नई दिल्ली । पहले से महंगाई की मार झेल रहे ग्राहकों पर इस त्योहारी सीजन में और जेब ढीली करनी पड़ सकती है। फेस्टिव सीजन के दौरान अनियमित मॉनसून और कमजोर रुपए के कारण उपभोक्ता वस्तुओं की कीमतें ऊंची रह सकती हैं। यह बात उपभोक्ता प्रमुख कंपनियों ने कही। अल नीनो के प्रभाव पर बढ़ती चिंताओं के बीच अब सभी की निगाहें इस पर टिकी हैं कि जून-सितंबर के बरसात के मौसम के शेष हफ्तों में मॉनसून कैसा प्रदर्शन करता है। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के मुताबिक, इस दक्षिण-पश्चिम मॉनसून सीजन में 1 जून से 22 अगस्त तक 270 जिलों में कम बारिश हुई, जबकि 19 जिलों में काफी कम बारिश हुई। ये जिले बड़े पैमाने पर पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तेलंगाना और केरल में फैले हुए हैं। भारत की सबसे बड़ी बिस्कुट निर्माता कंपनी पारले प्रोडक्ट्स के एक व‎रिष्ठ अ‎धिकारी ने कहा ‎कि हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले हफ्तों में बारिश की स्थिति में सुधार हो। 
हालांकि हम मुद्रास्फीति को एक बड़ी चिंता के रूप में नहीं देखते हैं लेकिन खराब मॉनसून आगामी त्योहारी सीजन में, विशेष रूप से ग्रामीण बाजारों में, उपभोक्ता मांग पर कुछ हद तक असर डाल सकता है। बारिश में कमी का सीधा असर फसलों पर पड़ता है और इससे उपभोक्ता भावना प्रभावित होती है। फॉर्च्यून ब्रांड के उत्पाद बेचने वाली कंपनी अडानी विल्मर के अ‎धिकारी ने कहा ‎कि सरकार द्वारा गैर-बासमती कच्चे, सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद पिछले महीने बासमती चावल की कीमतें 7-8 फीसदी बढ़ गई हैं। गैर-बासमती चावल पर प्रतिबंध के बाद बासमती के निर्यात में वृद्धि देखी जा रही है, जिसके परिणामस्वरूप कीमतें बढ़ रही हैं। अब अगर मॉनसून अनियमित रहा तो इससे चावल की कुल उपलब्धता पर और दबाव पड़ेगा। लंबे समय तक सूखा रहने का असर सोयाबीन की फसल पड़ सकता है जो सोयाबीन तेल का एक प्रमुख स्रोत है।