भोपाल ।  आज की युवा पीढ़ी का ज्यादातर समय मोबाइल में तेज आवाज में संगीत सुनने के साथ, आनलाइन गेम खेलने में बीत रहा है। कुछ युवा काल सेंटर और वर्क फ्राम होम के चलते आनलाइन मीटिंग करते हैं, जिससे उनके कान में सन्न की आवाज व सीटी बचने की परेशानी हो रही है। जिसके चलते वह डाक्टरों के पास पहुंच रहे हैं। ईयरफोन का अत्यधिक उपयोग युवाओं को बहरा बना रहा है।

बढ़ रही समस्या

हाल ही में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले मोहित वर्मा (बदला हुआ नाम) को कान सीटी बजने जैसा लग रहा था। माता-पिता उसे अस्पताल पहुंचे। जांच में सामने आया कि कान की नसें रोजाना घंटों तक ईयरफोन लगाने के चलते कमजोर हो गई हैं, जिससे सुनने की शक्ति भी प्रभावित हुई। चिकित्सकों के अनुसार इस स्थिति में जो असर कानों पर पड़ा है, वह पूरी तरह सही नहीं हो सकता। इसके लिए सावधानी बरतने की जरूरत है। हमीदिया अस्पताल में हर महीने नाक-कान-गला रोग विशेषज्ञ के पास 25 पीड़ित युवा आ रहे हैं, जो चिंताजनक है।

छोटे साइज के ईयरफोन नहीं करें उपयोग

हमीदिया अस्पताल में नाक-कान-गला विशेषज्ञ विभाग की प्रमुख डा. स्मिता सोनी के अनुसार छोटे साइज के ईयरफोन कान में लगाए जा रहे हैं जो इस परेशानी का प्रमुख कारण हैं। ईयरफोन, हेडफोन व ईयर बड्स समेत अन्य उपकरणों के कारण यह समस्या बढ़ रही है। इससे एकाग्रता भी भंग हो रही है। युवा आनलाइन क्लास, संगीत सुनने, काल पर बात करने से लेकर इंटरनेट मीडिया चलाने तक इन ध्वनि उपकरणों का घंटों इस्तेमाल करते हैं। कई लोग आज भी वर्क फ्राम होम के चलते आनलाइन मीटिंग करते हैं। वहीं कई युवा काल सेंटर में काम करते हैं, जिसके लिए वे लगातार ईयरफोन का उपयोग करते हैं। इससे उनकी सुनने की क्षमता कम हो रही है। समय पर सचेत न किया जाए तो बहरेपन की आशंका बढ़ जाती है। ऐसे में सतर्कता बरतने की जरूरत है।

ध्वनि प्रदूषण से भी खतरा

वहीं दूसरा कारण शहर का ध्वनि प्रदूषण भी है। इन दिनों बार, क्लब, संगीत कार्यक्रम के अलावा डीजे में औसतन 100 डेसिबल से ज्यादा आवाज होती है। तेज आवाज में बज रहे गाने भी युवाओं के सुनने की क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं। जरूरी है कि इन जगहों पर भी आवाज की ध्वनि को निर्धारित स्तर पर ही बजाया जाए। लगातार तेज आवाज में गाने सुनने से बिना एहसास के लोग बहरेपन का शिकार हो रहे हैं। वहीं जब इसका एहसास होता है, तब तक कोई इलाज भी नहीं बचता। वाहनों के बढ़ते उपयोग से ध्वनि प्रदूषण का स्तर भी काफी बढ़ा है, जो कानों पर गहरा असर डाल रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार दुनिया भर में कुल आबादी के पांच फीसदी लोगों यानी लगभग 43 करोड़ सुनने की समस्या से ग्रासित हैं। 2050 तक यह संख्या 70 करोड़ लोगों तक जा सकती है।

ये करना है जरूरी

- परिजन खुद युवाओं के सामने लंबे समय तक हेडफोन व ईयरफोन का इस्तेमाल न करें।
- यदि वह अकेले में फोन पर बात कर रहे हैं तो उन्हें निजी स्पेस दें, जिससे वह हेडफोन के इस्तेमाल से दूर रहें।
- युवाओं को समझाना होगा कि जहां तक संभव हो फोन, लैपटाप में लगे स्पीकर का ही इस्तेमाल करें।
- युवा अगर निर्धारित समय से अधिक हेडफोन का इस्तेमाल करें तो उन्हें समझाएं कि यह खतरनाक है।