वसुधैव कुटुम्बकम् की महिमा को जी20 के शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया ने देखा और समझा है। भारतीय जनता पार्टी इसी सोच के तहत काम करती है। अंत्योदय को आत्मसात करते हुए उस नेता को जनता के बीच जिम्मेदारी देती है, जिनका परिवार खास न हो, लेकिन समाज के प्रति वो काम अच्छी तरह से करते हैं। मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए अब तक 137 उम्मीदवारों की सूची जारी की गई है। इसमें उन्हीं नेताओं के नाम हैं, जिन्होंने जनता के बीच बेहतर काम किया है। चाहे वो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान हो, गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा हों, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हों, केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते व प्रह्लाद पटेल हों। एक भी नेता परिवारवाद का उदाहरण बनकर लोगों के सामने नहीं आया है। जिसने जनता के लिए काम किया है, उसे ही भाजपा ने जनता के बीच फिर से जाने का मौका दिया है। 

कांग्रेस से आगे है भाजपा 

चुनाव आयोग की ओर से की गई चुनाव की तारीखों के ऐलान के साथ विधानसभा चुनाव का बिगुल फूंक गया। मध्य प्रदेश में 17 नवंबर को मतदान और तीन दिसंबर को नतीजों की घोषणा होगी। अगर आरंभ के मौके पर दोनों प्रमुख प्रतिद्वंदी राजनीतिक दलों की दशा, दिशा और हालत की बात करें तो सत्तारूढ़ भाजपा विपक्षी कांग्रेस पार्टी से मीलों आगे नजर आ रही हुआ। कांग्रेस के लिए जहां किसी भी सीट पर अब तक पर ठोस उम्मीदवार की तलाश संभव नहीं हो पा रही, वहीं भाजपा की केंद्रीय समिति ने उम्मीदवारों की चौथी सूची पर अंतिम मुहर लगा दी है। भाजपा की ओर से अब तक 137 सीटों से चुनावी मैदान में उतरने वाले मजबूत प्रत्याशियों के नाम की घोषणा कर दी है।
जिन उम्मीदवारों का नाम तय कर दिया गया है, उनमें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और नरोत्तम मिश्रा जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं। मुख्यमंत्री अपनी पारंपरिक सीट बुधनी से एक बार फिर भाजपा के उम्मीद्वार हैं, तो केंद्रीय नेता कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर से उतारकर बता दिया गया है कि इसबार भारतीय जनता पार्टी 2019 की तरह कोई मरव्वत बरतने में मूड में नहीं है। इसी प्रकार कई सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को जनता के बीच भेजा गया है। 

कांग्रेस के बड़े नेताओं को जनता के बीच जाना नहीं चाहते हैं
पार्टी विद डिफरेंस का नारा देने वाली भाजपा ने एक बार फिर इस बात को सच कर दिया है कि उसके नेता चाहे केंद्रीय मंत्री की कुर्सी पर ही क्यों न हो, पार्टी के आदेश की अवहेलना भाजपा की परंपरा नहीं। जैसे ही पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, फग्गन सिंह कुलस्ते, प्रहलाद पटेल सहित सांसद राकेश सिंह, पार्टी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को विधानसभा चुनाव में जाने का आदेश दिया, तो तुरंत ही ये नेता अपने विधानसभा क्षेत्र में जनता के बीच नजर आए। दूसरी ओर, कांग्रेस की बात करें, तो मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पहले ही चुनाव लड़ने से मना कर दिया। उसके बाद राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा ने भी पार्टी की इच्छा का सम्मान नहीं किया। इसी राह पर चलते हुए प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अरुण यादव ने भी विधानसभा चुनाव का प्रत्याशी बनने से सरेआम इंकार कर दिया।

असमंजस में है कांग्रेस 
भाजपा की ओर से जोशपूर्ण तैयारी के प्रदर्शन के बीच प्रतिद्वंदी कांग्रेस के लिए चुनाव की तारीख के ऐलान के दिन तक एक भी सीट पर तय उम्मीदवार के नाम की घोषणा संभव नहीं हो पाई है। भाजपा के लिए उम्मीदवारों के ऐलान में भारी बढ़त लेने के बाद जनता के बीच चर्चा हो रही है कि गुटबाजी की वजह से ही कांग्रेस अभी तक अपने उम्मीदवारों के नाम तय नहीं कर पाई है। कई मौके पर पूर्व मुख्यमंत्री व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ से भी उम्मीदवार सूची पर बात की गई, तो हर बार वो चार-पांच दिन कहकर बात टाल जाते हैं। 

केवल काम का लेखा-जोखा करती है भाजपा
आम मतदाता से लेकर मध्य प्रदेश के राजनीतिक-सामाजिक विश्लेषकों से बात होने पर यह पता चलता है कि जिस प्रकार से भाजपा में कई दौर का मंथन होता है। विधायक से लेकर संभावित प्रत्याशी और राज्य के मंत्रियों से उनका रिपोर्ट कार्ड मांगा जाता है, उस पर कई कमेटियों में विचार-विमर्श होता है। विमर्श के दौरान केवल उम्मीदवारों के कार्यों और सामाजिक सरोकारों को वरीयता दी जाती है। यह नहीं देखा जाता है कि कौन किस परिवार से आता है। भाजपा नेता यही कहते हैं कि पूरा प्रदेश और समाज ही हमारा परिवार है।