नई दिल्ली । चंद्रमा पर पानी के होने के सबूत चंद्रयान-1 ने पहले ही दे ‎दिए थे, ले‎किन अब अमे‎रिकी वैज्ञा‎निकों ने खुलासा ‎किया है ‎कि चंद्रमा पर पानी और कहीं से नहीं ब‎ल्कि पृथ्वी से ही पहुंचा है। दरअसल आने वाले समय में चंद्रमा पर जाने वाले मानव अभियान के ‎लिए यह जानकारी होना बहुत ही जरूरी है कि वहां पानी किस रूप में, कितनी मात्रा में कहां कहां मौजूद है। इसके अलावा वहां पर पानी का स्रोत क्या है यानि पानी वहां कैसे आया। क्या उसका चंद्रमा पर ही कुछ पुरानी प्रक्रियाओं द्वारा निर्माण हुआ था या अब भी हो रहा है। साल 2008 में भारत के चंद्रयान 1 ने खुलासा किया था कि चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर पानी बर्फ के रूप में हैं। अब अमेरिकी अध्ययन ने उसी के आंकड़ों से खुलासा किया है कि यह पानी पृथ्वी की प्लाज्मा शीट की वजह से वहां पहुंचा है। चंद्रमा पर इंसानों को भेजने की कवायद पर तेजी से काम चल रहा है। नासा के आर्टिमिस अभियान के तहत चंद्रमा पर पानी की तलाश जोरों से हो रही है। इसलिए अमेरिका में चंद्रमा पर शोधकार्य भी खूब हो रहे हैं। नए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि पृथ्वी की प्लाज्मा शीट के उच्च ऊर्जा वाले इलेक्ट्रॉन चंद्रमा के मौसम को बहुत प्रभावित करते हैं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि पृथ्वी की यही प्रक्रिया ही चंद्रमा पर पानी के निर्माण की प्रक्रिया में बड़ी भूमिका निभा रही है। यह संबंध चंद्रमा पर उन इलाकों मे जहां सूर्य की किरणें नहीं पहुंच रही हैं, वहां बर्फीले पानी के होने पर काफी रोशनी डाल सकता है। इस पूरी प्रक्रिया में सूर्य की सौरपवनों के साथ पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड की अंतरक्रिया से ही प्रक्रियाएं होती हैं। पृथ्वी के चारों ओर एक चुंबकीय बल का क्षेत्र होता है जिसे मैग्नेटोस्फियर कहते हैं जो पृथ्वी की अंतरिक्ष से आने वाले हानिकारक विकरणों से रक्षा करता है। सूर्य से आने वाली सौर पवनें जो कि आवेशित कणों की धाराएं होती है इस मैग्नेटोस्फियर को प्रभावित करते हैं। इससे पृथ्वी के रात वाले हिस्से में एक लंबी पूंछ जिसे मैग्नेटोटेल कहते हैं बनती है, जो वास्तव में एक प्लाज्मा शीट होती है।