अंधेर विभाग चैपट अधिकारी, कूड़े में फेंक दिये सारे नियम सरकारी @नयन दत्ता

अंधेर विभाग चैपट अधिकारी, कूड़े में फेंक दिये सारे नियम सरकारी
लोकनाथ अब और कितनों को करोगे अनाथ? इस आपराधिक उदासीनता का जिम्मेदार कौन?
मनेन्द्रगढ। एक बार फिर जनकपुर के जंगलो में उस आदमखोर तेंदुए एक महिला की जान लेली। उमाबाई नाम की आदिवासी महिला को आदमखोर ने उसके घर से ठीक 400 मीटर में अपना शिकार बना डाला। तेंदुए का हमला इतना शातिराना था की उमाबाई अपने प्राणों के लिए लड़ भी ना सकी।3 पुत्रों की विधवा माँ उमाबाई को वन विभाग की लापरवाही और सिस्टम की बेरुखी ने मार डाला। सर्वोच्च सत्ता ने पिछली बार के तेंदुए के हमले की रिपोर्टिंग के दौरान बताया था की वन मण्डल मनेन्द्रगढ़ के बड़े साहब लोकनाथ पटेल ने कितने हलके तरीके से इस आदमखोर के हमले को लिया था। छत्तीसगढ़ वनविभाग कितने हलके तरीके से इस आदमखोर से निपटने की तैयारी कर रहा है। हमारी रिपोर्ट के बाद तेंदुए को पकड़ने के लिए एक पिंजरा तैयार किया गया था जिसमें तेंदुआ आज तक नहीं फंसा। हमारा सवाल यह है जब ये साबित हो चूका है की ये वही तेंदुआ है जिसने मध्यप्रदेश के सिंगरौली जिले कुसमी ब्लॉक में दो दो बार ग्रामीणों को मारा है एक आदिवासी महिला और एक आदिवासी बालक को मारा था और जिसके 3 दिन के अंदर मध्यप्रदेश के वन विभाग ने पिंजरा लगाकर पकड़कर दुबारा घने जंगलो में छोड़ दिया है और अब वो तेंदुआ और चालाकी से बच्चों और महिलाओं को निशाना बना रहा है तो छत्तीसगढ़ का वन विभाग क्यों मध्यप्रदेश के वन विभाग से समन्वय करके आदमखोर को पकड़ने की कोशिश नहीं कर रहा है।
मध्यप्रदेश में जान की कीमत 8 लाख, छत्तीसगढ़ में मात्र पच्चीस हजार।
पडोसी राज्य मप्र में वनविभाग इतनी संजीदगी से इस आदमखोर के पहले हमले के बाद से तेंदुए को पकड़ने में पुरजोर कोशिश करके सफल हुआ था वहां डी एफ ओ स्वयं सारे ऑपरेशन को संचालित कर रहे थे इस वजह से मृतक के परिवार को तत्काल 8 लाख की क्षतिपूर्ति राशि दी गईं थी। इसके बाद भी जब दूसरी बार तेंदुए ने बालक को निशाना बनाया तो ग्रामीण भड़क गये और वन विभाग के अधिकारी कर्मचारी को उनके गुस्से का सामना करना पड़ा। जिसमें स्थानीय रेंजर गंभीर रूप से घायल हो गये थे। अब छत्तीसगढ़ का आदिवासी हितैषी सिस्टम देखिए मात्र पच्चीस हजार रूपये अभागी उमाबाई के तीन अनाथ बच्चों के दिया गया है वो भी जनकपुर के रेंजर के द्वारा और ऐसा मैनेजमेंट मीडिया में की 25 हजार रुपए की खबर सबसे ज्यादा दिखी। अगर ऐसा ही मैनेजमेंट आदमखोर को पकड़ने में लगाते तो शायद ये 25 हजार रु देने की नौबत नहीं आती।एक महत्वपूर्ण प्रश्न ये है की वन मण्डल मनेन्द्रगढ़ के मुखिया डीएफओ लोकनाथ पटेल क्यों नहीं गये ग्राम वासियों से मिलने? क्यों वन विभाग अभी भी लकीर पीट रहा है? क्यों छत्तीसगढ़ वन विभाग के मुख्य संरक्षक वन्यप्राणी (सीसीएफ वालइल्डलाईफ) अभी तक इस तेंदुए को पकड़ने या मारने की कोई योजना पर काम शुरू नहीं कर रहें है?
