नई दिल्ली। केंद्र ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम को जल्दी लागू करने की मांग वाली हालिया याचिका के खिलाफ सख्त विरोध किया है। यह अधिनियम महिलाओं के लिए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में एक तिहाई सीटें आरक्षित करने के लिए बनाया गया है। याचिका में कहा गया है कि जनगणना और परिसीमन को महिला आरक्षण लागू करने की पूर्व शर्त के तौर पर थोपना संविधान की मौलिक संरचना का अतिक्रमण है। इसकारण महिला आरक्षण के कानून को 2024 के आगामी आम चुनावों से पहले लागू किया जाए। इसका विरोध कर मोदी सरकार ने दलील दी कि यह संवैधानिक संशोधन कैसे संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है, याचिका में इसका कोई आधार नहीं बताया गया है। 
पीठ ने मुद्दे की गंभीरता को स्वीकार करते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर की जनहित याचिका (पीआईएल) पर आपत्तियों को संबोधित कर मोदी सरकार से एक विस्तृत हलफनामा देने को कहा। हालांकि मोदी सरकार ने अपनी प्रतिक्रिया तैयार करने के लिए दो सप्ताह का समय मांगा। वहीं, याचिकाकर्ता के वकील विकास सिंह ने आगामी लोकसभा चुनावों का हवाला देकर मामले को जल्दी निपटाने पर जोर दिया। पीठ ने चिंताओं को स्वीकार कर केंद्र की विस्तृत प्रतिक्रिया की समीक्षा होने तक अंतरिम आदेश जारी करने से परहेज किया। दो जजों की बेंच ने कहा, हम आज अंतरिम आदेश के बारे में कुछ नहीं कहना चाहते। पहले जवाब आने दीजिए। अदालत ने सरकार को अपना जवाब तैयार करने की अनुमति देने के लिए मामले को तीन सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया।
जब वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि वे इस मुद्दे पर एक याचिका दायर करना चाहते हैं, तब पीठ ने वकील से कहा कि उनकी याचिका एक नया मामला होने के चलते केवल प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ को ही सौंपी जा सकती है। अदालत इस मामले की सुनवाई अब तीन सप्ताह बाद करेगी। 
यह कानूनी झगड़ा 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती केस के फैसले की पृष्ठभूमि में सामने आया है, जिसने बुनियादी संरचना सिद्धांत की स्थापना की थी। इस ऐतिहासिक फैसले ने पुष्टि की कि हालांकि संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है, लेकिन वह इसके अंतर्निहित सिद्धांतों से छेड़छाड़ नहीं कर सकती है। यह एक ऐसा सिद्धांत है जो सत्ता के संवैधानिक संतुलन को बनाए रखने और यह सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण रहा है कि मूल लोकतांत्रिक मूल्यों को संरक्षित रखा जाए।