कोयलांचल की प्रख्यात कवियत्री अनामिका देहरादून में सम्मानित
मनेन्द्रगढ़। साहित्यिक मासिक ‘कविकुंभ’ का सातवां वार्षिक दो दिवसीय ‘शब्दोत्सव’ स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह इस बार 28-29 जनवरी को डीआईटी यूनिवर्सिटी देहरादून (उत्तराखण्ड) के वेदांता ऑडिटोरियम में संपन्न हुआ। मुख्य अतिथि डीआईटी चांसलर एन रविशंकर, विख्यात कवि-साहित्यकार विभूति नारायण राय, साहित्य अकादमी पुरस्कृत एवं पद्मश्री लीलाधार जगूड़ी, प्रसिद्ध साहित्यकार दिविक रमेश, इंदु कुमार पांडेय, प्रदीप सौरभ उपस्थित रहे। स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह की अध्यक्षता पूर्व कुलपति डॉ सुधा पांडे ने की। मुख्य अतिथि रहे डॉ एस फारुख और गेस्ट ऑफ उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार और विशिष्ट अतिथि रहे इंदु कुमार पांडेय और डीआईटी की रजिस्ट्रार वंदना सुहाग। बीइंग वुमन की ओर से ‘स्वयं सिद्धा सम्मान’ से देश के विभिन्न राज्यों की उन महिलाओं को समादृत किया गया, जिन्होंने स्वयं के श्रम एवं विवेक से समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। जिसमें स्वयंसिद्धा सम्मान के लिए छत्तीसगढ़ प्रदेश से जिला डब्ठ मनेंद्रगढ़ से कवयित्री अनामिका चक्रवर्ती को चुना गया था और उन्हें स्वयंसिद्धा सम्मान से सम्मानित किया गया।
महिलाओं की जागरूकता का प्रयास
अनामिका चक्रवर्ती की कविताएं एवं कहानी,लेख आदि देश की विभिन्न महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित हो रही हैं साथ ही वे जमीनी स्तर पर महिलाओं की मानसिक और भावनात्मक एवं सामाजिक जागरूकता के लिए निरंतर कार्य कर रही हैं जिसके लिए वे समय समय पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी करती हैं। शब्दोत्सव स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह के दूसरे दिन के काव्य पाठ सत्र में अनामिका चक्रवर्ती एवं देश के अलग अलग प्रदेशों से आए कवियों ने अपनी कविताओं का मंच से पाठ किया।
अंतरद्वन्द को करना होगा चित्रित
परिचर्चा सत्र में, ‘किस दिशा में जा रहा साहित्य और आज क्या दिशा होनी चाहिए। विषय पर लीलाधर जगूड़ी, विभूति नारायण राय, दिविक रमेश और प्रदीप सौरभ ने विचार व्यक्त किए। दिविक रमेश ने कहा, आज का समय बहुत कठिन है। लगता है कि हम बहुत व्यापक और लिजलिजे दलदल में फँसे हैं। हम दुस्साहस नहीं कर पा रहे हैं। साहित्य दुस्साहस का नाम है। हम अगर अपने समाज को, समय को, अपनी किताबों, अपनी कथाओं में हाशिए के लोगों को व्यक्त नहीं करते तो हम अपने समाज के साथ अन्याय करते है। आज सबसे बड़ी चुनौती अपने समय को व्यक्त करने, अंतरद्वन्द को चित्रित करने की है, और सबसे बड़ी है सत्य बोलने कि चुनौती। यह समय सवाल उठाने का, अपने समय को व्यक्त करने का है।
दबी हुई आवाज को निखारता साहित्य 
सुपरिचित उपन्यासकार, पत्रकार प्रदीप सौरभ ने कहा, साहित्य मनुष्यता को बचाता है और साहित्य ही बची हुई मनुष्यता को बेहतर बनाता है। साथ-साथ साहित्य आवाज देता है उन्हें, जिनकी आवाज होती ही नहीं या जिनके गले को दबा के रखा जाता है। रचना हो जाने के बाद स्वयं रचनाकार के लिए भी एक चुनौती हो जाती है। शब्दोत्सव स्वयंसिद्धा सम्मान समारोह में कविकुंभ एवं बिइंग वुमन की राष्ट्रीय अध्यक्ष रंजिता सिंह फलक एक उनकी टीम को गरिमामय आमंत्रण के लिए धन्यवाद देते हुए अनामिका चक्रवर्ती ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र और विभिन्न उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ने के बावजूद महिलाएं अभी भी घरेलू हिंसा और सामाजिक शोषण का शिकार हो रही हैं तो जरूरी है कि उनमें शिक्षा और आत्मनिर्भरता के साथ आत्म रक्षा और हिंसा और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का भी साहस आए जरूरत है कि वे स्वयं को जागरूक करें और अपनी रक्षा करने के लिए मजबूत बने।