अवमानना के सभी आरोपियों को शपथ पत्र पेश करने के दिए निर्देश 


 जबलपुर। सड़क किनारे सरकारी जमीन पर कब्जा कर के बनाए गए अवैध धर्मस्थलों के मामले में मध्यप्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व दिशा-निर्देश के पालन में ठोस कार्रवाई न होने पर नाराजगी जताई। हाईकोर्ट ने अवमानना के सभी आरोपियों को अलग-अलग शपथ पत्र पेश करने के सख्त निर्देश दे दिए। इस मामले की अगली सुनवाई चार सप्ताह बाद निर्धारित की गई है। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति विशाल मिश्रा की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान अवमानना याचिकाकर्ता अधिवक्ता सतीश वर्मा ने अपना पक्ष स्वयं रखा। अधिवक्ता अमित पटेल ने पैरवी में सहयोग किया। दलील दी गई कि विगत सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट ने अपने व सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट दिशा-निर्देश के बावजूद सड़क किनारे व सार्वजनिक स्थलों पर काबिज अवैध धर्मस्थल न हटाए जाने के रवैये को आड़े हाथों लिया था। यही नहीं पूर्व निर्देश के बावजूद एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश न किए जाने पर नाराजगी भी जताई थी। साथ ही सख्ती बरतते हुए अगामी तिथि पर अवमानना के आरोप पर सुनवाई की व्यवस्था दे दी थी। इसके बावजूद अवमानना के आरोपितों का रवैया पूर्ववत लापरवाही भरा नजर आ रहा है। अधिवक्ता सतीश वर्मा ने 2014 में अवमानना याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हाई कोर्ट ने भी साल 2018 में स्वंत संज्ञान लेते हुए मामले की सुनवाई जनहित याचिका के रूप में किए जाने की व्यवस्था दी थी। इसके अलावा एक अन्य जनहित याचिका भी दायर की गयी थी, जिसमें जिला शिक्षा अधिकारी द्वारा कार्यालय परिसर के बाहर सड़क पर मंदिर बनाए जाने को चुनौती दी गयी थी। याचिकाओं पर पूर्व में संयुक्त सुनवाई के दौरान हाई कोर्ट को अवगत कराया गया था कि सार्वजनिक स्थलों व सड़क किनारे बने अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने के आदेश का पूर्णत: पालन नहीं किया गया है। रोड चौड़ीकरण, नाली निर्माण व फुटपाथ में 64 अवैध धार्मिक स्थल बाधक बने हुए है। कलेक्टर राजनीतिक दबाव के कारण अवैध धार्मिक स्थलों को हटाने से पीछे हट रहें है। कैंटोनमेंट और रेलवे और आर्मी एरिया के भी अवैध धार्मिक स्थल कलेक्टर की उदासीनता के कारण नहीं हटाए जा सके हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर पूर्व में हटाए गए 11 अवैध धार्मिक स्थलों का पुन: निर्माण किया जा रहा है। कैंटोनमेंट बोर्ड की तरफ हाई कोर्ट को अवगत कराया गया कि कैंट में बचे हुए धर्म स्थल हटाने के लिए कलेक्टर को बार-बार पत्र लिखा गया था, परंतु समय पर मजिस्ट्रेट और पुलिस बल उपलब्ध नहीं कराया गया।