नई दिल्ली । बिहार में हुए जातीय सर्वे के बाद देश में ओबीसी केंद्रित राजनीति तेज हो गई है। इस बीच चर्चा है कि केंद्र की मोदी सरकार सपा, आरजेडी, जेडीयू जैसे दलों की काट के लिए रोहिणी कमिशन की रिपोर्ट जारी कर सकती है। इसी साल अगस्त में कमिशन ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी। माना जा रहा है कि रोहिणी कमिशन की रिपोर्ट के सहारे मोदी सरकार ओबीसी कोटे में भी सब-कैटेगराइजेशन कर सकती है। इसके लिए यह आधार होगा कि ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ ही बिरादरियों को मिल पाया है और सभी को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए सब-कैटेगराइजेशन जरूरी है।
रोहिणी कमिशन ने अपने परामर्श पत्र में बताया था कि केंद्र की ओबीसी कोटे के तहत 97 फीसदी नौकरियां और उसके शिक्षण संस्थानों में दाखिले 25 फीसदी जातियों को ही मिले हैं। इस तरह 75 फीसदी अन्य ओबीसी समुदायों के पास 3 प्रतिशत ही हिस्सेदारी है। यही नहीं इसमें भी करीब 25 फीसदी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में दाखिले 10 ओबीसी जातियों को ही मिले हैं। यह आकलन रोहिणी कमिशन ने केंद्र 1.3 लाख नौकरियों में नियुक्ति के अध्ययन के बाद किया था। इसके अलावा ओबीसी कोटे के तहत केंद्र सरकार के संस्थानों में दाखिले की भी स्टडी की गई थी। 
पैनल ने अपनी रिपोर्ट में एक और टिप्पणी की थी। रोहिणी कमिशन का कहना है कि 983 ऐसी ओबीसी जातियां हैं, जिनका नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है। इसके अलावा 994 जातियां ऐसी हैं, जिनका प्रतिनिधित्व महज 2.68 फीसदी ही है। बता दें कि देश भर में ओबीसी के तहत आने वाली करीब 2600 जातियां हैं। बता दें कि अगस्त 2018 में गृह मंत्रालय ने ऐलान किया था कि 2021 की जनगणना के साथ ही ओबीसी जातियों की भी गिनती की जाएगी। हालांकि कोरोना के चलते जनगणना के काम को रोक गया और चुनाव के बाद करने की बात कही गई। 
मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण केंद्रीय स्तर पर तय हुआ था। हालांकि बीते कुछ दशकों में यह धारणा बनी है कि केंद्रीय सूची में भले ही 2600 ओबीसी जातियां शामिल हैं, लेकिन इसका फायदा कुछ ही जातियों को मिला है। इसके बाद ओबीसी कोटे के भी सब-कैटेगराइजेशन की मांग तेज हुई है। माना जा रहा है कि बिहार में जातीय सर्वे की काट के लिए मोदी सरकार रोहिणी कमिशन की रिपोर्ट पेश कर उस पर कुछ फैसला भी किया जा सकता है।