24 का चक्रव्यूह...शहडोल लोकसभा चुनाव में बढ़ता राजनीतिक तापमान 
भाजपा ने पहली ही सूची में शहडोल संसदीय क्षेत्र से वर्तमान सांसद हिमाद्री सिंह पर दांव लगा कर नारी सशक्तिकरण की दिशा में कांग्रेस को पछाड़ने का काम किया है। भाजपा ने पुनः हिमाद्री सिंह को एक और सियासी पारी खेलने का मौका दिया है ऐसे में राजनीतिक जानकारों के अनुसार भाजपा ने एक मानसिक बढ़त तो बना ही ली है। हालांकि अभी कांग्रेस ने इस संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, लेकिन पुष्पराजगढ़ विधायक फुंदेलाल सिंह मार्को की उम्मीदवारी संभावित है।  राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है की पैनल में सिंगल नाम होने के बाद भी कांग्रेस शहडोल, सीधी और सतना लोकसभा सीट पर उम्मीदवार घोषित करने में जानबूझकर देरी कर रही है।

अब जनता की अग्नि परीक्षा में हिमाद्री सिंह को कौन चुनौती देगा ये तो कांग्रेस की सूची आने के बाद पता चलेगा  लेकिन इतना तय है की शहडोल लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस को सबसे पहले खुद कांग्रेस से ही लंबी लड़ाई लड़नी है उसके बाद ही कहीं वो भाजपा के मुकाबले में आ पाएगी।

कहते हैं की हिन्दुस्तान की लोकतांत्रिक ताकत तो राजनीतिक सत्ता में बसती है, जहां पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण में चुनावी चौसर पर जो भी विसात बिछाते चला जाता है; अगर वो सफल हुआ तो फिर नायक कहलाता है। अब लौट चले एमपी के पूर्वी क्षेत्र और सीजी की सीमा स्थित शहडोल संसदीय क्षेत्र के लोकसभा चुनाव की ओर। शहडोल संसदीय क्षेत्र पर पैनी नजर डाले तो एक तस्वीर स्पष्ट उभरकर सामने आती है। संसदीय क्षेत्र के तीन जिलों अनूपपुर, शहडोल और उमरिया के साथ कटनी सहित आठ विधानसभा क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र से उनके ही जननायक जीतकर आए हैं। हालांकि पूर्व में कांग्रेस के दिग्गज नेता स्व. श्री दलवीर सिंह और बाद में उनकी पत्नी स्व श्रीमती राजेश नंदनी सिंह के कारण यह क्षेत्र कांग्रेस की गढ़ रहा है, वही उनकी पुत्री श्रीमती हिमाद्री सिंह ने भाजपा का दामन थामकर इसे भाजपा के भगवा रंग से रंगने का प्रयास किया है, अब 24 की बिसात में यह और गाढ़ा रंग पकड़ेगा। अगर हम राजनीतिक जानकारों और कांग्रेसी सूत्रों की मानें तो पुष्पराजगढ़ विधायक फुन्देलाल का नाम लगभग तय माना जा रहा है या फिर अगर बात नहीं बनी तो अनूपपुर जिला कांग्रेस के अध्यक्ष रमेश सिंह के नाम पर भी कांग्रेस दांव खेल सकती है। लेकिन हाल के दिनों में विधानसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद कांग्रेस रमेश को टिकट देकर दोबारा गलती  करेगी ऐसा लगता नहीं। लेकिन कांग्रेस से कोई बड़ा चेहरा नहीं होने के कारण शहडोल लोकसभा के आगामी चुनाव में कांग्रेस उक्त दोनों के बीच किसी एक पर दांव लगाएगी ये तय है।  अगर कांग्रेस फुन्देलाल सिंह  को चुनावी मैदान में उतारती है फिर एक सवाल हमारे जेहन में कुलांचे मारता है कि क्या उनके सियासत की जमीन इतनी मजबूत है कि वो भाजपा उम्मीदवार, भाजपा संगठन और भाजपा आलाकमान को चुनौती दे पाएंगे? गौरतलब है कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला राममंदिर, रोजगार, आर्थिक विकास, विश्वगुरु की छवि और विदेश नीति पर होगा। वहीं कांग्रेस के पास चुनावी चौसर पर वोटों की फसल काटने के इर्द-गिर्द मुद्दों की फेहरिस्त लंबी है महंगाई और बेरोजगारी वो मुद्दे हैं जिनके आसरे कांग्रेस चुनावी मुद्दा बना सकती है लेकिन क्या कांग्रेस उक्त मुद्दों के आसरे जनता का विस्वास जीत पाएगी ॽ। बदलते राजनीतिक परिवेश में कांग्रेस की नीति से खुद ही कांग्रेसी कटते जा रहे हैं, ऐसे में चुनावी चौसर पर आरोप प्रत्यारोप जमकर होगा। वोटों की फसल काटने के मद्देनजर मखमली दावों का दौर शुरू होगा जनता को लुभाने के लिये हर पांसे फेंके जाएंगे हर विसात बिछाई जाएगी लेकिन अगर मौजूदा वक्त पर राजनीतिक समीकरणों को करीब से जाकर देखें और सियासी माहौल के आसरे परत दर परत पन्नों को पलटा जाए तो शहडोल लोकसभा चुनाव में मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस भाजपा के लिए वोटों के इर्द-गिर्द घूमती सुई पर चुनौती पर भाजपा उम्मीदवार हिमाद्री सिंह शहडोल संसदीय क्षेत्र में पहचान की मोहताज नहीं हैं।

भाजपा के कुशल और भारी भरकम चुनावी मैनेजमेंट के सामने कांग्रेस का हांफता हुआ संगठन भाजपा को आगामी लोकसभा चुनाव में कैसे चुनौती दे पाएगा ये अपने आप में सबसे बड़ा सवाल है वहीं दूसरी ओर भाजपा के सियासी जमीन पर अगर नजर डाली जाए तो यक़ीनन भाजपा का जमीनी संगठन धार दार और पैना नजर आता है। भाजपा के शहडोल संसदीय क्षेत्र के स्थानीय क्षत्रप भले ही मन ही मन हिमाद्री सिंह के उम्मीदवार बनाए जाने से खुश न हो ये अलग बात है लेकिन  भाजपा के चुनावी सिस्टम की मोटी लकीर के आगे गोलबंदी या या फिर भितरघात की हिम्मत शहडोल संसदीय क्षेत्र में भाजपा के नेता चुनावी पिच पर कर पाएंगे ऐसा लगता नहीं ।

तो क्या यह माना जाए की पिछले लोकसभा चुनाव में रिकार्ड चार लाख मतों से जीतने वाली हिमाद्री सिंह खुद अपना ही रिकार्ड को तोड़ने की राह में अग्रसर हो चुकी हैं? क्या हिमाद्री सिंह के रूप में शहडोल लोकसभा क्षेत्र को एक प्रभावशील नेतृत्व मिलने वाला हैॽ जिसकी कमी बीते एक दशक से महसूस हो रही है? क्या भाजपा हिमाद्री सिंह को एक प्रखर आदिवासी नेता के तौर पर पेश करने जा रही है? इस सभी सवालों का जवाब जनता के मत में छिपा हुआ है।।