नई दिल्ली । सार्वजनिक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पर विचार किए बिना वर्ष 2008 में कलर ब्लाइंडनेस वाले एक व्यक्ति को ड्राइवर के रूप में नियुक्त करने पर दिल्ली हाईकोर्ट ने सवाल उठाया है। न्यायमूर्ति चंद्र धारी सिंह की पीठ ने दिल्ली परिवहन निगम से पूछा है कि यह नियुक्ति कैसे हुई है। अदालत ने इस तथ्य को दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि डीटीसी संबंधित ड्राइवर और 100 अन्य लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रही। इन सभी की चिकित्सा स्थिति समान थी और जिन्हें गुरु नानक आई सेंटर की रिपोर्ट के आधार पर नियुक्त किया गया था। डीटीसी की तरफ से दायर याचिका पर अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता विभाग की ओर से अपने ड्राइवर की नियुक्ति में इस तरह की लापरवाही देखना अदालत के लिए बहुत निराशाजनक है। अदालत ने उक्त टिप्पणी वर्ष 2011 में एक दुर्घटना के बाद ड्राइवर (प्रतिवादी) चेत राम की बर्खास्तगी के संबंध में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश के खिलाफ डीटीसी द्वारा दायर एक अपील याचिका पर सुनवाई करते हुए की। कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित व्यक्ति के ड्राइवर नियुक्त होने के बिंदु पर डीटीसी ने अदालत को बताया कि ड्राइवर को गुरु नानक अस्पताल से स्वस्थ्य घोषित किया और इसका एक मेडिकल प्रमाण पत्र ड्राइवर की तरफ से जमा किया गया था। यह भी बताया कि इसी प्रकार कलर ब्लाइंडनेस से पीड़ित 100 से अधिक लोगों को नियुक्त किया गया। इसके कारण अप्रैल 2013 में एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन किया गया। डीटीसी का पक्ष सुनने के बाद अदालत ने कहा कि ड्राइवर द्वारा प्रस्तुत मेडिकल प्रमाणपत्र पर भरोसा करना डीटीसी की गलत कार्रवाई को दर्शाता है क्योंकि डीटीसी के अपने चिकित्सा विभाग द्वारा जारी प्रमाणपत्र गुरु नानक आई सेंटर की रिपोर्ट के विपरीत था। अदालत ने कहा कि यह बहुत भयावह स्थिति है कि ड्राइवर को डीटीसी में ड्राइवर के रूप में नियुक्त किया गया और वर्ष 2008 से 2011 के बीच तीन साल के लिए बसें चलाने की भी अनुमति दी गई। अदालत ने कहा कि यह और दुर्भाग्यपूर्ण है कि याचिकाकर्ता डीटीसी अपनी गहरी नींद से वर्ष 2013 में जागा और अंततः प्रतिवादी की मेडिकल फिटनेस की जांच के लिए 13 अप्रैल 2013 को एक स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड का गठन किया। सार्वजनिक सुरक्षा के बिंदु को देखते हुए अदालत ने कहा कि डीटीसी को इस तरह के मामले मे उचित देखभाल और सावधानी से काम करना चाहिए।