नई दिल्ली । दिल्ली हाईकोर्ट ने उस शख्स के खिलाफ जारी लुक आउट नोटिस को रद्द कर दिया है, जिसे कार लोन न चुकाने के चलते बैंक की तरफ से जारी किया गया था। जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद ने अपने आदेश में कहा है कि कार लोन न चुकाना ऐसा अपराध नहीं कि किसी को लुक आउट नोटिस दिया जाए। इसकी वजह से किसी के मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते। कोर्ट ने फैसले में कहा कि जो व्यक्ति पहले जांच एजेंसी या अदालतों के सामने पेश नहीं हो रहा था और उसे भगोड़ा घोषित कर दिया गया, लेकिन वह बाद में पेश हुआ। लुक आउट नोटिस उस व्यक्ति के खिलाफ जारी किया जाता है, जिस पर भारतीय दंड संहिता के तहत संज्ञेय आरोप हो और वह जांच अधिकारियों और अदालत के समक्ष हाजिर न हो रहा हो। यह मामला साल 2013 का है। पीड़ित व्यक्ति ने दो कार खरीदने के लिए भारतीय स्टेट बैंक से 13 लाख और 11.9 लाख रुपये का लोन लिया था। बाद में वह लोन की किस्त जमा नहीं कर सका। यहां तक कि उसने बैंक से भी संपर्क बंद कर दिया था। लोन लेने वाले शख्स से संपर्क खत्म होने के बाद बैंक ने उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी। पुलिस स्टेशन में केस दर्ज करा दिया। वह लगातार गैरहाजिरी रहा, ना तो बैंक अधिकारी और ना ही थाने में हाजिर हो सका तो उसके खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी कर दिया गया। हाईकोर्ट के जज ने कहा कि पूरे मामले में अदालत की राय यह है कि दो कारों के संबंध में ऋण का भुगतान न करने पर याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकारों को नहीं छीना जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यदि आरोपी याचिकाकर्ता जांच में सहयोग नहीं करता या अदालतों के सामने पेश नहीं होता तो लुक आउट नोटिस को जायज ठहराया जा सकता था। हालांकि कोर्ट ने उस व्यक्ति को जांच एजेंसी के साथ सहयोग करने और अदालत के रजिस्ट्रार जनरल के पास 5 लाख रुपये की जमानत राशि जमा करने का निर्देश दिया है। साथ ही अपनी रेनॉल्ट डस्टर और वर्ना सीआरडीआई कारों का निपटान नहीं करने के लिए भी कहा।कोर्ट ने इसी साथ याचिकाकर्ता का पासपोर्ट को भी जारी करने का आदेश दिया है।