यमुना की बाढ़ में खादर क्षेत्र में रहने वाले सैकड़ों बच्चों की उम्मीदें भी बह गईं। इनकी स्कूल ड्रेस, किताबें, बैग, सब कुछ बह गए। कई बच्चों की पिछली कक्षाओं के अंकपत्र व जरूरी कागजात यमुना में समा गए। बाढ़ राहत शिविरों में सबके अपने-अपने दर्द हैं, वहीं ये बच्चे अपनी पढ़ाई को लेकर फिक्रमंद हैं। इन बच्चों के माता-पिता अपने गांव से दूर यमुना खादर में रहकर खेती करते हैं। अधिक पढ़े लिखे नहीं होने के कारण इनके मां-बाप की सोच यही है कि कैसे भी वे ज्यादा से ज्यादा फसल उगाएं और चार पैसे कमाकर अपने परिवार का पालन पोषण करें। इनके बच्चे घर और खेत के काम से फुरसत पाने के बाद जो समय बचता है, उसमें पढ़ाई करते हैं। लेकिन कई बच्चे ऐसे भी हैं, जोकि अपनी पढ़ाई को लेकर संजीदा हैं और तराई इलाके के कच्चे-पक्के रास्तों को तय कर नोएडा-दिल्ली लिंक रोड पार करते हैं और मयूर विहार के विभिन्न सरकारी स्कूलों में पढ़ने आते हैं।

आखिरी वक्त तक लगा कि नहीं बढ़ेगा पानी

इनके माता-पिता को लगा कि पानी उतना नहीं बढ़ेगा, जब आखिरी वक्त में पानी घरों में भरने लगा तो इन्हें घर छोड़ना पड़ा। लोग अपना कोई सामान साथ नहीं ला पाए। जब तक यमुना का पानी बढ़ा हुआ है, तब तक ये अपने घर नहीं लौट सकते।

बच्चों ने साझा किया दर्द

. मेरे पास कोई किताब नहीं है, स्कूल ड्रेस भी नहीं है, अभी स्कूल बंद है लेकिन जब खुलेगा तो स्कूल कैसे जाऊंगी। - पायल (आठवीं कक्षा)
. मेरी भी सारी किताबें बह गईं। घर का सारा सामान बह गया। मैं स्कूल फिर से जाना चाहता हूं, लेकिन कैसे जाऊंगा, पता नहीं। - मंगल (नवीं कक्षा)
. बाढ़ में मेरी सारी मार्कशीट, किताबें, बैग, स्कूल ड्रेस सब बह गए। केवल ये जो कपड़ा पहना है, वही है। - काजल (12वीं कक्षा)
. पिछले एक हफ्ते मेहनत करके होम साइंस खाद्य संसाधन का प्रोजेक्ट तैयार किया था, सब बह गया। - रानी कुमारी (12वीं कक्षा)