......ये दूरियां है या मजबूरियां

......ये दूरियां है या मजबूरियां
अनूपपुर- जब अनूपपुर से लेकर दिल्ली तक बात होने लग जाए तो वह अपने आप रोमांचक हो जाती है, पहले चाल समझी फिर चरित्र का पता किया फिर फीकी पड़ती चेहरे की रौनक ने मजबूरीयों में दूरियां बढ़ा दी या सब कुछ सोची समझी साजिश के तहत चल रहा है,जो कुछ भी हो दोनों के संसद पहुंचने की चाहत भरी ताल ठोकने से चर्चाओं का बाजार सरगर्म है,ऐसे में लोग कुछ तो कहेंगे, बहरहाल क्या कुछ चल रहा है कोई नही जानता लेकिन सझना होगा नही तो फिर बात वही होगी कि अब पछताये होते का जब चिड़िया चुग गई खेत,करीबी भले ही यह कहें कि यह सब गलत फैमियां हैं लेकिन बीते साल भर से सामने आ रहे घटनाक्रम से राजनीतिज्ञ भी हैरान हैं कि सब कुछ सम्हालने के लिये दिया या मिला अब ऐसा लगने लगा हूर के हांथ में लंगूर!