बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय, आमाडांड के प्रकरण में एसईसीएल पर हो रही चरितार्थ अपनी जवाबदेही से नही बच सकते एसईसीएल के अधिकारी @राम भैय्या

बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय, आमाडांड के प्रकरण में एसईसीएल पर हो रही चरितार्थ
अपनी जवाबदेही से नही बच सकते एसईसीएल के अधिकारी
इन्ट्रो-आमाडांड खुली खदान में एक बार फिर एसईसीएल की सक्रियता और पुलिस प्रषासन की चहलकदमी इस बात की तरफ संकेत कर रही है कि कही न कही प्रदेष सरकार की सर्वोच्च सत्ता की कुर्सी के नजदीक मानी जाने वाली दिलीप बिल्डिकाॅन लिमिटेड कही से जोड़-तोड़ करके पी-7 पर कार्य शुरू करने की तैयारी में है। परंतु यहां के सुलगते सवाल जिसका जवाब देने से एसईसीएल के अधिकारी कतरा रहे हैं वह आज भी जस का तस है।
अनूपपुर। बारह सौ पच्चीस हेक्टेयर की जमीन अधिग्रहण करके एसईसीएल ने जब क्षेत्र में आमाडांड खुली खदान की परियोजना का खाका खींचकर इस क्षेत्र में जमीन अधिग्रहण के लिये आयी तो इस क्षेत्र में उस समय खुषी की लहर छा गई। यही नही किसानों ने भी सरकार के नियम कानून के तहत अपनी जमीनें दे दी। परंतु उसके बाद जिस तरह से क्षेत्र में घूम रहे एसईसीएल के दलालो ने नियम कानून को ताक पर रखकर एसईसीएल के अधिकारियों की मिली-भगत से भर्ती में फर्जीवाडा किया उसी का परिणाम है कि आज यह खदान बंद है और विवाद है कि रूकने का नाम नही ले रहा है। फिलहाल आमडांड की वर्तमान हालत का आंकलन करने के बाद एसईसीएल के लिये बस यही कहा जा सकता है कि जब बोया पेड़ बबूल का आम कहां से होय।
नौकरी देने के नाम पर गड़बड़झाला
यहां पर यह विषेष उल्लेखनीय तथ्य है कि मध्यप्रदेष सरकार के कई नियमो को तोड़-मरोड़ करके कुछ कथित दलालों, ठेकेदारों ने इस तरह से साजिष रची कि पात्र लोग नौकरी के लिये भटकते रहे और अपात्रो को नौकरी मिलती रही। यही नही जिसके पास खाने के लिये भोजन नही था वह अपनी थाली में भोजन के लिये इंतजार करता रहा। लेकिन अपात्र लोगो द्वारा एसईसीएल के अधिकारियों की मेहरबानी से मौज मस्ती जारी रही। यहां पर यह बता दिया जाये कि एसईसीएल के अधिकारी हाईकोर्ट के आदेष के बाद पचास से उपर कर्मचारियों को बैठाने की बात कहकर यह बार-बार कहते हैं कि इसमें उनका कौन सा दोष लेकिन क्या उनके पास इस बात का जवाब है कि इन अपात्र लोगो की भर्ती कैसे हुई और इसके लिये कौन जिम्मेदार है।
चल रही थी खदान हो रहे थे माला-माल
यहां पर यह बता दिया जाये कि आमाडांड खुली खदान जब चल रही थी तो यहां के अधिकारी सारे नियम कानून को ताक में रखकर केवल अपना-अपना जेब भरने में जुटे हुये थे। खदान चालू होने की अनुमति देते समय कलेक्टर अनूपपुर ने कई शर्तो के साथ खदान चालू करने का आदेष दिया था। लेकिन मजदूरों की बात छोड भी दी जाये तो पर्यावरण और इस क्षेत्र के विकास के प्रति भी एसईसीएल के अधिकारी अनजान बने रहे। यहां पर विषेष उल्लेखनीय तथ्य है कि कलेक्टर अनूपपुर ने 7 जून 2009 को खदान चालू करने की अनुमति देते समय इस बात का उल्लेख लिखित में किया था कि इस क्षेत्र में लगभग 50 हजार हरे पेड़ हैं जिनकी पर्यावरण की दृष्टि से एसईसीएल को प्रमुखता से सुरक्षा करना है।
दिलीप बिल्डिकाॅन लिमिटेड की धमक
इस दौरान खुली खदान के सामने पी-7 की दूसरी खदान चालू करने का समय आया तो उसी समय भोपाल की दिलीप बिल्डिकाॅन लिमिटेड कंपनी की भूमिका सामने आती है और पी-7 को संचालित करने के लिये एसईसीएल ने दिलीप बिल्डिकाॅन प्राईवेट लिमिटेड को सौंप दिया। बताया जाता है कि दिलीप बिल्डिकाॅन प्राईवेट लिमिटेड यहां पर खनन से लेकर कोयला निकालने तक पूरा कार्य करेगी। और कोयले की मार्केटिंग एसईसीएल के पास है। यहां पर यह बता दिया जाये कि दिलीप बिल्डिकाॅन लिमिटेड को सामने आ जाने से इस क्षेत्र के किसानों में इस बात की चिंता है कि सत्ता पक्ष की सबसे मजबूत तरफदार वाली कंपनी के नुमाइंदे कही पुलिस के दम पर उनकी आवाज को कुचल न दे।
आठ सौ निन्यान्बे की जगह पांच सौ सोलह
यहां पर विषेष उल्लेखनीय तथ्य है कि भूमि अधिग्रहण के बाद एसईसीएल को कुल 899 प्रभावित किसानों को नौकरी देनी थी, लेकिन दस साल बीत जाने के बाद भी वह मात्र 516 लोगो को ही नौकरी दे पाये। जिसमें पात्र और अपात्र के विवाद के कारण हाईकोर्ट जबलपुर द्वारा 178 लोगो को अपात्र घोषित किया गया। जिसमें से 63 लोगो को हटा दिया गया और 115 लोग अभी भी हाईकोर्ट के स्थगन आदेष पर नौकरी में है बाद में एसईसीएल ने डिसेंडिंग आॅर्डर के रूप में 120 लोगों को नौकरी पर रखा है। इस तरह से देखा जाये तो कुल 573 लोग अभी भी नौकरी कर रहे हैं। जब कि अब तक एसईसीएल यहां से लगभग दस हजार करोड़ से ऊपर का मुनाफा कमा चुकी है।