एक दिन घड़ियाली आंसू बहाने से हिंदी नहीं बन सकेगी जन- जन की भाषा- हनुमान शरण
आज 14 सितम्बर है, जिसे भारतवर्ष में हर वर्ष हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिवस पर न केवल हिन्दी भाषा की महत्ता प्रतिपादित की जाती है बल्कि उसे जन जन की भाषा बनाने का संकल्प भी लिया जाता है, ज्ञात हो कि इस प्रकार के संकल्प हिंदी जब से देश की राजभाषा घोषित हुई होगी, तभी से लिए जा रहे हैं, लेकिन उसके कार्यान्वयन की दिशा में कभी ईमानदार प्रयास नहीं किये गए, यही कारण है कि आज तक हिंदी राष्ट्रव्यापी स्वरूप हासिल नहीं कर सका,अंग्रजों की बिदाई के इतने सालों बाद भी उनकी भाषा अंग्रेजी भारतीयों के दिलों में राज कर रही है, भारतीयों पर अंग्रेजी का इस कदर प्रभाव है कि वे इसे चाहकर भी नहीं त्याग पा रहे हैं, लगभग हर शिक्षित व संपन्न व्यक्ति अपने बच्चों को अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाना चाहता है व बोलचाल में अंग्रेजी लफ़्ज़ों का उपयोग करने का प्रयास करता है,हस्ताक्षर तो अंग्रेजी में करते ही हैं और ऐसा करके अपने पढ़े लिखे होने का परिचय देते हैं,भला जिस हिंदी राजभाषा वाले देश में हिंदी को लेकर इस तरह का रवैया हो,भला उस देश में कभी सही मायने में हिंदी राष्ट्रभाषा बन सकती है? कहने का आशय यह है कि हिंदी अपने ही देश में उपेक्षित है, केवल एक दिन विशेष को हिंदी के प्रति अपनत्व प्रदर्शित करने या चिंता जताने से उसका भला नहीं हो सकता,सरकारी स्तर पर भी हिंदी को लेकर कोई अच्छी स्थिति नहीं है, शासकीय कामकाज अंग्रेजी में ही अधिक होते हैं, देश के हाईकोर्टों एवं सुप्रीम कोर्ट में अंग्रेजी का ही बोलबाला अधिक देखा जाता है,हमारे समाज में अंग्रेजी बोलने- लिखने वालों को अधिक सम्मान दिया जाता है व उन्हें अलग दृष्टि से देखा जाता है,मेरे कहने का यह अर्थ नहीं है कि अंग्रेजी से बिल्कुल वास्ता ही न रखा जाये, अंतरराष्ट्रीय भाषा होने के कारण उसका भी ज्ञान आवश्यक है, लेकिन महत्व उसे हिंदी से कम ही दिया जाना चाहिए, हिंदी दिवस के अवसर पर हमें हिंदी को लेकर अपनी मौजूदा मानसिकता को बदलने का संकल्प लेना चाहिए,निसंदेह ऐसा करके ही हम हिंदी को उसका वास्तविक सम्मान दिला सकते हैं,वहीं शासन को भी हिंदी भाषा के हित में जमीनी धरातल पर काम करना होगाl