कोतमा में चुनाव के दौरान चरितार्थ होती चैपाई कर्म प्रधान विश्व करि राखा जे जस करहि ते ता फल चाखा सियासत की गर्मी से ठंड में भी छूट रहा नेताओं को पसीना

कोतमा में चुनाव के दौरान चरितार्थ होती चैपाई कर्म प्रधान विश्व करि राखा जे जस करहि ते ता फल चाखा
सियासत की गर्मी से ठंड में भी छूट रहा नेताओं को पसीना
(विकास पाण्डेय)
कोतमा। विधानसभा क्षेत्र के चुनावी महाभारत में जमकर मचा हंगामा आरोफ प्रत्यारोप का दौर हुआ तेज जनता को साधने हर संभव होने लगी कोशिश मतदाताओं को साधने में आखिर कौन होगा सफल? क्या चुनावी पिच पर चलेंगे जनता के मुद्दे? या जनता चेहरों को परख कर करेगी मतदान?क्या दिलीप का सपना होगा साकार या फिर सुनील सराफ कोतमा विधानसभा क्षेत्र के नायक होंगे दूसरी बार? ये वो सवाल है जिन पर चर्चाओं का दौर जारी है वहीं दूसरी ओर राजनीतिक तापमान अब तेजी से बढ़ता जा रहा है हालांकि प्रकृति हवा में ठंड घोल रही है लेकिन सियासत हवा में गर्मी घोलने का काम कर रही है उम्मीदवार गांव दर गांव जा रहें जनता का असल शुभ चिंतक बता रहे हैं शहरों से लेकर गांव दर गांव सियासत के आसरे मतदाताओं को साधने के मद्देनजर हर पांसे फेंकें जा रहें हैं कयी सिक्के उछाले जा रहे हैं हर विसात विछाई जा रही है लोकतंत्र का राग अलापा जा रहा है लेकिन मतदाता मौन है जाहिर है कोतमा विधानसभा क्षेत्र के चुनावी रण में 15 प्रत्याशी वोटों की फसल काटने के लिए विसात बिछा रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला भाजपा कांग्रेस के बीच तय माना जा रहा है उक्त चुनाव की राजनीतिक विसातो के भीतर अब अगर झांका जाए तो गांवों से लेकर शहरों तक चुनावी चर्चा ही सुनाई देती है शहरों और गांवों में चहुं ओर झंड़े फैल्क्सियो से चुनावी रंगत की तस्वीरें स्पष्ट बयां कर रहीं हैं और मौशम सियासत मय है चुनावी तिकड़म के अक्श तले नेताओं के समानांतर लोगों के द्वारा भी समीकरणों के आसरे आखिर किस करवट बैठेगा ऊंट इस पर समीक्षाओं के ताने-बाने की चर्चा की जा रही आम नागरिक समाज भी गुणा-भाग लगते नजर आ रहें है वहीं दूसरी ओर चुनावी चैसर पर सूबे की भाजपा सरकार द्वारा चलाई गई जनकल्याणकारी योजनाओं और मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी की घोषणा पत्र की मुनादी बड़े बड़े प्रचार वाहनों के आसरे लोगों को सुनाई पड़ रही है चुनावी लीला के मौजूदा वक्त पर दो ऐसी भी तस्वीर दिखाई देती है जो कोतमा विधानसभा चुनाव के अतीत के पन्नों को अगर पलटा जाए तो कांग्रेस की सियासत के भीतर ऐसा कभी हुआ नहीं इस फेहरिस्त में कांग्रेस की गुटबाजी या फिर अंतर्कलह जो भी कह लीजिए स्मरणीय है कि बीते लगभग 4 महीने पीछे लौट चलिए और याद कीजिए कोतमा विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत मौजूदा माननीय की उम्मीदवारी के इर्द-गिर्द कुछ उनके ही पुराने सिल्पसलाहकार जो 15 महीने की सत्ता के दौरान उनकी किचन कैबिनेट में थे पूरे विधानसभा क्षेत्र में निती निर्धारक थे कमोबेश हर निर्णय वो ही लेते थे हर विसात