भारत ने रूस से कच्चे तेल (क्रूड) की खरीदी पर पिछले वित्त वर्ष में 5 अरब डॉलर (करीब 40,965 करोड़ रुपये) की रकम बचाई है। यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों की ओर से मास्को पर लगाए गए प्रतिबंधों के बाद रूस इस समय दुनिया में सबसे सस्ता तेल बेच रहा है। इसका फायदा उठाते हुए भारत ने 2022-23 में रूस से जमकर तेल की खरीदारी की।

2022-23 में भारत ने 162.1 अरब डॉलर का कच्चा तेल खरीदा है। उस पूरे वित्त वर्ष में कच्चे तेल की कीमतें 75 से 130 डॉलर प्रति बैरल थीं। भारत ने शीर्ष चार देशों से औसत 685 डॉलर प्रति टन के भाव से क्रूड खरीदा था। अगर इसमें से रूस की खरीदी हटा दें तो यह कीमत 704 डॉलर प्रति टन हो जाती है।

आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने रूस से 615 डॉलर प्रति टन के भाव से तेल खरीदा है। नाइजीरिया से 790 डॉलर और इराक से 636 डॉलर के भाव से खरीदा है। इस तरह से रूस के सस्ते तेल से भारत ने 5 अरब डॉलर की बचत की। आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में यूक्रेन युद्ध से पहले रूस सबसे महंगा तेल देता था। लेकिन युद्ध के बाद इसकी कीमतें काफी कम हो गईं।

वित्त वर्ष 2015-16 में दुनिया में कच्चे तेल की औसत कीमत 324 डॉलर प्रति टन थी जबकि रूस में यह कीमत 483 डॉलर पर थी। 2016-17 में यह भाव 329 और 578 डॉलर जबकि 2017-18 में यह 401 और 394 डॉलर प्रति टन हो गया। 2018-19 में दुनिया में औसत कीमत 504 डॉलर प्रति टन जबकि रूस में 533 डॉलर प्रति टन रही। 2019-20 में यह 465 और 489 डॉलर प्रति टन के भाव रही।

हाल में रूस व भारत के बीच रुपये में कारोबार को लेकर मामला टल गया है। रूस के पास रुपयों का अंबार लग गया है, जो उसके लिए समस्या बन गया है। रूस के लिए रुपये को दूसरी मुद्रा में बदलने की लागत बढ़ती जा रही है, इसलिए वह रुपये में भुगतान लेने से इन्कार कर रहा है।

वैश्विक भाव से कम रहीं रूस की कीमतें

आंकड़ों के अनुसार, 2020-21 में दुनिया भर में औसत कीमत 315 डॉलर प्रति टन रही तो रूस में यह 342 डॉलर प्रति टन रही। 2021-22 में भी यह ज्यादा रही। वैश्विक स्तर पर औसत कीमत 557 डॉलर पर पहुंची तो रूस में 572 डॉलर पर पहुंच गई। हालांकि पिछले वित्त वर्ष में यह वैश्विक स्तर की तुलना में रूस में कम हो गई। वैश्विक स्तर पर कीमत 685 डॉलर टन रही तो रूस में यह 61 डॉलर टन रही।