क्या हिमाद्री सिंह कर पाएंगी विरासत में मिली सियासत की हिफाजत या होगी फजीहत कितना असर कारक होगा जन आक्रोश पर मोदी नाम का मरहम

क्या हिमाद्री सिंह कर पाएंगी विरासत में मिली सियासत की हिफाजत या होगी फजीहत
कितना असर कारक होगा जन आक्रोश पर मोदी नाम का मरहम
इन्ट्रो-शहडोल लोकसभा चुनाव को लेकर भले ही भाजपाइयों के खेमों में 5 लाख के ऊपर की जीत का दावा किया जा रहा है लेकिन शहडोल संसदीय क्षेत्र के राजनीतिक विश्लेषकों के गले के नीचे नहीं उतर रहा है। जिसका मुख्य कारण है आम जनता में हिमाद्री के नाम को लेकर आक्रोश और अब तो लोग कहने लगे हैं कि देखना है कि जनता के इस आक्रोश पर मोदी नाम का मरहम कितना असर कारक होता है।
(राम भैय्या)
अनूपपुर। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर उल्टी गिनती शुरू हो गई है मतदान का दिन हाथ की उंगलियों पर गिना जाने लगा है ऐसे में अब राजनीतिक विश्लेषक और क्षेत्र की राजनीतिक नब्ज को पहचानने के लिए देश की कई एजेंसियों के लोग भी शहडोल संसदीय क्षेत्र में डेरा डाल चुके हैं। सूत्रों की मानें तो क्षेत्र की एक-एक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भारतीय जनता पार्टी की तरफ से कई विशेषज्ञों को भी उतारा गया है जो भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी हिमाद्री सिंह के चुनावी गतिविधियों की पल-पल की खबरों के साथ किस क्षेत्र में मजबूत और किस क्षेत्र में कमजोर और इसके पीछे के वजह का भी विश्लेषण करके ऊपर भेजा जा रहा है। सूत्रों की मानें तो ग्राउंड जीरो से विभिन्न एजेंसियों से जो भी रिपोर्ट ऊपर जा रही है उसी के आधार पर भाजपा प्रत्याशी को और साथ में संगठन को चुनावी रणनीति बनाकर मैदान में काम लिया जा रहा है। फिलहाल तो यह एजेंसियों के लोग चाय पान की दुकानों पर खड़े होकर अपने-अपने हिसाब से अपना अपना आकलन करने में जुटे हैं ऐसे ही एक एजेंसी के प्रतिनिधि से मुलाकात के दौरान उनका साफ-साफ कहना था कि हिमाद्री की 5 साल तक क्षेत्र में गैर मौजूदगी और उनकी आम जनता से न मिलने की कार्यशैली के कारण जनता में नाराजगी ज्यादा है अब देखना है कि मोदी नाम का मरहम कितना असर कारक होता है।
अपनों ने बनाई दूरी से प्रभावित चुनाव
भाजपा खेमों में चल रही चर्चाओं की माने तो भारतीय जनता पार्टी संगठन में हिमाद्री सिंह की कभी भी जान पहचान नहीं थी और ना ही वह सांसद बनने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से नजदीकी आया संबंध बनाने की कोशिश की। सांसद सत्ता और संगठन के बीच तालमेल बनाने की जिम्मेदारी सांसद पति नरेंद्र मरावी के पास थी और नरेंद्र मरावी नहीं सांसद प्रतिनिधियों के नाम फाइनल किया और इसमें अधिकतर लोग नरेंद्र मरावी के ही खासम खास थे। प्रतिनिधियों की नियुक्ति के समय भी यह सवाल खड़ा हुआ था कि भाजपा संगठन से अलग हटकर संासद में अपने पति नरेंद्र मरावी के कहने पर कुछ ऐसे लोगों की नियुक्ति कर दी थी जिनका भाजपा से अभी भी दूर-दूर का रिश्ता नहीं है। अब जब नरेंद्र मरावी ने संसद से दूरी बना ली तो विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सांसद प्रतिनिधियों ने भी संसद से दूरी बना ली जिसके कारण संसद हिमाद्री सिंह को चुनावी अभियान में प्रभावित भी होना पड़ रहा है।
भाजपा नेताओं में नहीं है चुनाव को लेकर उत्साह
शहडोल संसदीय क्षेत्र में सबसे मजबूत संगठन के रूप में भारतीय जनता पार्टी की पहुंच भले ही बूथ स्तर पर मौजूद है यही नहीं बीजेपी के पास संगठन और जमीन पर काम करने वाले नेताओं की लंबी चैड़ी फौज है इसके बावजूद भी भाजपाइयों में लोकसभा चुनाव को लेकर वह उत्साह नहीं देखा जा रहा है जैसा होना चाहिए। इस विषय में जब राजनीतिक विश्लेशको से बात की गई तो उनका मानना था कि भाजपा लोकसभा प्रत्याशी से भाजपा के स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से सीधे संबंध ना होना भाजपा कार्यकर्ताओं नेताओं में उत्साह की कमी का मुख्य कारण है। भाजपा नेता और कार्यकर्ता सीधे करते हुए भी देखें और सुने जा रहे हैं कि जब सब कुछ मोदी को ही करना है तो फिर हिमाद्री सिंह हिमाद्री सिंह क्यों कहना है सीधे-सीधे भाजपा नेताओं का आरोप है कि जिस तरह सांसद बनने के बाद 5 साल तक भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को नहीं पहचान गया उसी तरह इस बार भी होगा और यह समझ कर ही भाजपा के कार्यकर्ता और नेता उसे उत्साह के साथ चुनावी मैदान में नहीं उतर रहे हैं जो जो उत्साह उनके अंदर होना चाहिए। फिलहाल जनता में तो आक्रोश है ही जो आक्रोश का कारण भी किसी से छिपा नहीं है 5 साल तक जनता के बीच नदारत रहकर अब अपनी विरासत की हिफाजत करने उतरी हिमाद्री सिंह को कई सवालों का सामना करना तो पढ़ ही रहा है भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी उनको फजीहत भी झेलनी पड़ रही है जो इस समय अनूपपुर से लेकर शहडोल उमरिया तक आम लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है।