सरकार की सकारात्मक पहल के बाद दिव्यांग सचिन और दृष्टिबाधित सुमित को मिली जीने की राह 
दोनों सगे भाईयों की सफलता से परिवार मंे खुषहाली
अनूपपुर। जिले के विकासखण्ड जैतहरी के ग्राम भगतबांध निवासी चैतू राठौर एवं श्रीमती रानी राठौर के घर जब दो पुत्रों का जन्म हुआ, तो घर में खुषियाँ मनाईं गईं और बच्चों को खूब स्नेह किया गया। पर जब ये दोनो बच्चे थोड़े बड़े हुए तो घर वालों को उनके गंभीर रूप से श्रवण बाधित होने का पता चला। परिवार की खुशियों में चिंता की लकीरें खींच दी। कुछ समय बाद पुत्र सुमित की एक आंख भी खराब हो गई, जिससे परिवार काफी परेशान और चिंता में डूब गया। माता-पिता के द्वारा अपने बच्चों सुमित और सचिन की चिकित्सा कराई गई, जो जहां बताता वहां जाकर वह इस स्थिति से निवृत्त होने के लिए व बच्चों को सामान्य अवस्था में लाने के लिए भरसक प्रयास करते। परन्तु अथक प्रयास के बाद भी उनके बच्चों में कोई तब्दीली नही आई, जिससे परिवार निराशा में डूब गया। बच्चों को पढ़ाई-लिखाई के लिए स्कूल भेजने का संकोच होने तथा हालातों से बच्चे कैसे सामना करेंगे यह सोचकर माता-पिता काफी परेशान रहते थे। पर एक दिन राज्य शासन द्वारा संचालित समग्र शिक्षा अभियान के तहत स्कूल चले हम सर्वे के दौरान प्राथमिक विद्यालय भगतबांध की शिक्षिका श्रीमती रजनी कहार सुमित और सचिन के घर दस्तक दी। उन्हें यह पता चल गया था कि यहां दो छात्र शाला अप्रवेशी हैं। उन्होंने जब गृह भेंट के दौरान उनके माता-पिता से सम्पर्क स्थापित किया, तो स्थिति चिंताजनक लगी। परिवार के हालात देखकर उन्होंने जनपद शिक्षा केन्द्र जैतहरी के मोबाइल स्त्रोत सलाहकार जयहिंद पटेल को फोन से इसकी सूचना दी। सूचना के आधार पर शिक्षिका एवं एमआरसी बच्चों के घर पहुंचे और उनके माता-पिता व बच्चों से गृह भेंटकर निर्णय लिया कि सुमित और सचिन को गृह आधारित शिक्षा प्रदान की जाए। क्योंकि वे श्रवणबाधित के साथ-साथ सुमित आंख की दिव्यांगता से ग्रस्त होने पर शाला जाने में असमर्थ थे। सुमित और सचिन को समावेशी शिक्षा योजना अंतर्गत गृह आधारित विशेष प्रशिक्षण दिया जाने लगा। सुमित और सचिन के परीक्षण हुए, उनके लिए विशेष शिक्षण विधि निर्धारित की गई। सुमित और सचिन व उनके माता-पिता के साथ बैठकर उनके व्यवहारिक स्थिति की जानकारी प्राप्त की गई। शिक्षिका श्रीमती रजनी कहार ने बताया कि सुमित और सचिन प्रारम्भ में अध्ययन के दौरान शांत बैठे रहते थे। जिसको देखते हुए उनको कुछ खिलौने, मॉडल और चित्रकार्ड दिखाकर उनका ध्यान आकर्षित किया। अध्ययन के दौरान माता-पिता भी रहते जिससे यह प्रक्रिया उनके माता-पिता को भी धीरे-धीरे समझ में आने लगी, जिससे वह सुमित और सचिन की देख-रेख व अध्ययन में मदद  सही ढंग से कर दोनो बालकों को आसपड़ोस के बच्चों एवं लोगों से मेलजोल कराना प्रारम्भ किया। धीरे-धीरे सुमित और सचिन सांकेतिक भाषा से अंक 01 से 100 तक व ए टू जेड अल्फाबेट और जानवरों, फलों, रंगों, सब्जियों आदि के नाम जानने लगे। तब उन दोनो बच्चों को प्राथमिक शाला भगतबांध में प्रवेश दिलाया गया। बच्चे भी आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे थे। जैसे ही उन्हें शाला में प्रवेष दिलाया गया तो बच्चे नियमित रूप से स्कूल आने-जाने लगे व शिक्षकों एवं सहपाठी छात्रों के सहयोग से उन्होंने अपनी शैक्षणिक गतिविधि करने लगे। बच्चे निरन्तर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते रहे और कक्षा दर कक्षा आगे बढ़ते हुए कक्षा 5 वीं में पहुंच गए। सरकार की समग्र शिक्षा नीति से दिव्यांग सचिन और सुमित को जीवन जीने की नई राह मिल गई। अध्ययन के दौरान शिक्षिका ने बच्चों एवं उनके माता-पिता को नवोदय विद्यालय में प्रवेश के संबंध में आवेदन करने और उन्हें परीक्षा दिलाने के लिए प्रेरित किया। जिससे माता-पिता ने भी अपने बच्चों को नवोदय विद्यालय की परीक्षा में बैठने के लिए प्रेरित किया व सहयोग किया। परिणामस्वरूप नवोदय विद्यालय परीक्षा में श्रवणबाधित व आंख से दिव्यांग सुमित ने सफलता अर्जित कर ली। सफलता उपरांत नवोदय विद्यालय अमरकंटक में प्रवेश हेतु जब सम्पर्क स्थापित किया गया तो संस्थान द्वारा छात्र के दिव्यांग होने की समस्या के संबंध में वरिष्ठ कार्यालय स्तर से तकनीकी मार्गदर्शन प्राप्त करने के प्रयास किए जाने लगे। भगतबांध विद्यालय की शिक्षिका श्रीमती रजनी कहार एवं एमआरसी विनय मिश्रा, उनके माता-पिता तथा ग्रामवासी छविलाल राठौर के द्वारा नवोदय विद्यालय में छात्र सुमित के प्रयास हेतु व्यक्तिगत सम्पर्क स्थापित किए गए। जिसके बाद नवोदय विद्यालय समिति द्वारा छात्र सुमित को प्रवेश देने हेतु सहमति प्रदान की गई। नवोदय विद्यालय में दिव्यांग सुमित के कक्षा 6 वीं में प्रवेश से जहां उनके माता-पिता काफी प्रसन्न हैं, वहीं उनके मार्गदर्शी शिक्षक व ग्रामवासी भी इस उपलब्धि को परिश्रम से मिली सफलता निरूपित करते हुए भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा बनाई गई समग्र शिक्षा की मूल अवधारणा को नवचेतना देने जैसा कार्य निरूपित किया है। माता-पिता ने सरकार द्वारा शिक्षा के लिए बनाई गई सरल व्यवस्था की सराहना करते हुए साधुवाद दिया है। सचिन और सुमित की लगन और प्रसन्नता को देखते हुए अब उनके माता-पिता भी प्रसन्नचित्त हैं। माता-पिता बच्चों को उच्च शिक्षित कर उनके लक्ष्य तक पहुंचाने प्रतिबद्ध है।