लखनऊ । सपा प्रमुख और पूर्व सीएम अखिलेश यादव और राहुल गांधी फिर बेंगलुरु में साथ दिखे। विपक्षी एकता के लिए हुई बैठक में राहुल और अखिलेश काफी दिनों बाद हंसते-खिलखिलाते दिखाई दिए। दोनों नेताओं की करीबी ने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव की याद दिला दी। 2017 में कांग्रेस और सपा ने गठबंधन किया था। यूपी को ये साथ पसंद के नारों के साथ दोनों नेताओं ने जबर्दस्त माहौल बनाया था मगर चुनाव में सपा-कांग्रेस गठबंधन को करारी हार मिली थी। बीजेपी ने 312 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था। चुनाव के बाद अखिलेश और राहुल की राहें जुदा हो गई। अखिलेश सार्वजनिक तौर से कांग्रेस से दुबारा गठबंधन करने से इनकार कर दिया था। 2017 में हार में बाद सपा की ओर से यह दलील दी गई कि सपा के वोट तब कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले, मगर कांग्रेस खुद अपने वोटरों को गंवा बैठी। कांग्रेस समर्थक वोटर बीजेपी के पाले में चले गए, उन्होंने सपा को वोट किया ही नहीं।
2024 लोकसभा चुनाव के लिए जब विपक्षी एकता की पहल हुई, तब दोनों नेता पहले पटना, फिर बेंगलुरू में साथ आए। अखिलेश मीटिंग में जाने से पहले यूपी में कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग के संकेत दे चुके हैं। पटना से लौटने के बाद अखिलेश ने कहा कि अगले लोकसभा चुनाव में कभी फ्रेंडली मैच नहीं होगा। बीजेपी को हराने के लिए वह नीतीश कुमार को हर सीट पर बीजेपी बनाम वन का फॉर्मूला मानूंगा। हालांकि अखिलेश सर्वे के बाद सपा के लिए 50 सीटों का चुनाव कर चुके हैं। संभव है कि अन्य सीटों पर वह कांग्रेस और रालोद के साथ सीट शेयर होगी। 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बीएसपी के साथ गठबंधन किया था। तब अखिलेश ने खुद से एक सीट ज्यादा बसपा को दिए थे। सपा तब 37 और बसपा 38 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। चुनाव में फायदा बहुजन समाजवादी पार्टी को मिला और बहनजी की पार्टी ने 10 सीटें जीत लीं, जबकि सपा को 5 पारंपरिक सीटों से संतोष करना पड़ा था।
वहीं 2017 विधानसभा चुनाव की बात करें तब राहुल और अखिलेश यादव के गठबंधन के बावजूद सपा को 47 और कांग्रेस को 7 सीटें मिली थीं। यूपी को ये साथ पसंद है वाला नारा बुरी तरह से फ्लॉप हो गया था। 2022 के विधानसभा चुनाव में छोटे दलों से गठबंधन कर अखिलेश यादव ने 125 सीटें जीत लीं। अगर विपक्षी एकता के नाम पर अखिलेश फिर यूपी में कांग्रेस के साथ सीट शेयर करते हैं, तब फायदा किसे होगा? इतना तय है कि सपा के साथ से कांग्रेस को यूपी में संजीवनी मिल सकती है, जैसे 2019 में मायावती की बसपा को मिली थी। इस विपक्षी एकता का दूसरा पहलू भी है। बहुजन समाजवादी पार्टी इन बैठकों से दूर है। आने वाले चुनाव में वह यूपी में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी। फिर यूपी में खेल पलटकर बीजेपी के पाले में जा सकता है, जो क्षेत्र के जाति आधारित दलों से गठबंधन कर चुनाव में उतरने की तैयारी कर रही है।