भूख, बेरोजगारी और धोखा-खुली खदान आमाडांड की कहानी सर्वोच्च सत्ता की जुबानी जब भरनी होती है तिजोरी आमाडांड नजर आता लुटेरी कंपनी को @अजीत मिश्रा/नयन दत्ता)

भूख, बेरोजगारी और धोखा-खुली खदान आमाडांड की कहानी सर्वोच्च सत्ता की जुबानी
जब भरनी होती है तिजोरी आमाडांड नजर आता लुटेरी कंपनी को
(अजीत मिश्रा/नयन दत्ता)
इन्ट्रो-आमाडांड अनूपपुर जिले के कोतमा तहसील में शुरू हुई खुली खदान कोयला परियोजना एक दिलचस्प कहानी पेश करती है। एक तरफ तो कोयला खदान से जुड़ी लूट शोषण तरक्की की कहानी है और दूसरे तरफ भुखमरी बेरोजगारी और धोखा है। पाठकगण स्वयं ही समझ गये होंगे की एक कहानी में कौन पोषित है और कौन पीड़ित है।
अनूपपुर/आमाडांड। दुनिया की सबसे बड़ी कोयला कम्पनी में शुमार कोल इंडिया की सबसे बड़ी उपक्रम या सहयोगी कम्पनी है साउथ ईस्टर्न कोलफील्डस लिमिटेड जिसे एसईसीएल भी कहा जाता है। इसी एसईसीएल का एक कोयला प्रोजेक्ट आमाडांड में सन 2004 में ओपनकास्ट के तौर पर शुरू करने का कलेक्टर अनूपपुर के द्वारा गज़ट नोटिफिकेशन निकाल कर आमादाण्ड निम्हा कुहका तीन गाँवो की सारी ज़मीन जो लगभग 1200 हेक्टेयर के करीब होती है सार्वजनिक प्रयोजन के लिए अधिग्रहण किये जाने की घोषणा कर दी। और यही से लूट और शोषण की लम्बी कहानी शुरू हो गईं जिसके शिकार इन तीन गांव के 8000 से भी ज्यादा गरीब आदिवासी हो गये।
कोल इण्डिया का चेयरमैन बनने के लिये रचा गया प्रपंच
दरअसल सारा प्रपंच सिर्फ एक अधिकारी के चेयरमैन कोल इंडिया बनने के का था। तत्कालीन सीएमडी एसईसीएल एम. के. थापर चेयरमैन कोल इंडिया बनने के लिए एसईसीएल में उत्पादन बढ़ाना और नयी कोयला खदान खोलना चाह रहे थे और ये लालच इतना बढ़ गया था की और सारा का सारा जमुना कोतमा क्षेत्र जिसके अंतर्गत ये कोयला परियोजना खुलनी थी के अधिकारी साम दाम और सारा जोर लगाकर इस परियोजना को खोलने की कवायद में लग गये। ताकी अगर कम्पनी के मुखिया तरक्की पायेगा तो नीचे मातहत अधिकारी भी तरक्की पाएंगे और इसी तरक्की के लालच में कोल इंडिया के अधिकारी राज्य शासन के राजस्व विभाग के अधिकारीयों से मिलकर इस परियोजना के ज़मीन में सदियों से निवास कर रहे आदिवासियों के खिलाफ ऐसा आपराधिक षड्यंत्र रचा की उनको कोयला पैसा तरक्की सब मिली।
एसईसीएल ने किया किसानों के साथ मजाक
भू स्वामियों को सिवाय चंद रुपयों और आश्वासन के कुछ नहीं मिला। सबसे बड़ा मजाक तो एसईसीएल मैनेजमेंट ने ये किया कि कुछ भूस्वामियों को 10-10 साल नौकरी करवा लेने के बाद यह कह कर कोल इंडिया कि नौकरी से बैठा दिया गया कि उनकी अधिग्रहित ज़मीन के बदले वो नौकरी कि पात्रता नहीं रखते हैं। ज़ब विस्थापित ग्राम निम्हा में आंदोलनरत लोगों से बात कि गईं तो वहां बैठी महिलाओ ने मुखर होकर बहुत सारे ऐसे तथ्य सामने लाये जिन्हे समझ कर कोई भी यह अंदाज लगा लेगा कि यह धोखाधड़ी कितनी आपराधिक किस्म कि है। निम्हा गाँव के हीरा लाल पूरी पिता मसकू को 10 साल कि नौकरी के बाद बैठा दिया गया