नई दिल्ली। नौ दिन चले अढाई कोस... यह कहावत यमुना की सफाई के संदर्भ में एकदम सटीक बैठती है। एलजी वीके सक्सेना और दिल्ली सरकार में श्रेय लेने की होड़ के बीच एक और डेडलाइन 30 जून भी बीत गई, लेकिन राष्ट्रीय राजधानी में 22 किमी के दायरे में बह रही यमुना में कहीं भी पानी साफ नहीं हो पाया। आलम यह है कि यमुना में बह रहा कचरा निकालने और किनारों व डूब क्षेत्र का सुंदरीकरण भी आधे हिस्से यानी 11 किमी में ही हो पाया है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी में सरकारें भले बदलती रही हों, लेकिन यमुना की दुर्दशा में कोई सुधार नहीं आया। यह तो साल दर साल बद से बदहाल ही होती गई। करोड़ों रुपया भी यमुना की ''गाद'' में बह गया। हैरत की बात यह कि विधानसभा चुनाव में हर बार मुददा बनने के बाद भी यमुना अपनी बेबसी पर आंसू ही बहाती रही है। जनवरी में एनजीटी द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति के अध्यक्ष रूप में एलजी वीके सक्सेना ने 30 जून तक यमुना में उल्लेखनीय सुधार करने का दावा किया था। छह माह की कार्ययोजना भी तैयार कराई थी। इसके तहत दिल्ली में 22 किमी के यमुना स्ट्रेच को 11-11 किमी के दो हिस्सों में बांटा गया था।

तीन सूत्रीय थी योजना

यमुना के पानी में बह रहा कचरा निकाला जाएगा, डूब क्षेत्र को विकसित किया जाएगा और घाटों का कायाकल्प होगा। अब यदि 30 जून तक की स्थिति पर गौर करें तो पहले 11 किमी यानी सिग्नेचर ब्रिज से आइटीओ तक वाकई काम नजर आता है। पानी में तैर रहा सारा कचरा तो निकाल ही लिया गया है, दोबारा से कचरा ना डले, इस निमित्त नदी के किनारों पर प्रादेशिक सेना के 100 जवान भी तैनात कर दिए गए हैं इसके अलावा घाटों व डूब क्षेत्र से अतिक्रमण हटा वहां हरा भरा माहौल बना दिया गया है। पिछले दिनों इस हिस्से में नेवी की बोट का ट्रायल भी सफल रहा। लेकिन आइटीओ से ओखला तक 11 किमी के हिस्से में यह काम भी अभी तक शुरू नहीं हो पाया है। कहा जा रहा है कि इस हिस्से में आठ जुलाई से यह कार्य शुरू होने की संभावना है। कार्य को पूरा होने में कितने माह लगेंगे, यह अभी तय नहीं है। सबसे चिंताजनक यह कि ऊपर से भले ही यमुना का पानी साफ दिखाई दे, लेकिन इसमें नीचे तक मिले प्रदूषक तत्व कहीं भी कम नहीं हुए हैं। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की जून माह की रिपोर्ट पर ही गौर करें तो मार्च, अप्रैल, मई और जून में हुई अच्छी वर्षा के बावजूद यमुना का पानी नहाने लायक भी केवल पल्ला और वजीराबाद में ही है, आचमन योग्य तो कहीं भी नहीं है। कश्मीरी गेट तक आते आते यह पानी प्रदूषक तत्वों के कारण नहाने लायक भी नहीं रह जाता।

यमुना की स्थिति में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयास

एनजीटी ने अपने हाथ में ली जिम्मेदारी और जनवरी 2023 में एलजी के नेतृत्व में एक उच्च स्तरीय समिति बनाई।
अब इसकी रिपोर्ट एनजीटी तो ले ही रहा है, हर पखवाड़े एलजी भी यमुना की सफाई पर समीक्षा बैठक कर रहे हैं।
नालों से प्लास्टिक कचरा और गंदगी मशीनों से निकाली जा रही है और दोबारा न डले इसके लिए प्रादेशिक सेना की एक पूरी बटालियन यमुना के किनारे तैनात कर दी गई है -जो नाले नदी में गिरते थे, उनमें से कुछ पर जाली लगा दी गई है, ताकि कचरा नदी में न जाए।
जल बोर्ड के पुराने एसटीपी की क्षमता बढ़ाई गई है और नए एसटीपी बनाने का काम तेजी से चल रहा है।
पिछले माह में अनधिकृत क्षेत्रों में चल रही सौ से अधिक डाइंग यूनिट बंद की गई हैं, पहले इन्हें नोटिस दिया जाता था, अब सीधे सील किया जा रहा है और साथ ही बिजली-पानी का कनेक्शन काटा जा रहा है।