराज सरकार पर केन्द्र को ही भरोसा नहीं है। जबरन चैथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज आत्म मुग्धता के शिकार दिखे। वो पांचवी बार मुख्यमंत्री बनने के लिये इस कदर लालायित हो गये कि टिकट वितरण मे पैसों के लेन-देन, सर्वेक्षण रिपोर्ट्स को खारिज कर मनमानी करने ,राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को धता बतलाने जैसे आरोपों तक की परवाह नहीं की। प्रदेश में सत्ता की राजनीति में वही चंद लोग हावी रहे जिन्हे लोग देख - देख कर उब चुके कहने को चालीस स्टार प्रचारकों की सूची में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ,राजनाथ सिंह, अमित शाह, नितिन गडकरी, शिवराज सिंह चैहान , वी डी शर्मा, योगी आदित्य नाथ , ज्योतिरादित्य सिंधिया, नरेन्द्र तोमर ,कैलाश विजयवर्गीय जैसे तमाम नेताओं के नाम थे। विंध्य क्षेत्र में मंत्री राजेन्द्र शुक्ला, सांसद गणेश सिंह पटेल, कोल विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रामलाल रौतेल और महाकौशल क्षेत्र से फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल, गोपाल भार्गव जैसे स्टार प्रचारक अपने - अपने विधानसभा क्षेत्र में उलझे रहे। जिन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया गया था , ऐसे उन स्टार प्रचारकों को भी एक - एक विधानसभा का प्रभारी बना कर सीमित कर दिया गया। यह पहला चुनाव था जब प्रत्याशियों की घोषणा होने के बाद प्रदेश अध्यक्ष और संगठन महामंत्री समेत अन्य पदाधिकारी क्षेत्र से नदारत थे। वी डी शर्मा , हितानंद शर्मा से जिलों के तमाम वरिष्ठ समर्पित कार्यकर्ता मिलने को तरस गये। यह पिछले पांच वर्षों में संगठनात्मक गिरावट ही थी कि चुनाव की मजबूत धुरी पन्ना प्रभारी कागजों तक ही सीमित दिखे। जन कल्याणकारी शासकीय योजनाओं के कुशल क्रियान्वयन और सड़क, बिजली, पानी, चिकित्सा, शिक्षा, कृषि क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने और कांग्रेस की निष्क्रियता, गुटबाजी, संगठनात्मक कमजोरी के बावजूद यदि प्रदेश में सरकार बनाने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी , अमित शाह को जमीनी स्तर पर कार्य करना पड़ा हो तो इसके पीछे छिपे तथ्यों का अन्वेषण पार्टी के शीर्ष केन्द्रीय नेतृत्व को करना होगा। परिणाम अनुकूल ना आने की दशा में सवाल राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा की कार्यशैली और उनकी क्षमताओं पर भी उठेगें। बिहार, झारखंड, पष्चिम बंगाल,  कर्नाटक, हिमांचल प्रदेश में विपरीत परिणाम के बाद मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान जैसे राज्यों में यदि परिणाम अनुकूल आ भी जाएं तो ये केवल और केवल प्रधानमंत्री मोदी की गारंटी और उनकी साख की जीत माना जाएगा। मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार में मंत्रियों के आचरण, भ्रष्टाचार के लगते आरोप, संगठनात्मक स्वेच्छाचारी निष्क्रियता के कारण पार्टी  मोदी की लोकप्रियता और लाडली बहना जैसी योजना पर निर्भर दिख रही है। प्रदेश में भाजपा  सरकार बनने पर श्रेय मोदी और लाडली बहनों को जाएगा और यदि परिणाम विपरीत रहे तो इसका ठीकरा शिवराज-वीडी और टिकट वितरण में मनमाने आचरण पर फोड़ा जाएगा।