अमरकंटक पधारे 96वे वर्ष के संत शरण जू महाराज ने किया नर्मदा स्नान ,छपडौर हनुमत कुंज और  केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ के है श्रीमहंत 

अमरकंटक / मां नर्मदा जी की उद्गम स्थली / पवित्र नगरी अमरकंटक में बुधवार 17 तारीख को 96वे वर्ष के संत श्री श्री 1008 श्री संतशरण जू महाराज अचानक अमरकंटक पहुंच नर्मदा स्नान किए । भक्त , शिष्यों ने उन्हें  व्हील चेयर में बिठाकर नर्मदा नदी तट कोटि तीर्थ घाट पर सीढ़ियों में बिठा कर स्नान कराया । संत जी स्नान कर अपना तन और मन पवित्र कर बड़े ही प्रसन्नता जाहिर किए । भक्तों ने भी नर्मदा स्नान बाद मंदिर दर्शन किए । बाद में अमरकंटक से लगभग 15km दूर संत जी द्वारा निर्मित द्वितीय आश्रम अमरकंटक आमानाला (छत्तीसगढ़) में बने संत कुटीर आश्रम पहुंच कर विश्राम किए । स्वामी जी का निश्चित रूप से यह कह पाना कि वे कितने दिनों तक क्षेत्र में रहेंगे कह पाना मुश्किल है लेकिन अभी आश्रम में रुके हुए है । जैसे ही स्वामी जी के आगमन का पता चल रहा है वैसे ही भक्त , संत आमानाला संत कुटीर आश्रम पहुंच उनके दर्शन , भेंट मुलाकात करने लोग पहुंच रहे है । संत जी काफी बयोवृद्ध हो गए है । सेवकों ने बताया कि उन्हें सुनाई भी कम पड़ने लगा है और संत ,भक्तों के सहयोग से चलना उन्हें अच्छा लगता है । 
उनके परम शिष्य शहडोल निवासी निलेश उपाध्याय ने बताया कि उमरिया जिला मानपुर जनपद क्षेत्र ग्राम छपड़ौर स्थित हनुमत कुंज आश्रम तथा इन्हीं के द्वारा संचालित संस्कृत विद्यापीठ जिन्हें केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है जिसमें इक्षूक छात्र प्रथमा (6,7,8) , पूर्व मध्यमा (9,10) , उत्तर मध्यमा (11,12)  एवं शास्त्री (बीए) तथा डिप्लोमा कोर्स , योग , आयुर्वेद , वास्तु एवं ज्योतिष आदि का अध्ययन होता है । 

दिव्य महान भगवत स्वरूप संत श्री श्री 1008 श्री संतशरण जी महाराज 96वाँ जन्मोत्सव मना चुके की आयु पर भ्रमण करते हुए अमरकंटक पहुंचे । भक्तों और शिष्यों ने इनका जन्मोत्सव पर्व गोपाष्टमी तिथि को तुलादान और विशाल भंडारे के साथ बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया करते है । हनुमत कुंज आदि के प्रबंधक महामंडलेश्वर जगतगुरू संत श्री सियाराम शरण जी महाराज के देखरेख में चल रहा है ।
आगे नीलेश उपाध्याय जी ने और बताया कि संत जी पहले प्रमोदवन चित्रकूट में लगभग सत्ताइस वर्ष व्यतीत करने के बाद मैहर के बड़ा अखाड़ा में नवमी गद्दीधारी रूप में विराजमान हुए । भजनानंदी संत होने के कारण उन्होंने तीन वर्ष बाद किष्किंधा चले गए फिर वहां से वापस चित्रकूट , मैहर आए इसके बाद 1984 में छपड़ौर आकर प्रथम कुटिया निर्माण हुआ । इसके बाद 2005 अमरकंटक के दमगढ़ में 90 दिवस रुकने के बाद  आमानाला संत कुटीर द्वितीय आश्रम बना फिर आगे शहडोल , सतना आदि अनेक जगह आश्रमों बनाए गए जहां पर शिष्य , संत निवास कर भगवन भक्ति और गुरु सेवा में लगे हुए है ।
अमरकंटक आमानाला संत कुटीर आश्रम बनने पर हिंडाल्को माइंस के प्रबंधक के के पांडेय , शिक्षक जितेंद्र तिवारी आदि अनेक लोगों के सहयोग और संत सेवा में तत्पर रहने से आश्रम निर्माण कार्य जल्द ही पूर्ण हुआ । वर्तमान आश्रम की  व्यवस्था के रूप में संत विमला बिहारी शरण जी महाराज काफी समय से सम्हाले हुए है । स्वामी जी से मिलने अमरकंटक के अनेक संतगण और भक्तगण पहुंचे । जिसमें स्वामी लवलीन महाराज परमहंस धारकुंडी आश्रम अमरकंटक , ब्रह्मचारी अक्षत शरण रामकुटि दमगढ़ , श्रवण उपाध्याय , आदि संत भक्त पहुंच दर्शन लाभ प्राप्त कर रहे ।