नई दिल्ली । मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में अब पुरुषों के बाद महिलाओं के भी शामिल होने के केस बढ़ रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर चिंता जाहिर कर कहा कि अब शिक्षित और अच्छी स्थिति वाली महिलाएं भी मनी लॉन्ड्रिंग जैसे गैर-कानूनी कामों में शामिल हो रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला आरोपियों को जमानत में छूट का फायदा हर मामले में नहीं दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि फैसला इस बात पर निर्भर करेगा कि महिला अपराध में कितनी शामिल है और उसके खिलाफ क्या सबूत हैं।
जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने धारा 45 को समझाते हुए कहा कि धारा 45 के पहले प्रावधान में हो सकता है शब्द का इस्तेमाल किया गया है। इससे पता चलता है कि इस प्रावधान का लाभ उक्त श्रेणी के लोगों को कोर्ट अपने विवेक से और मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए दे सकता है। इस अनिवार्य या बाध्यकारी नहीं माना जा सकता। बेंच ने कहा कि 16 साल से कम उम्र के लोगों, महिलाओं, बीमार या कमजोर लोगों को जमानत देने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 437 और कई अन्य विशेष कानूनों में भी इसी तरह का उदार प्रावधान किया गया है। हालांकि, किसी भी तरह से इसतरह के प्रावधान को अनिवार्य या बाध्यकारी नहीं माना जा सकता है। 
सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि निश्चित रूप से, अदालतों को धारा 45 के पहले प्रावधान और अन्य कानूनों में इसी तरह के प्रावधानों में शामिल लोगों के प्रति अधिक संवेदनशील और सहानुभूति दिखाने की आवश्यकता है। कम उम्र के लोगों और महिलाएं, जो अधिक कमजोर हो सकती हैं, कभी-कभी बेईमान लोग उनका इस्तेमाल कर सकते हैं और ऐसे अपराधों के लिए बलि का बकरा भी बनाया जा सकता है। कोर्ट ने लोगों का ध्यान खींचते हुए कहा कि हालाँकि, अदालतों को इस तथ्य से भी अनजान नहीं रहना चाहिए कि आजकल पढ़ी-लिखी और अच्छी स्थिति वाली महिलाएं व्यावसायिक उद्यमों में शामिल होती हैं और जाने में या अनजाने में अवैध गतिविधियों में शामिल हो जाती हैं।