खेल से सामाजिक एवं सामुदायिक भावना का विकास

खेल से सामाजिक एवं सामुदायिक भावना का विकास
अमरकंटक | इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी जी के कुशल नेतृत्व में राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारम्भ हुआ। कबड्डी मिटटी की सुगंध है, इसे भुलाया नहीं जा सकता है | इस खेल के प्रति भारतीयों की रूचि सदैव से रही है| वर्तमान में कार्पोरेट जगत के माध्यम से यह खेल प्रसार और प्रचार का एक ससक्त माध्यम बना है | पाश्चात्य देशों ने खेल को एक शैली के रूप में देखा है, परन्तु प्राचीन भारत में खेल का उददेश्य आनंद प्राप्ति , भाव-भावना का सृजन और सामाजिक एवं सामुदायिक भावना के विकास के प्रति रहा है | भारतीय ग्रामीण परिक्षेत्र के कुछ उद्धरण पर विचार करे तो हम पाते हैं कि ग्रामीण जन-जातीय समुदाय समग्र विचार के प्रति सजग सचेष्ट रहा है | हम सभी को उनसे सीख लेनी चाहिए | हम सभी को अनुभवजन्य ज्ञान से प्रेरणा लेनी चाहिएI कबड्डी खेल के क्षेत्र में स्थापित प्रतिष्ठित व्यक्तित्व के अनुभवजन्य ज्ञान से प्रेरणा प्राप्त करके कबड्डी के क्षेत्र में सर्वोत्तम स्थान तक पंहुचा जा सकता है | वस्तुतः खेल एक योग है तथा योग स्वानुभूति पर आधारित है I स्वानुभूति का पक्ष मानव अस्तित्व से संबंधित है, जो दो स्तरों पर समझा जा सकता है , प्रथम दैहिक शरीर और दूसरा सूक्ष्म शरीर | दैहिक शरीर और सूक्ष्म शरीर के स्पंदन से विचार रूपी सुक्ष्मतम अभिव्यक्ति तथा एक अलग तरह की उर्जा का प्रस्फुटन होता है, जो खेल के लिए अत्यधिक आवश्यक है |
उक्त बाते इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के शारीरिक शिक्षा विभाग के तत्वावधान में “प्रोकबड्डी युग में विकसित हो रहे रुझान, स्थापन्न प्रोटोकाल और प्रशिक्षण की रणनीतियाँ”. विषयक तीन दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि पंडित शंभू नाथ शुक्ला विश्वविद्यालय, शहडोल के माननीय कुलपति प्रो. राम शंकर ने कही | विद्या की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्ज्वलित कर राष्ट्रीय कार्यशाला का शुभारम्भ किया गया। इस अवसर पर मंचासीन अतिथियों द्वारा राष्ट्रीय कार्यशाला की विवरणिका का विमोचन भी किया गयाI
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक के इतिहास विभाग के वरिष्ठ आचार्य तथा उत्कल यूनिवर्सिटी ऑफ़ कल्चर, उड़ीसा के माननीय पूर्व कुलपति प्रो. व्योमकेश त्रिपाठी ने कहा कि किसी भी कार्यक्रम की सफलता अच्छे लोगों के आगमन से ही होता है | कोई भी खेल एक ज्ञान तंत्र है I कबड्डी हमारा देशज खेल है, इसे देश के प्रत्येक क्षेत्रों में खेला जाता है | इसी प्रकार इसकी लोकप्रियता भी है | हमारे जनजातीय बच्चों में खेल के क्षेत्र में रूचि के साथ-साथ बहुत सी खूबियाँ और कौशल भरे पड़े है I आवश्यकता है, उन्हें उचित माध्यम से मार्गदर्शन दे कर निखारने की | यह विश्वविद्यालय एक बड़ा केद्र है, जहाँ से प्रशिक्षण प्राप्त कर बच्चे कबड्डी तथा अन्य खेल के क्षेत्र में प्रतिष्ठा प्राप्त कर देश को एक नई ऊँचाइयों पर ले जा सकते है |