बिछाते थे हर सिक्के उछालते थे माननीय के कदम से कदम मिलाकर चलते थे लेकिन सत्ता जाते ही सियासत की सुई ने यूं टर्न लिया कि उक्त चेहरों द्वारा उम्मीदवारी की विसात पर कांग्रेस में जमकर बिरोध किया जाने लगा जी 23 के नाम से मोर्चे का गठन भी किया और उक्त मोर्चे के साए तले भोपाल से लेकर दिल्ली तक जमकर कोशिश की जाने लगी कांग्रेस के क्षत्रपो को संदेश तो इसी बात का दिया जाने लगा पूरा दबाव बनाया जाने लगा की कांग्रेस का प्रत्याशी बदला जाए ऐसे में याद कीजिए कांग्रेस के प्रत्याशी चयन के इर्द-गिर्द संसय की स्थिति भी बनी एक बार लगा तो यही की कांग्रेस 23 में कोतमा विधानसभा क्षेत्र में नये प्रत्याशी पर प्रयोग कर सकती है लेकिन कांग्रेस के दिल्ली के नेताओं ने आखिरकार सारे बिरोधो को खारिज करते हुए सुनील सराफ को ही उम्मीदवार घोषित किया अब जी 23 के उक्त कुनबे द्वारा सुनील सराफ को चुनाव में मात देने के लिए हर जोर आजमाइश कर रहे हैं भाजपा के कार्यकर्ताओं से एक कदम आगे बढ़ कर भाजपा प्रत्याशी को विजयश्री दिलाने के लिए जमकर विसात बिछा रहे हैं अगर हम सियासी जानकारों की मानें तो कोतमा विधानसभा क्षेत्र में चुनावी रण में अंतर कलह की ऐसी विसात इससे पहले कभी देखने को मिली नहीं अलबत्ता उनकी बिरोधी विसात के आसपास भाजपा उम्मीदवार को कितने वोटों का नफा और कांग्रेस को कितने वोटों को नुक्सान होता ये देखना होगा जी 23 के कुनबे की बिरोधी मुहिम कांग्रेस प्रत्याशी के वोटों में कितना सेंध लगाने में सफल होती है ये भी देखना होगा आगर भाजपा के चुनावी अंक गणित पर पैनी नजर डाली जाए तो भाजपा कुछ कार्यकर्ता दबी जुबान में कहते तो यही तो यही है कि भाजपा के स्थानीय क्षत्रप 2018 का इतिहास दोहरा रहे हैं मतलब साफ है भाजपा के उम्मीदवार के लिए स्थानीय नेताओं द्वारा खतरे की घंटी भी बज रही है इसके ठीक समानांतर चुनावी लीला में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों के प्रत्याशियों की सियासत के भीतर कुछ ऐसे भी पैमाने हैं जो वोटों के मद्देनजर फायदा दिला सकते हैं इस कड़ी में अगर बात भाजपा की की जाए लाडली लक्ष्मी योजना जो कि चुनावी पिच वोटों के लिए एक मास्टर स्ट्रोक लगाया गया था देखना होगा कि ये दांव भाजपा के लिए वोटों के कितना सार्थक सिद्ध होता है और कांग्रेस में विधायक सुनील सराफ की सक्रियता जो बीते पांच वर्ष तक वाकई अद्भुत थी निरंतर गांव दर दौड़े और ग्रामीणों से संवाद इस पर मतदाता कितना ध्यान देते हैं देखने वाली बात होगी अलबत्ता चुनावी जमीन के अंतिम वक्त पर समीकरण कैसे बनते हैं उक्त समीकरणों के आसरे वोटों का ध्रुवीकरण कितना होता है और किसके पक्ष में होता ये देखना दिलचस्प होगा लेकिन कोतमा विधानसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला बेहद करीबी हैं जनता जनादेश देकर प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत के भीतर किसे भेजती है इसके लिए 3 दिसंबर तक इन्तजार करना होगा। बहरहाल होई है वहि जो राम रचि राखा को करि तरक बढ़ावहि साखा।