विदिशा ।   दो दिन पहले तक हंसते खिलिखिलाते गांव पिथौली में अब अजीब सा सन्नाटा है। मायूस किसान खेतों में जाकर ओलों से बर्बाद फसल को समेटने में लगे है। उन्हें इंतजार सर्वे दलों का है, ताकि वे उन्हें फसलों की बर्बादी दिखा सके। फसल देख कर बार बार रुआंसे होते किसानों का कहना था कि ओले उनकी फसल पर नहीं किस्मत पर पड़े है। गेहूं, चना की बर्बादी इतनी है कि अब परिवार के साल भर के अनाज की पूर्ति नहीं हो पाएगी। कुरवाई तहसील का पिथौली वह गांव है जहां दो दिन पहले सोमवार को मूसलाधार वर्षा के साथ करीब आधा घंटे तक बेर से लेकर आंवले तक के आकार के ओले गिरे थे। शहर की गलियों से लेकर डामर की सड़कें तक पर ओलों की मोटी परत बिछ गई थी। किसानों की मानें तो 12 घंटे बाद भी गांव में ओलों के ढेर लगे थे। 40 साल बाद हुई इस तरह की ओलावृष्टि ने इस गांव की खुशियों को छीन लिया। गांव के 60 वर्षीय पूर्व सरपंच लखपत सिंह कहते हैं कि गांव में इस बार एक पखवाड़े में दूसरी बार ओले गिरे, जिसमें गेहूं, चना और सरसों की पूरी फसल बर्बाद हो गई। वे बताते है कि इस गांव में करीब 200 परिवार रहते है, जिनकी आजीविका का साधन खेती ही है, लेकिन अबकी बार मौसम की मार ने उनकी खुशियां छीन ली। कुछ किसान परिवार ऐसे हैं, जिनके घर में साल भर खाने के लिए गेहूं भी नहीं बचा। वे बताते है कि इस बार उन्होंने 22 बीघा में गेहूं बोया था, जिसमें करीब सवा दो सौ क्विंटल गेहूं निकलता, लेकिन अब ओलों की मार में गेहूं की बालियां टूट गई और दाने खेत में बिखर गए। कटाई करने पर भी बमुश्किल 50 क्विंटल से अधिक अनाज नहीं निकलेगा। इसमें तो लागत भी नहीं निकल पाएगी।

कर्ज चुकाना मुश्किल, टालना पड़ेगी शादी

इसी गांव के कृष्णपाल सिंह बताते हैं कि करीब 20 बीघा में उन्होंने सरसो, गेहूं और सब्जी की फसल लगाई थी। फसल इतनी अच्छी थी कि इस बार सारे कर्ज उतरने की उम्मीद के साथ ही धूमधाम से छोटे भाई की शादी करने की इच्छा थी, लेकिन ओले और वर्षा ने पूरी उम्मीदों को मिट्टी में मिला दिया। पहली बार आठ बीघा में सरसो बोया था, फसल रहती तो तीन लाख रुपये की होती, पर अब सरसों के दाने खेत में बिखरे पड़े हैं। वे कहते है कि कर्ज चुकाना तो दूर उन्हें नई फसल के लिए फिर कर्ज लेना पड़ेगा। भाई की शादी भी अब नहीं कर पाएंगे।

फसल की बर्बादी देख छलक पड़े आंसू

55 वर्षीय लक्ष्मण सिंह बताते हैं कि सोमवार को वे खेत में गेहूं की कटाई कराने के लिए गए थे लेकिन दोपहर में मौसम बिगड़ने पर घर आ गए। कुछ देर बाद ही ओलों की बरसात होने लगी। घर के बच्चे और महिलाएं डर के मारे रोने लगे। इसके पहले इतनी तेज रफ्तार से ओले नहीं गिरे थे। मौसम खुलने के बाद जब वे खेत पहुंचे तो फसल की बर्बादी देख उनकी आंखों से भी आंसू छलक पड़े, कुछ घंटे पहले लहलहाती फसल आड़ी पड़ी थी और दाने जमीन पर बिखरे थे। वे कहते है कि परिवार की आजीविका ही खेती के भरोसे है। अब भविष्य की चिंता सताने लगी है। वे बताते है कि गांव में अब तक कोई सर्वे दल नहीं पहुंचा है। किसान रोज खेतों पर जाकर बिखरी किस्मत को समेटने में लगे है।