सिर्फ इसलिए कि उनकी ज़मीन नौकरी कि पात्रता में नहीं बैठती वहीं उनके सगे छोटे भाई समय लाल पिता मसकू उतनी ही बड़ी ज़मीन के एवज में अब भी नौकरी कर रहें है। ठीक ऐसे ही धोखागड़ी आगाश सिंह पिता मैकू गोंड के साथ भी कि गईं उनके सारे परिवार कि 2 एकड़ से भी ज्यादा ज़मीन अधिग्रहण करके उन्हें नौकरी से बैठा दिया गया है जबकि पुरे परिवार ने उनके नौकरी के लिए एसईसीएल को सहमति दे दी थी। ऐसे सैकड़ो पीड़ित आमाडांड, निम्हा, कुहका गाँव में घूम रहें है जिनकी ज़मीन के नीचे से कोयला निकाला जा चुका है और अब वो ज़मीन का अस्तित्व सिर्फ एक विशालकाय गड्डे के अलावा कुछ नहीं है।
लुटेरी कंपनी के लुटेरे अधिकारियों की बढ़ी है चहलकदमी
अब यहां एक सवाल उठना लाजिमी है कि अब अचानक फिर से कोयला खनन कि और उसके बदले नौकरी कि बाद क्यों उठाई जा रही है। दरअसल लुटेरे कोयला अधिकारी फिर गांव में आ रहें है बचा-खुचा कोयला निकलने और बचे-खुचे गांव को खंडहर बनाने के लिए, क्योंकि अब फिर से किसी को चेयरमैन कोल इंडिया बनना है किसी महाप्रबंधक को डाइरेक्टर टेक्निकल का प्रमोशन चाहिये और किसी ठेकेदार को अपनी बैलेंसशीट और मजबूत करनी है।
आमाडांड की कोख से निकला कोयला सर्वोच्च
दुर्भाग्य से आमाडांड कोयला खदान का कोयला बहुत आसानी से निकल जाता है और उससे भी बड़ा दुर्भाग्य ये कि अमाडांड क़ी कोख में मिलने वाला कोयला खुली खदान के स्तर के हिसाब से बहुत उच्च क्वालिटी का है। एसईसीएल के वर्तमान सीएमडी डाॅक्टर प्रेम सागर मिश्रा अगले साल खाली होने वाले चेयरमैन कोल इंडिया के पद पर नजर रखें हुये हैं हाल ही में महाप्रबंधक जमुना कोतमा क्षेत्र के पद पर आया सरदार हरजीत सिंह मदान इस परियोजना को शुरू करवा कर ही अगला प्रमोशन पा सकते है इसी शर्त पर वो एड़ी-चोटी का जोर लगा रहें हैं। यानी फिर से सारा मामला लूट तररकी और धोकेबाजी का है आमादाण्ड परियोजना में अभी ग्रामवासियों के विरोध क़ी वजह से उत्पादन पूरी तरह से बंद है।
धोखे के कारण विष्वास खो चुकी लुटेरी कंपनी
ग्रामवासी पिछले धाखेे को याद करके आगे किसी भी प्रकार से कोयला खनन को मंजूरी नहीं दे रहें है और उनके इस कदम का सारा का सारा क्षेत्र सहयोग कर रहा है सिवाय स्थानीय प्रशासन के, क्योंकि स्थानीय प्रशासन क़ी भी मज़बूरी है उन पर भोपाल से दवाब है। मगर इन सबसे परे कोई उन गरीब आदिवासियों के लिए नहीं सोच रहा है जिनके पास एक छोटे से ज़मीन के टुकड़े के अलावा कुछ भी नहीं है और जिसे एसईसीएल के अधिकारी छल कपट करके छीन रहें हैं और बदले में जो मुआवजा दे रहें है वो आज के हालात के हिसाब से बहुत कम है और जिसके भरोसे वो आदिवासी अपनी बची ज़िन्दगी गुजर बसर नहीं कर पायेगा। तो फिर उसके हिस्से आयी भूख बेरोजगारी और धोखा। मगर भोपाल में बैठी सरकार क्यों नहीं ध्यान दे रही इन गरीब आदिवासियों का ये यक्ष प्रश्न है। सर्वाेच्च सत्ता इन सत्ताधारियों के जागने तक इस मामले को पाठकों के सामने लाती रहेगी, ये सर्वाेच्च सत्ता क़ी मुहीम हैं।