जिला पंचायत सीईओ तन्मय वशिष्ट को गुमराह करते जिला पंचायत के कर्मचारी,भृष्टाचार छुपाने आरटीआई अपील में गलत तथ्य दे कर विलोपित करते जिम्मेदार - विजय उरमलिया की कलम से

जिला पंचायत सीईओ तन्मय वशिष्ट को गुमराह करते जिला पंचायत के कर्मचारी,भृष्टाचार छुपाने आरटीआई अपील में गलत तथ्य दे कर विलोपित करते जिम्मेदार
अनूपपुर - rkexpose की टीम को सूत्रों के हवाले से खबर लगी कि जिला पंचायत में लगाई गई गाड़ियों में भारी अनियमितता है साथ ही जिला पंचायत में मौजूद गौतम बड़ा खेल कर रहे है और गाड़ियों में हुए भृष्टाचार छुपाने के लिए सूचना के अधिनियम 2005 के तहत जानकारी चाही गई थी तीस दिवस बीत जाने के बाद जब कोई पत्राचार जिला पंचायत की तरफ से नही हुआ तो हमारे द्वारा बतौर प्रथम अपील जिला पंचायत के सीईओ को की गई थी जिस पर दिनांक 25 मार्च को पेशी नियत की गई थी पेशी में पहुंचने से पहले ही सब कुछ तय किया जा चुका था कि साहब को गुमराह कैसे करना है और हुआ भी कुछ ऐसा ही साहब के सामने एक पुस्तक सूचना के अधिकार नियमावली पेश की गई पहरा क्रमांक बताया गया उसके बाद साहब पहले से पत्र बना चुके थे नस्तीबद्ध किया जा रहा है कह कर सारे नियम कानून की बली चढ़ा दी साहब ने ये समझना उचित नही समझा कि जो तथ्य उनके कर्मचारी पेश कर रहे है वो सही भी है या नही और साहब ने तो अपीलार्थी की सुनना भी मुनासिब नही समझा कह दिया जानकारी नही दी जा सकती नस्तीबद्ध की सूचना आपको लेनी है तो लीजिये अन्यथा डांक से भेज दी जायेगी तन्मय वशिष्ट का रवैया ऐसा था मानो हमने ये कर के आपके माथे पे चिपका दिया है चिपकवाना है तो चिपकवा लीजिये जानकारी तो हम देते नही इस पूरे मामले का असल मास्टर माइंड अखिलेश गौतम बताया जा रहा है सूत्रों की माने तो जिला पंचायत के माध्यम से जितनी भी गाड़ियां लगाई गई है सूत्र बताते है की उन गाड़ियों के एवज में मोटा कमीशन अखिलेश गौतम लेते है और कई गाड़ियां ऐसी लगाई गई जो टैक्सी परमिट थी भी नही और सवाल तो यह है कि यह कहते हुए सूचना के अधिकार अपील को नस्तीबद्ध किया गया कि जानकारी देने से तीसरे पक्ष को नुकसान हो सकता है अरे साहब क्या सूचना के अधिकार में तीसरे पक्ष के परिवार की व्यक्तिगत जानकारी आपसे मांगी गई थी आपने बाकायदा निविदा प्रकाशन कर गाड़ियों को हायर किया होगा सरकारी खजाने से भुगतान किया होगा सरकारी खजाने से डीजल डला होगा तो जब तक गाड़ी जिला पंचायत के अधीन है तो तीसरे पक्ष कहाँ से आ गया जरा बताइयेगा तो,इस सबसे यह साफ हो जाता है कि जिला पंचायत के कर्मचारी अपने ही कार्यालय में अपने ही अधिकारी को अपना भृष्टाचार छिपाने के लिए गलत एवं भ्रामक तथ्य सामने रख अधिकारी की शाख को भी बट्टा लगा रहे है हालांकि इस पूरे मामले में अपीलार्थी के द्वारा राज्य सूचना आयोग में अपील की गई है और साथ ही अपीलार्थी को जिस तरह से उसका पक्ष सुने बिना जाने मामले का पटाक्षेप करने का प्रयास किया गया बताता है कि कहीं न कहीं इस पूरे मामले में बड़े भृष्टाचार को अंजाम तक पहुंचाया गया जबकि नियमतः सूचना के अधिकार के आवेदन के तीस दिन के अंदर सम्बंधित आवेदन कर्ता को पत्राचार कर अवगत कराया जाता है और अगर लगता था सूचना अधिकारी को जानकारी किन कारणों से नही दी जा सकती तो सम्बंधित को तीस दिनों के अंदर वही पत्र दिया जा सकता था जो मनगढ़ंत तरीके से अपील के बाद पेशी दिनांक को दिया गया कुल मिलाकर यह माना जा सकता है कि जब जिला पंचायत के कर्मचारियों का यह हाल है जहां जिम्मेदार खुद मौजूद रहते है तो बांकी के जिले के कार्यालयों के अंदाज आप खुद लगा सकते है