विशिष्ट अतिथि के रूप में द्रोणाचार्य पुरस्कार से अलंकृत श्री ई प्रसाद राव ने यह कि कबड्डी खेल जन-जातीय समुदाय से आया हैI पूरे भारत में खेल की यह विधा सबसे लोकप्रिय और प्रासंगिक हैI यह खेल ही नहीं अपितु हमारी संस्कृति है और संस्कृति को जीवित रखना हम सभी का नैतिक कर्तव्य है I प्री कबड्डी लीग ने कबड्डी को संस्कृति के साथ साथ रोजगारोन्मुख और लोकप्रिय बनाया है I प्री कबड्डी की यह लोकप्रियता निःसंदेह कबड्डी खेल को ओलम्पिक खेलों में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगीI
कार्यशाला में बीज वक्तव्य देते हुए प्रो कबड्डी लीग के कमिश्नर श्री अनुपम गोस्वामी ने कहा कि किसी भी युग की परिकल्पना उसके शोध, क्रियान्वयन और साहित्य के सम्मिलित स्वरुप से होता है I प्रो कबड्डी लीग एक भारतीय पेशेवर कबड्डी लीग है, जिसका दसवां सीजन 2024 में संपन्न हुआ हैI हम सभी बदलती वास्तविकता से सरोकार स्थापित कर प्रो कबड्डी खेल को नयी ऊँचाइयों तक पहुंचा सकते हैं, इसके लिए हमें चार नियमों यथा- फैन फोलोइंग, ओफ़िसिएटिंग, कम्युनिकेशन और टेक्नोलोजी को ध्यान में रखना होगा I साथ ही साथ भारत में प्रत्येक खेलों की भांति कबड्डी को भी माडल स्पोर्ट्स बनाना होगा I
कार्यक्रम की प्रस्ताविकी कार्यशाला के आयोजक सचिव एवं शारीरिक शिक्षा विभाग के सह आचार्य डॉ. मनोज कुमार पाण्डेय ने प्रस्तुत की | कार्यशाला में उपस्थित अतिथियों का स्वागत उद्बोधन राष्ट्रीय कार्यशाला के संयोजक तथा शिक्षा संकाय के अधिष्ठाता प्रो. एम. टी. वी. नागाराजू ने किया तथा आभार ज्ञापन शारीरिक शिक्षा विभाग के अध्यक्ष प्रो. ज्ञानेंद्र रावत ने किया I कार्यक्रम का संचालन शारीरिक शिक्षा विभाग की सहायक आचार्य हिमांशी वर्मा ने किया। इस कार्यशाला में प्रमुख विद्वानों में अधिष्ठाता अकादमिक डॉ. आलोक श्रोत्रीय, अधिष्ठाता समाज विज्ञान प्रो. रंजू हाशनी साहू , अधिष्ठाता योग प्रो. जितेंद्र शर्मा, अधिष्ठाता, व्यसाय प्रबंधन प्रो. अमरेन्द्र प्रताप सिंह, प्रो. नवीन शर्मा, प्रो. राघवेंद्र मिश्र , प्रो. सुबोध सिंह, प्रो. सुनील गौरहा, प्रो. अभिमन्यु सिंह, डॉ. अजय सिंह, डॉ. मुकेश उपाध्याय, डॉ. टी. प्रभाकर रेड्डी, डॉ. अजय राय, डॉ. बसंत अंचल, डॉ. मुकेश बिहारी घोरे, डॉ. रामायण प्रसाद, डॉ. अजय कुमार यादव, डॉ. सुरेश कुमार सिंह पवार, डॉ. मनीष कुमार नामदेव, डॉ. राम जी मिश्रा, डॉ. दिलीप चौधरी, डॉ. आलोक कुमार, डॉ. राकेश प्रसाद, डॉ. दीपक कुमार हथिया, डॉ. आनंद कुमार मिश्र, डॉ. निपेंद्र सिंह करचुली, डॉ. ललित कुमार मिश्र, डॉ. हरिराम पाण्डेय, डॉ. जितेंद्र कुमार सिंह, डॉ. त्रयम्बक नाथ पाण्डेय, डॉ. सचिन देव द्विवेदी व शोधार्थियों सहित सभी विद्यार्थी तथा शिक्षक उपस्थित रहे ।