नई दिल्ली। इन दिनों आई फ्लू का प्रकोप फैला हुआ है। आंखों के इलाज की प्राथमिक सुविधाओं की कमी के कारण ज्यादातर मरीज सीधे दवा दुकान से आई ड्राप लेकर इस्तेमाल करते हैं या फिर बड़े अस्पतालों में डॉक्टरों के पास जाते हैं। डॉक्टर की सलाह के बगैर आंखों में दवा का इस्तेमाल खतरनाक भी हो सकता है। इसके अलावा आंखों की प्राथमिक जांच और इलाज की सुविधाओं की कमी के कारण ही मोतियाबिंद, काला मोतिया और रोशनी कमजोर होने की बीमारी से पीड़ित आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के मरीज इलाज के लिए जल्दी अस्पताल नहीं जाते।

एम्स के डॉक्टर आंखों के प्राथमिक इलाज के लिए विजन केंद्रों की सुविधा बढ़ाने की जरूरत बता रहे हैं। इस बीच यह बात सामने आई है कि कोरोना काल में दिल्ली सहित एनसीआर के विभिन्न शहरों में एम्स द्वारा संचालित दस विजन केंद्र बंद हो गए, जो अब तक चालू नहीं हो पाए हैं।

कोरोना काल में चालू थे 27 विजन केंद्र

कोरोना के पहले एम्स 27 विजन केंद्र संचालित करता था। कोरोना के बाद मौजूदा समय में दिल्ली में 17 विजन केंद्र संचालित हो रहे है। प्रत्येक विजन केंद्र में एक वर्ष में लगभग 50 हजार मरीजों की आंखों की जांच की गई। इन विजन केंद्रों पर आप्टोमेट्रिस्ट और रेजिडेंट डॉक्टर मौजूद हैं, जो आंखों की रोशनी की जांच करते हैं। इसके बाद जरूरतमंदों को दवाओं के साथ चश्मा उपलब्ध कराया जाता है। जांच के दौरान मोतियाबिंद, काला मोतिया जैसी समस्याओं से पीड़ित मरीजों का एम्स के आरपी सेंटर में निश्शुल्क सर्जरी के साथ उनका इलाज किया जाता है।

कम्युनिटी आधारित कार्यक्रम के तहत एम्स ने लगभग दो हजार मरीजों की आरपी सेंटर में सर्जरी की है। आरपी सेंटर के कम्युनिटी नेत्र विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया कि एम्स एकमात्र अस्पताल है, जो कम्युनिटी के बीच 17 विजन केंद्र चला रहा है। एम्स यह केंद्र दिल्ली सरकार, नगर निगम व विभिन्न गैर सरकारी संगठनों की मदद से चला रहा है।

विभिन्न संगठनों से आर्थिक सहायता रुकने से 10 केंद्र दोबारा शुरू नहीं हो पाए। इसकी संख्या बढ़ाने की कोशिशें जारी हैं। एनसीआर के अन्य अस्पताल इस तरह के विजन केंद्र संचालित नहीं कर रहे हैं। अंधेपन की समस्या को दूर करने के लिए देशभर में 20 हजार प्राथमिक विजन केंद्र की जरूरत है, जबकि अभी चार हजार विजन केंद्र ही हैं।