शायद सिस्टम की मनाही है
यह इस क्षेत्र में आदमखोर के हमले की तीसरी घटना, आदमखोर तेंदुआ को पकड़ने जंगल में लगाये गए दो पिंजरे, आदमखोर तेंदुए ने एक बार फिर बनाया महिला को अपना शिकार, महिला की मौत। मनेन्द्रगढ़ जिले के वन मंडल मनेन्द्रगढ़ अंर्तगत मध्यप्रदेश की सीमा से लगे भरतपुर ब्लॉक में आतंक का पर्याय बन चुके आदमखोर तेंदुए ने मंगलवार की सुबह एक बार फिर जनकपुर वन परिक्षेत्र में एक महिला को अपना शिकार बनाया। इस घटना में महिला की मौत हो गयी। जनकपुर वन परिक्षेत्र अंतर्गत कुँवारी बीट के ग्राम सिंगरौली के पुरनिहापारा की घटना है। मृतिका उमाबाई बैगा पत्नी नान बैगा पर आज सुबह लगभग 7 बजे तेन्दुआ ने घर के समीप हमला किया। गले में वार करने पर महिला की मौत हो गयी। घटना की सूचना पर वन अमले के साथ जनकपुर रेंजर चन्द्रमणि तिवारी मौके पर पहुंचे। उन्होंने विभाग की ओर से पीड़ित परिवार को 25 हजार रुपये सहायता राशि प्रदान की है।
उल्लेखनीय है कि तेंदुआ के मानव पर आक्रमण की यह तीसरी घटना है। तेंदुए के हमले से अब तक दो महिलाओं की मौत हो चुकी है तथा एक 8 वर्षीय मासूम घायल हो चुका है। जिसका अस्पताल में इलाज जारी है। वहीं आदमखोर तेंदुए को पकड़ने के लिए वन अमला कड़ी मशक्कत कर रहा है। तेंदुए को पकड़ने के लिए दो पिंजरे जंगल में रखे गए हैं। वन अमले को उम्मीद है कि जल्द तेंदुआ पकड़ में आ जायेगा। क्षेत्र में तेंदुए की लगातार चहलकदमी से ग्रामीण दहशत में हैं। गत दिनों कुंवारपुर वन परिक्षेत्र स्थित पतवाही बीट अंतर्गत पथलेनाला समीप तेंदुआ देखा गया। वन अमले द्वारा मुनादी कर ग्रामीणों से सुरक्षित रहने व जंगल की और नहीं जाने की समझाइश दी गई है। विदित हो कि वनमण्डल मनेन्द्रगढ़ अंतर्गत कुँवारपुर के बाद अब जनकपुर रेंज में तेंदुए के आतंक से ग्रामीण परेशान हैं। तेंदुआ ने कुछ दिन पूर्व ही ग्राम तितौली स्थित गोधौरा के जंगल में एक बुजुर्ग महिला को मार डाला था। इस घटना के 10 दिन बाद ही उसने ग्राम छापरटोला में घर के आंगन में घुसकर 8 वर्षीय बालक को दबोच लिया था। गनीमत रही कि वह आंगन की दीवार की ऊंचाई को फांद नहीं पाया, अन्यथा बालक की जान जा सकती थी। जनहानि को देखते हुए वन विभाग द्वारा दो पिंजरा लगा कर तेंदुए को पकडने का प्लान बनाया गया है। विभाग द्वारा पिंजरे में बकरे को बांधकर जंगल के बीच रखा गया है। फिलहाल तेंदुआ पिंजरे के आसपास भी नही फटका है। वन अमला बकरे को पिंजरे में चारा-पानी देकर तेंदुए के फंसने का इंतजार कर रहा है। वहीं तेंदुए को पकडने पास के जंगल में 2 पिंजरे लगाए गए हैं। ये दोनों पिंजरे कुंवारपुर वनपरिक्षेत्र के ग्राम आरा व ककरेड़ी के जंगल में रखे गए हैं।
वन विभाग की इस आपराधिक उदासीनता का कारण इस क्षेत्र में चल रही अंधाधुंध जंगलो की कटाई और नदियों से रेत उत्खनन है। जो सिस्टम की मर्जी से चल रहा है। मृतक उमा बाई ना तो सिस्टम के लिए काम करती थीं और ना ही सिस्टम का हिस्सा थीं इसलिए ज्यादा हल्ला नहीं मचा। लगता है की तेंदुआ भी शातिर है तभी वो सिर्फ उन्ही को निशाना बना रहा है जिनसे सिस्टम को सिर्फ 5 साल में एक बार ही काम पड़ता है। मगर खत्म होते जंगल और अपने सीने से रेत लुटाकर सूखती नदियों के बीच सीधा साधा ग्रामीण आदिवासी जाये तो जाये कहां। वन विभाग अपने संसाधनों की डकैती में शामिल होने की वजह से चुप है। गाँव वाले इसलिए चुप है की कही फारेस्ट वाले साहब किसी मामले में लपेट कर जेल ना भेज दें। और छोटे छोटे फारेस्ट साहब अपने अपने वन परिक्षेत्र (रेंज ) में अपनी मीडिया मैनेजमेंट से खुश है की सभी खबरें ठीक है सब चंगा सी। तेंदुआ भी खुश है की उसके नाम से अभी तक गोली इशू नहीं हुई है वो फिर झपट्टा मारने की फिराक में है। दुखी है तो सिर्फ उमाबाई के तीनों अनाथ बच्चे कि अब माँ चली गईं।आगे कौन सहारा देगा। सिस्टम खुश है की मामला पच्चीस हजार में सेट हो गया। डीएफओ लोकनाथ खुश हैं की आदमखोर तेंदुए की बात ऊपर तक विधानसभा में एक मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंची।