यह प्लास्टिक का चावल कैसे किया जा रहा वितरित?
मनरेगा अधिकारी की गैरीजिम्मेदारी ने फोर्टिफाइड चावल को लेकर ग्रामीणों में फिर पैदा किया भ्रम
शहडोल। शासकीय उचित मूल्य की दुकानों के माध्यम से सरकार द्वारा गुणवत्ता युक्त फोर्टिफाइड चावल का वितरण पिछले कुछ समय से शुरू किया गया है। उक्त चावल देखने मे प्लास्टिक के समान लगता है। इसलिए पूर्व में ग्रामीण क्षेत्रो में यह अफवाह भी फैली कि यह प्लास्टिक का चावल है और खाने के बाद कही स्वास्थ्य के लिए हानिकारक न हो । यह भ्रम फैलने के बाद जिला प्रशासन के आला अधिकारियों के साथ साथ जिले के खाद्दय विभाग के अमले द्वारा आमजन को जागरूक करते हुए बताया गया था कि यह प्लास्टिक का चावल नही बल्कि फोर्टिफाइड चावल है ।जो कि पूर्ण रूप से पौष्टिक होता हैं। जिसके बाद ग्रामीण हितग्राहियों ने बड़ी मशक्कत के बाद यह चावल लेना शुरू किया था। लेकिन जिले में पदस्थ एक मनरेगा अधिकारी के आधे अधूरे ज्ञान ने एक बार फिर उक्त चावल की लेकर ग्रामीण क्षेत्र के हितग्राहियों के अंदर संदेह पैदा कर दिया है । जिस कारण अब वह पुनः यह फोर्टिफाइड चावल लेने से मना कर रहे है।
मनरेगा अधिकारी के सवालों ने पैदा किया भ्रम
ताजा मामला जिले के बुढ़ार विकास खंड अंतर्गत ग्राम खरला का सामने आया है। जहां सोमवार को मनरेगा के परियोजना अधिकारी राहुल सक्सेना उक्त क्षेत्र में चल रहे मनरेगा कार्यो का निरीक्षण करने पहुचे थे। इस बीच अपना कार्य छोड़ वह ग्राम खरला स्थित शासकीय उचित मूल्य की दुकान का निरीक्षण करने पहुँच गए। और वहां रखे चावल की गुणवत्ता परखना शुरू कर दिया। चूंकि साहब की सिर्फ मनरेगा के निर्माण कार्यो का अनुभव था इसलिए उन्होंने अज्ञानता के कारण दर्जनों ग्रामीण हितग्राहियों ग्रामीणों के सामने ही उचित मूल्य की दुकान के संचालक से सवाल करना शुरू कर दिया। मनरेगा के परियोजना अधिकारी ने दुकान संचालक से कहा कि यह चावल तो प्लास्टिक का दिखाई पड़ रहा है? यह चावल यहां कैसे लोगो को वितरित कर रहे हो? अगर प्लास्टिक का चावल वितरण के लिए यहां आ गया है तो आपने अधिकारियों को इससे अवगत क्यों नही कराया? इसकी शिकायत करनी थी? मनरेगा अधिकारी श्री सक्सेना के सवालों की बौछारो के सामने विक्रेता ज्यादा कुछ बोल नही पाया उससे इतना जरूर बताया कि साहब इसे फोर्टिफाइड चावल कहते है। दिखने में भले ही यह प्लास्टिक जैसा हो लेकिन शासन से यही चावल वितरण के लिए आ रहा है। साहब ने तो बाकायदा फोर्टिफाइड चावल की जांच के लिए वहां से सैम्पल में ले लिया। इससे ग्रामीण हितग्राहियों की शंका और प्रबल हो गयी कि यख चावल प्लास्टिक का ही होगा, तभी तो इतने बड़े साहब जांच कराने के लिए उक्त चावल का सैम्पल लेकर गए है। चूंकि अब अधिकारी को राशन के बारे में कोई ज्ञान तो था नही इसलिए विक्रेता भी ज्यादा कुछ उन्हें समझा नही सका। हां साहब के अधूरे ज्ञान से उनका तो कोई नुकसान नही हुआ लेकिन उनकी जुबां से निकला हुआ शब्द प्लास्टिक का चावल वहां मौजूद ग्रामीण हितग्राहियों के दिमाग मे बस गया। उनके जाने के बाद हितग्राहियों ने भी विक्रेता से कहना शुरू कर दिया कि बड़े साहब बोलकर गए है यह प्लास्टिक का चावल है हम लोग यह चावल अब नही लेंगे। हमे दूसरा चावल मंगवाकर दो। अब मनरेगा अधिकारी की अज्ञानता ने विक्रेता के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है । साथ ही ग्रामीणों के दिल मे फिर से पैदा हुए भ्रम को दूर कर पाना उसके लिए आसान नही है।

कानो में नही पहुँचा शायद नाम
राहुल सक्सेना मनरेगा में परियोजना अधिकारी के पद पर पदस्थ हैं शासन की हर योजना हर एक अधिकारियों तक पहुंचती है लेकिन श्री सक्सेना को शायद अपने कार्यो के अलावा शासन की अन्य योजनाओं के बारे में जरा सा भी ज्ञान नही है। शायद इसी लिए इतना प्रचार प्रसार के बाद भी उनके कानों में कभी फोर्टिफाइड चावल का नाम भी नही पहुचा और उन्होंने फोर्टीफाइड चावल को प्लास्टिक का चावल बताकर उसे सैंपल के तौर पर एक पॉलिथीन में रख कर जांच के लिए लेकर आ गए, वो भी दर्जनों हितग्राहियों के सामने। इस घटना से ऐसा आभाष हो रहा कि ग्रामीणों से ज्यादा अब प्रशासन को अपने नुमाइंदों को जागरूक करने की जरूरत है ।