देश में एक्टिव टेलीकॉम सर्विसेज प्रोवाइडर कंपनियां भारती एयरटेल, रिलायंस जियो इंफोकॉम, वोडाफोन-आइडिया (Vi) के लिए अच्छी खबर है. कंपनियों को अगले 20 सालों के लिए 8 प्रकार के स्पेक्ट्रम बैंड के लिए बोली लगाने का मौका मिलेगा. इसके जरिए आने वाले समय में 5जी सेवाओं के लिए भी अच्छा बैंड इंफ्रास्ट्रक्चर बनने की उम्मीद है. 

कब तय की गई है स्पेक्ट्रम ऑक्शन की तारीख

टेलीकॉम विभाग-डिपार्टमेंट ऑफ टेलीकम्यूनिकेशन (डीओटी) मोबाइल फोन सर्विसेज के लिए आठ स्पेक्ट्रम बैंड की स्पेक्ट्रम नीलामी का अगला दौर छह जून को आयोजित करेगा. नीलामी के लिए बेस प्राइज 96,317 करोड़ रुपये तय किया गया है. स्पेक्ट्रम का बंटवारा 20 साल के लिए किया जाएगा और सफल बोलीदाताओं को आने वाले 'मेगा ऑक्शन' में 20 सालाना किस्तों में समान पेमेंट करने की अनुमति दी जाएगी. नीलामी की जा रही कुल फ्रीक्वेंसी की वैल्यू 96,317 करोड़ रुपये है. 

टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम फीस की किस्तों के साथ जीएसटी का करना होगा भुगतान

टेलीकॉम डिपार्टमेंट के एक सीनियर ऑफिसर ने यह जानकारी दी कि टेलीकॉम कंपनियों को स्पेक्ट्रम फीस के पेमेंट के साथ-साथ गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स (जीएसटी) का भी भुगतान करना होगा. अधिकारी ने कहा कि टेलीकॉम कंपनियों को हर किस्त के साथ 18 फीसदी जीएसटी को चुकाना होगा. सीनियर ऑफिसर ने आगे कहा, "जीएसटी काउंसिल अपनी अगली मीटिंग में स्पेक्ट्रम नीलामी के दौरान बोली जीतने वाली कंपनियों के जरिए जीएसटी पेमेंट की प्रक्रिया को स्पष्ट कर सकती है. अधिकारियों के ये साफ करने से नीलामी प्रोसेस में जीएसटी कलेक्शन की विधि के बारे में क्षेत्रीय अधिकारियों के बीच भ्रम खत्म हो जाएगा."

कितने मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम की होगी नीलामी

800 मेगाहर्ट्ज, 900 मेगाहर्ट्ज, 1800 मेगाहर्ट्ज, 2100 मेगाहर्ट्ज, 2300 मेगाहर्ट्ज, 2500 मेगाहर्ट्ज, 3300 मेगाहर्ट्ज और 26 गीगाहर्ट्ज बैंड में सभी उपलब्ध स्पेक्ट्रम नीलामी का हिस्सा बने होंगे. 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

ऑडिट और कंसल्टेंट कंपनी मूर सिंघी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर रजत मोहन ने कहा कि जीएसटी कानून के तहत स्पेक्ट्रम भुगतान अन्य प्राकृतिक संसाधनों के इस्तेमाल के अधिकार के लिए लाइसेंसिंग सेवाओं के अंतर्गत आता है, जिसपर 18 फीसदी टैक्स लगाया जाता है. मूर ग्लोबल की भारतीय कंसलटेंट यूनिट मूर सिंघी के रजत मोहन ने साफ किया कि, "स्पेक्ट्रम चार्ज एक निश्चित अवधि में सिलसिलेवार तरीके से अदा करना होता है. इस प्रकार टैक्स पेमेंट भी अलग-अलग होगा. कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को इस बारे में एक स्पष्टीकरण जारी करना चाहिए ताकि इसके बारे में किसी भी मुकदमेबाजी से बचा जा सके."